शिबू सोरेन की कहानी: पिता की हत्या और झारखंड का संघर्ष, आसान नहीं था दिशोम गुरु का सफर
Story of Shibu Soren
Story of Shibu Soren : 15 साल के एक लड़के की जिंदगी उस समय बदल गई जब कथित रूप से उसके पिता की साहुकारों द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई। पिता का साया सिर से उठ गया और अचानक बचपन खत्म हो गया। लड़के ने संघर्ष किया और खुद को दूसरों के लिए आवाज उठाने लायक बनाया। संघर्ष करते हुए बात भारत में एक नए राज्य की मांग तक पहुंच गई। राह कभी आसान नहीं थी लेकिन फिर राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर सांसद और केंद्रीय मंत्री बनने तक संघर्ष कभी खत्म नहीं हुआ। जिस व्यक्ति की बात हो रही है उनका नाम शिबू सोरेन हैं। लोग उन्हें सम्मानपूर्वक 'गुरु जी' और 'दिशोम गुरु' के नाम से जानते हैं।
शिबू सोरेन का 4 अगस्त 2025 को निधन हो गया है। देश के प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक सभी ने शोक संदेश जारी किया। पीएम मोदी खुद उनके अंतिम दर्शन के लिए गए। शिबू सोरेन अपने पीछे एक राजनीतिक विरासत छोड़ गए हैं। झारखंड बनने की कहानी बहुत हद तक शिबू सोरेन के दृण निश्चय और संघर्ष की कहानी है।
रामगढ़ में जन्मे थे शिबू सोरेन :
11 जनवरी, 1944 को रामगढ़ (तब बिहार में था और आज झारखंड का हिस्सा है) में एक बच्चे का जन्म हुआ नाम रखा गया शिबू सोरेन। उनका प्रारंभिक जीवन व्यक्तिगत त्रासदी और गहरे सामाजिक-आर्थिक संघर्षों से भरा रहा। जब वे 15 वर्ष के थे जब उनके पिता शोबरन सोरेन की 27 नवंबर, 1957 को गोला प्रखंड, मुख्यालय से लगभग 16 किलोमीटर दूर लुकैयाटांड जंगल में साहूकारों द्वारा कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी। इसने उन पर गहरा प्रभाव डाला।
संथाल नवयुवक संघ बनाया :
संथाली ट्राइब से आने वाले शिबू सोरेन जब 19 साल के हुए तो उन्होंने संथाल नवयुवक संघ बनाया। ये उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत थी। साल 1973 में सोरेन ने गोल्फ ग्राउंड, धनबाद में एक जनसभा के दौरान बंगाली मार्क्सवादी ट्रेड यूनियनिस्ट एके रॉय और कुर्मी-महतो नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की सह-स्थापना की।
शोषण के खिलाफ सोरेन की लामबंदी :
शिबू सोरेन का झारखंड मुक्ति मोर्चा जल्द ही एक अलग आदिवासी राज्य की मांग करने लगा। जिसके चलते JMM को छोटानागपुर और संथाल परगना क्षेत्रों में समर्थन मिला। कहा जाता है कि सामंती शोषण के खिलाफ सोरेन की जमीनी स्तर पर लामबंदी ने उन्हें एक आदिवासी नेता बना दिया।
स्वयं की अदालतें लगाकर देते थे न्याय :
आदिवासियों की भूमि JMM के लिए बड़ा मसला था। झामुगो ने आदिवासी भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए कई आंदोलन किए। उन्होंने जबरन जमीनों की कटाई शुरू कर दी। शिबू सोरेन जमींदारों और साहूकारों के खिलाफ न्याय देने के लिए भी जाने जाते थे। कभी-कभी वे स्वयं की अदालतें लगाकर भी आदिवासियों को न्याय दिया करते थे।
1975 का चिरुडीह नरसंहार :
जनवरी 1975 शिबू सोरेन ने कथित तौर पर "बाहरी लोगों", या 'गैर-आदिवासी' लोगों को भगाने के अभियान को उकसाया। इसके चलते चिरुडीह में कम से कम ग्यारह लोग मारे गए। शिबू सोरेन पर चिरुडीह नरसंहार मामले को लेकर कई आरोप लगे। इस मामले में शिबू सोरेन न केवल जेल गए बल्कि बाद में उन्हें केंद्रीय मंत्री का पद भी गंवाना पड़ा।
