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भगवान श्रीकृष्ण की ये खूबियां युवाओं को करती हैं आकर्षित

Update: 2020-08-11 04:52 GMT

स्वदेश वेबडेस्क। देश भर में कोरोना संक्रमण के बीच कृष्ण जन्मोत्सव पर्व जन्माष्टमी को मनाने की तैयारियां शुरू हो गई है। भगवान् कृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। इस दिन कृष्ण जन्मष्टमी मनाई जाती है। भगवान कृष्ण और राम दोनों ही हिन्दू धर्म के अनुयायियों के प्रेरणा स्रोत है। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, उन्होंने त्याग, समर्पण का संदेश दिया। वहीं भगवान श्रीकृष्ण लीला पुरुषोत्तम हैं, जिन्होंने कर्म और प्रेम का संदेश दिया। भगवान कृष्ण का चरित्र वर्तमान परिवेश में व्यवहारिक लगता है  जिसके चलते वह वर्तमान समय में युवाओं के रोल मॉडल कहें जाते है।  

कूटनीति के ज्ञाता -


भगवान कृष्ण को महान कूटनीतिज्ञ माना गया है।महभारत का युद्ध भले ही पांडवों और कौरवों के मध्य हुआ हो।लेकिन इस युद्ध का महानायक भगवान कृष्ण को माना जाता है।  इस महायुद्ध के दौरान भगवान् कृष्ण ने हर मोड़ पर अपनी कूटनीति का परिचय करवाया है।उन्होंने अपनी कूटनीति के ही बल पर पांडवों की जीत और युद्ध के बीच इच्छा मृत्यु का वरदान लिए खड़े भीष्म पितामह को हटाने का मार्ग ढूंढा।  इसी कूटनीति से युद्ध कौशल में निपुण जय गुरु द्रोणाचार्य को हटाया। अर्जुन के प्राणों की रक्षा के लिए कर्ण को घटोत्कच पर दिव्य अस्त्र का उपयोग करने के लिए विवश करना। ऐसे ही अनेक प्रसंग है जो उनकी कूटनीति को प्रदर्शित करती है।   

सर्वश्रेष्ठ योद्धा 



भगवन कृष्ण के जीवन चक्र के विषय में पढ़े तो पता चलता है की जन्म से लेकर परमधाम जाने तक उनका जीवन संघर्षों से घिरा रहा। उन्होंने अपने जीवन में आये संघर्षों पर एक योद्धा की तरह विजय प्राप्त की। वह  जीवन संघर्षों पर विजय प्राप्त करने में जितने कुशल थे, उतने ही कुशल रण में शत्रु पर विजय प्राप्त करने में थे।  वह सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे तो दूसरी ओर द्वन्द युद्ध यानी मार्शल आर्ट के भी निपुण योद्धा थे। उन्होंने द्वंद युद्ध में मुष्टिक, चाणूर, और जामबंत को हराया था।  कृष्ण ने बचपन में ही शकटासुर, अघासुर, केशी, बकासुर, तारणावर्त, पूतना, धेनुकासुर आदि का वध किया था। वही किशोर अवस्था में मामा कंस को पराजित किया। इसके अलावा अन्य युद्धों में दन्तावक्र, बाणासुर, भौमासुर, जरासंघ आदि को हराया था।  

मैनेजमेंट गुरु -



भगवान कृष्ण अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर मोर्चे पर क्रांतिकारी विचारों के धनी रहे हैं। उनका सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि वह किसी बंधी-बंधाई लीक पर नहीं चले। वह समय के अनुसार आवश्यकता अनुसार अपनी भूमिका बदलते नजर आये है। वह ग्वाल और राजा से लेकर जरुरत पड़ने पर अर्जुन के सारथी तक बने। मैनेजमेंट के गुरु भगवान कृष्ण ने अनुशासन में जीने , व्यर्थ चिंता न करने और भविष्य की बजाय वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने का मंत्र दिया।  

कर्म ही सर्वोपरि 


भगवान कृष्ण ने गीता के माध्यम से बताया की कर्म  का जीवन में विशेष महत्व बताया है। उन्होंने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा की मनुष्य को हमेशा कर्मरत रहना चाहिए। परिणाम के विषय में सोचे बिना  निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।जो लोग कर्मरत रहते हैं, वे हमेशा आगे बढ़ते हैं। इसलिए हमें फल की इच्छा न रखते हुए निरंतर कर्मशील रहना चाहिए। उन्होंने कहा की यदि हम कर्म से पहले ही फल की इच्छा रखेंगे तो अपना शत प्रतिशत नहीं दे पाएंगे एवं असफल होने पर निराशा के भावों से घिर कर हतोत्साहित हो सकते है। इसलिए हमें धैर्य पूर्वक अपना कर्म करते रहना चाहिए।  

मित्रता कैसे निभाएं -


भगवान् कृष्ण का चरित्र हमें मित्रता कैसे निभाना चाहिए इसकी प्रेरणा देती है।  सुदामा-कृष्ण की मित्रता बताती है की सच्चा मित्र वही होता है जो बुरे वक्त में काम आता है।सुदामा ब  भगवान श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका आए तो उन्होंने बचपन का मित्र होने के बाद भी भगवान से कुछ नहीं मांगा। भगवान ने भीअपनी दोस्ती के बीच सुदामा की गरीबी को नहीं आने दिया। भगवान कृष्ण ने बिना बताये सुदामा की सहायता की जोकि सच्चे मित्र और मित्रता की सही परिभाषा को परिभाषित करता है।  

श्रेष्ठ गुरु एवं शिष्य 



एक श्रेष्ठ गुरु एवं शिष्य का  आचरण कैसा होना चाहिए। यह भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र हमें सीखाता है।  भगवान कृष्ण ने महज  64 दिनों में गुरु सांदीपनि से समस्त विद्याएं ग्रहण कर ली थीं। एक श्रेष्ठ शिष्य होने के साथ ही वह श्रेष्ठ गुरु भी थे।  उन्होंने अध्यात्म, योग, ज्ञान  और युद्ध  शिक्षा अपने शिष्य अर्जुन और अभिमन्यु को दी थी।  अर्जुन पुत्र अभिमन्यु को भगवान  युद्ध कलाओं एवं योग एवं अध्यात्म का पाठ पढ़ाया।  वही अर्जुन को रणभूमि में गीता का ज्ञान देकर उसे कर्म का महत्व समझाया।  

प्रकृति प्रेमी -


 भगवान कृष्ण प्रकृति प्रेमी माने जाते हैं।चाहे गौपालन का कार्य हो या कालिया नाग के विष के प्रभाव से यमुना को मुक्त कराने का कार्य हो।  इंद्र के अहंकार को अंत कर गोप-ग्वालों के द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा कराना।  इसके अलावा निजी जीवन में प्रयोग की जाने वाली वस्तुएं जैसे प्रिय कालिन्दी, गले में वैजयंती माला ,सिर पर मयूर पंख, बांस की बांसुरी, कदम्ब की छाँव और उनकी प्रिय धेनु आदि उनके प्रकृति प्रेम को दर्शाता है।  

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