मुख्तार अंसारी : आतंक के काले अध्याय का अंत

- प्रणय विक्रम सिंह

Update: 2024-03-29 08:10 GMT

वेबडेस्क। अनगिनत बेगुनाहों को मौत की नींद सुलाने वाला दुर्दांत, सफेदपोश माफिया सरगना मुख्तार अंसारी आज एक असहाय और दर्दनाक मौत का शिकार हो गया। उसकी मौत से बहुत से लोगों को आतंक से मुक्ति मिली तो अनेक लोगों को बेगुनाह अपनों की मौत का बदला मिला। सात साल पहले तक अजेय माने जाने वाले इस अपराधी को जिंदगी में पहली बार कानून की ताकत का अंदाजा प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद हुआ। कोर्ट में योगी सरकार की प्रभावी पैरवी के चलते ही उसको अपने हर गुनाह की सजा मिली। अन्यथा 'सजा और मुख्तार' तो समंदर के दो किनारे थे।


प्रणय विक्रम सिंह 

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।

अपनी लहीम-सहीम कद-काठी के चलते सबसे अलग दिखने वाला मुख्तार जरायम की दुनिया का वो बेताज बादशाह था जिसकी आवाज ही खौफ का पर्याय हुआ करती थी। सरकारें बदलीं, मुख्यमंत्री बदले लेकिन नहीं बदला तो मुख्तार का जलवा। जेल से अपनी आपराधिक हुकूमत चलाने का हुनर दुनिया को मुख्तार ने सिखाया। उसके काले कारनामों और जेल से जारी संगठित अपराधों के बारे में सब कुछ जानते हुए भी सपा, बसपा की सरकारों ने कभी कोई सख्त कार्यवाही नहीं की, उल्टा प्रश्रय ही दिया। समुदाय विशेष को जिस अपराधी में रॉबिन हुड दिखाई देता था, उस मुख्तार अंसारी को अपने वोट बैंक के लिए मुख्यमंत्री रहे मुलायम, मायावती, अखिलेश ने कभी कोई 'हानि' नहीं पहुंचाई।

मुख्तार को बचाने और उसके रुतबे को बढ़ाने के लिए सपा सरकार ने डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह को तो इतना प्रताड़ित किया कि उन्होंने अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए पुलिस की सेवा से इस्तीफा देना ही बेहतर समझा। इस वाकिये से पुलिस बल का मनोबल काफी गिर गया था। भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की बर्बर हत्या के बाद तो पूर्वांचल में मुख्तार की समानांतर सरकार ही चलने लगी थी। मऊ के दंगों के बाद तो प्रदेश समेत देश के मुस्लिमों के बीच उसकी छवि 'कौम के रहनुमा' के तौर पर बन गई थी। क्रूरता और सांप्रदायिकता से लबरेज अंसारी को फख्र के साथ उसके लोग 'दूसरा लादेन' भी बोलते थे। उसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 5 बार विधायक रहा मुख्तार 3 बार तो जेल से ही चुनाव लड़कर जीता था।

हालांकि इन सबके दरम्यान ऐसे तमाम मौके आए कि जब मुख्तार को उसकी करनी का फल कानून दे सकता था लेकिन ऐसा करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति सूबे के किसी सदर-ए-रियासत के पास नहीं थी। लिहाजा, जरायम की दुनिया में अंसारी हर दिन बड़ा होने लगा। रक्तबीज की तरह प्रदेश के कोने-कोने में उसके गुर्गे फैलने लगे। लेकिन हर रावण का अंत सुनिश्चित है। साल 2017 में भाजपा की सरकार और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही सभी माफियाओं की कुंडली में 'मारकेश' योग बैठ गया था तो फिर मुख्तार कैसे बचता? पुलिस की सक्रियता और कोर्ट में प्रभावी पैरवी से मुख्तार के अपराधों की सजा उसको मिलने लगी। उसकी अवैध अचल संपत्तियों पर चले कानून के बुलडोजर के तले अंसारी के अजेय होने का दंभ भी रौंद दिया गया। जरायम की दुनिया में उसकी बादशाहत का एलान करती लखनऊ स्थित गगनचुंबी इमारतों के टूटते ही उसके गुरूर को जमींदोज होते हुए दुनिया ने देखा।

विदित हो कि मुख्तार अंसारी गैंग के सदस्यों पर अब तक 155 एफआईआर दर्ज की गई हैं। मुख्तार की अब तक कुल ₹586 करोड़ की संपत्ति जब्त की जा चुकी है और 2100 से अधिक अवैध कारोबारों को बंद किया जा चुका है। बीते 18 महीनों में उसे 8 मामलों में सजा हुई है। यह सब इतना आसान नहीं था। योगी जैसे जीवट, सशक्त और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति वाले मुख्यमंत्री की सरपरस्ती में ही ऐसी वैधानिक और ऐतिहासिक कार्यवाहियां संभव होती हैं। योगी की 'अपराध के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति' कुछ और नहीं प्रभु श्री राम के उद्घोष 'निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह' की आधुनिक अभिव्यक्ति है। मुख्तार अंसारी ने अपनी जरायम की लंका को बनते, वैभवशाली होते फिर अपने ही सामने जमींदोज होते हुए देखा। वो अपनी कथित बादशाहत को खतम होते हुए देखने के लिए मजबूर हुआ। जो कारागार उसके लिए ऐशगाह, आरामगाह और पनाहगाह थे, योगी सरकार में वे उसे कानून का पाठ पढ़ा रहे थे। कोर्ट में उसे जज के सामने गिड़गिड़ाते सभी ने देखा।

अपनी इस दुर्गति के हर क्षण में वो उन काले कारनामों को जरूर याद करता होगा, जिनके चलते उसे ये दिन देखने के लिए विवश होना पड़ा। उसकी दौलत और ताकत की हवस के शिकार परिवारों का मातम, बिलखते बच्चों और सूनी मांगों का रुदन जरूर उसके कानों में गूंज रहा होगा। पत्नी अफशां पर भी ₹75,000 का इनाम है। वो फरार है। बेटा अब्बास अंसारी जेल में है। एक बेटा उमर भी फरार है। सजाओं की लंबी होती फेहरिस्त, गुर्गों पर होती कठोर कार्यवाहियों, अपराधी परिजनों पर कानून के कसते शिकंजे ने मुख्तार के मन को तोड़ दिया था। बीमारी ने चेहरे की रौनक और कानून ने उसकी ताकत को छीन लिया। आखिरकार मौत ने अपने आगोश में लेकर उसकी तमाम तकलीफों का अंत कर दिया। मुख्तार का ऐसा दर्दनाक अंत हर अपराधी के लिए संदेश है कि...

'वक्त तुम्हें तुम्हारा हर जुल्म लौटा देगा।

वक्त के पास कहां रहम-ओ-करम होता है...।।'

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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