केंद्र ने कसा तबादलों पर शिकंजा, IAS-IPS पोस्टिंग पर अब वार्षिक रिपोर्ट अनिवार्य

केंद्र ने IAS, IPS, IFS तबादलों के लिए सिविल सेवा बोर्ड रिपोर्ट अनिवार्य की। राज्यों को नियमों के अनुपालन की वार्षिक रिपोर्ट भेजने के निर्देश।

Update: 2025-12-22 07:48 GMT

MP IAS Transfer

जब भी अफसरों के तबादलों की बात आती है, आम लोगों के मन में यही सवाल उठता है क्या सब नियमों के मुताबिक हो रहा है? अब केंद्र सरकार ने इस सवाल को गंभीरता से लेते हुए सारी सिस्टम की समीक्षा चालू कर दी है. केंद्रीय कार्मिक विभाग (DoPT) ने IAS, IPS और IFS के तबादलों पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए सभी राज्यों को सिविल सेवा बोर्ड के तहत किए गए तबादलों की वार्षिक रिपोर्ट मांगी है। ये रिपोर्ट 1 जनवरी तक केंद्र को भेजनी जरूरी कर दी गई है ।

सरकार ने क्या कहा?

DoPT ने लिखा है कि अब तबादले वही होंगे जिनकी सिफारिश सिविल सेवा बोर्ड के पास से हो सुप्रीम कोर्ट के 2013 के आदेश और 1954 के कैडर नियमों के मुताबिक सबका पालन होना चाहिए ।

उत्तराखंड में समस्या क्या है?

उत्तराखंड प्रशासन की रफ्तार से काम करने की शैली अक्सर सुर्खियों में रहती है लेकिन इस बार इसे नियमों की चपेट में आना पड़ा है राज्य में IAS अधिकारियों के तबादलों के लिए कोई आधिकारिक सिविल सेवा बोर्ड ही नहीं है . इसका मतलब तबादले सीधे उच्च प्रशासनिक स्तर पर होते रहे हैं जो नियमों के मुताबिक सही नहीं माना जाता।

IPS के लिए अलग नियम

जहां IPS अधिकारियों के तबादले पुलिस मुख्यालय की समिति तय करती है वहीं IFS  यानी वन सेवाओं के तबादलों के लिए मुख्य सचिव का बोर्ड मौजूद है।  यह वैरीएशन यह बताता है कि नियमों पर देश भर में एकरूपता नहीं है।

 नियम क्या कहते हैं?

केंद्र का पत्र 1954 के नियमों Rule 7(1) and 7(3) का हवाला देता है  जिसके मुताबिक किसी भी अफसर के तबादले का निर्णय सिविल सेवा बोर्ड की सिफारिश के बाद ही होना चाहिए. कुछ अपवादों को छोड़कर एक पद पर अफसर का न्यूनतम कार्यकाल 2 साल होना ज़रूरी है लेकिन उत्तराखंड जैसे राज्यों में फिर भी बार-बार तबादलों की परंपरा बनी हुई है, जो नियमों की भावना से मेल नहीं खाती केंद्र ने कहा है कि सभी राज्यों को अपने सिविल सेवा बोर्ड का पूरा विवरण भेजना होगा. उसकी संरचना संचालन और कार्रवाइयों को साझा करना होगा,इसे उच्च प्राथमिकता के तौर पर देखा जाए।

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