15 नवंबर, 2000 को झारखंड का गठन शिबू सोरेन के लिए बड़ी उपलब्धि थी। इसके पहले उन्होंने साल 1977 में अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था हालांकि वे हार गए थे। पहली बार वे साल 1980 में दुमका से लोकसभा के लिए सांसद चुने गए थे। वे 1989, 1991 और 1996 में भी लोकसभा के लिए चुने गए। साल 2002 में, वे राज्यसभा के लिए चुने गए थे। उन्होंने उसी वर्ष दुमका लोकसभा सीट उपचुनाव जीता और राज्यसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। वह 2004 में फिर से सांसद चुने गए थे।
मनमोहन सरकार में मंत्री बने शिबू सोरेन :
सांसद बनने के बाद उन्हें मनमोहन सरकार में मंत्री बनाया गया। राजनीतिक रूप से यह शिबू सोरेन के करियर का सबसे हाई पॉइंट था लेकिन तभी उनकी लाइफ में एक हुए टर्निंग पॉइंट आया। सालों पुराने चिरुडीह मामले में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ। सोरेन उन 69 आरोपियों में से एक थे जिनपर चिरुडीह नरसंहार का षड्यंत्र रचने का आरोप था।
जब अंडरग्राउंड हुए शिबू सोरेन :
गिरफ्तारी वारंट के बाद शिबू सोरेन को इस्तीफा देने के लिए कहा गया। स्थिति को विपरीत पाते हुए वे कुछ समय के लिए भूमिगत हो गए। 24 जुलाई 2004 को उन्होंने केंद्रीय कोयला मंत्री के पद से इस्तीफा भी दे दिया। कुछ समय बाद वे लौटे और उन्हें न्यायिक हिरासत में लिया गया। जमानत मिलने पर सोरेन 27 नवम्बर 2004 को दोबारा मंत्रीमंडल में शामिल हो गए।
उन्हें वापस कोयला मंत्रालय वापस दिया गया। कहा जाता है कि, इसका कारण झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव थे। कांग्रेस चुनाव में जेएमएम के साथ गठबंधन करना चाहती थी।
बहरहाल चुनाव हुए और 2 मार्च 2005 को शिबू सोरेन को झारखंड के राज्यपाल द्वारा झारखंड में सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया। हालांकि, 11 मार्च को विधानसभा में विश्वास मत प्राप्त करने में विफल रहने के नौ दिन बाद, 11 मार्च को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 2019 के लोकसभा चुनावों में वे दुमका निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के सुनील सोरेन से हार गए थे।
इन विवादों के बावजूद, सोरेन झारखंड की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति बने रहे। उन्होंने तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया - मार्च 2005 में (2 मार्च से 11 मार्च तक केवल 10 दिनों के लिए), 27 अगस्त 2008 से 12 जनवरी 2009 तक, और 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक। झारखंड में गठबंधन राजनीति की प्रकृति के कारण उनका प्रत्येक कार्यकाल अल्पकालिक ही रहा।
हत्या के प्रयास में बाल-बाल बचे :
जून 2007 में शिबू सोरेन की हत्या की साजिश भी रची गई थी। गिरिडीह की एक अदालत में पेशी के बाद उन्हें दुमका स्थित जेल ले जाते समय देवघर जिले के डुमरिया गांव के पास उनके काफिले पर बम फेंके गए थे।
शिबू सोरेन अप्रैल 2025 तक 38 वर्षों तक झामुमो के अध्यक्ष रहे हैं। उनके पुत्र हेमंत सोरेन अब उनकी विरासत संभाल रहे हैं। उनके परिवार में पत्नी रूपी सोरेन, तीन पुत्र और पुत्री अंजनी हैं। उनके बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन का मई 2009 में निधन हो गया था। दूसरे पुत्र हेमंत सोरेन ने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया है और वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। उनके सबसे छोटे पुत्र बसंत सोरेन विधायक हैं।
उनके निधन पर हेमंत सोरेन ने लिखा - आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूँ...