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क्या प्रवासी मजदूर भोजन के लिए तरसने वाले लोग हैं या देश की एकता के सेतु ।

के. श्याम प्रसाद, राष्ट्रीय संयोजक सामाजिक समरसता मंच

Update: 2020-05-25 14:17 GMT

स्वदेश वेबडेस्क।  कोरोना से पूरा देश लॉकडौन हो गया । प्रवासी मजदूर अपने-अपने घर की ओर बाल-बच्चों के साथ पैदल चलने वाले हृदय विदारक तस्वीर ने देश की जनता के हृदयों को झक-झोर कर दिया। सबसे पहले हमारी नजर में यह बात आई थी कि हर राज्य में हमारी कल्पना से परे प्रवासी मजदूर जीवन बिता रहे हैं। ये प्रवासी मजदूर कौन हैं ? उनकी समस्याएँ क्या क्या हैं ?

निकट रास्ते से अधिकार पाने की चाह रखने वाले हमारे राजनैतिक नेता कई बार प्रादेशिक भावोद्वेगों को भड़काते रहते हैं । शिवसेना के नेताओं की चेतावनी- "मुंबई सिर्फ मराठी लोगों का हैं । दूसरे राज्यों के लोगों को यहाँ रोजगार के लिए आना नहीं चाहिए ।" तेलंगाणा आंदोलन के संदर्भ में के. सी. आर की चेतावनी;"तेलंगाणा से आंध्रा वाले चले जाएँ" - तमिळनाडु के डि.यम. के नेताओं की चेतावनी;"हम द्रविड़ हैं , उत्तर भारत के आर्यों का आधिपत्य हमें नहीं चाहिए ।" -असम के आंदोलन के संदर्भ में 'आसू' नेताओं की चेतावनी;"असम में दूसरे राज्यों के लोगों को नहीं रहना चाहिए" - इन सबको हमने देखा था ।

इन सभी चेतावनियों को बेखातिर करते हुए अपने पेट की भूख मिटाने के लिए, हर राज्य से लाखों गरीब जनता, दूसरे राज्यों में जाकर तरह-तरह के काम करते हुए, लोगों की जरूरतों को पूरा करती आ रही है । इस तरह के प्रवासी मजदूरों में ज्यादा तर गावों के भूमिहीन गरीब मजदूर ही दिखाई देते हैं । कुछ लोगों के पास जमीन होती हैं लेकिन बहुत कम । पानी की सुविधा न होने के कारण वे कृषि पर आधारित जीवन बिता नहीं सकते । इसलिये कुछ लोग प्रवासी मजदूर बन जाते हैं । इनमें ज्यादातर लोग अनुसूचित जातियों के ही होते है । फिर भी सभी जातियों के लोग प्रवासी मजदूरों में दिखाई देते है ।

हर राज्य में दूसरे राज्यों से आनेवाले ये लोग भवन-निर्माण, बढ़ई , बिजली , मिट्टी खोदना जैसे श्रम पर आधारित काम करते रहते हैं । ऐसे काम स्त्री और पुरुष सबलोग करते रहते हैं ।उनके शिशु पेडों के नीचे साडी के झूले में सो जाते हैं और मिट्टी में खेलते रहते हैं | प्रवासी मजदूरों के बच्चों की पढ़ाई होती नहीं ।उनके बूड़े माँ-बाप अपने गावों में घर के पहरेदार बनकर रह जाते हैं । इस तरह के मजदूर दिल्ली, मुंबाई, कलकत्ता, बेंगलूर, हैदराबाद जैसे बड़े -बडे महान नगरों में लाखों संख्या में काम कर रहे हैं । बड़े-बड़े बहु मंजिल इमारतें, सुंदर फ्लैओवर ब्रिज, विलासी गाडियों से भरे चौडे सड़क, इन सुंदर तस्वीरों के पीछे, किसी की नजर में नहीं आने वाले अदृश्य रूप से लाखों संख्या में मजदूर अपना जीवन किसी न किसी तरह से बिताते आ रहे हैं ।

इनकी कोई भी परवाह नहीं करता । ये लोग भारत भर के सभी राज्यों से आते हैं, भारत भर के सभी राज्यों में रहते हैं। आर्थिक दृष्टि से देखें तो सभी राज्यों में रहने वाले ये प्रवासी मजदूर भोजन के लिए तड़पनेवाले लोग हैं । सामाजिक दृष्टि से देखे तो इनमें सभी जातियों और सभी धर्मावलंबी लोग रहते हैं । देश की एकता की दृष्टि से देखें ये लोग'देश की एकता के सेतु'कहलाने योग्य हैं । इनमें अपने राज्य के प्रति, अपनी भाषा की प्रति प्रेम दिखाई देता है, लेकिन दूसरे राज्यों के प्रति और दूसरी भाषाओं के प्रति इनमें कहीं घृणा नहीं दिखाई देती है । दूसरों को ये नीचा करके नहीं देखते ।

तेलुगु राज्यों की तस्वीर- 

आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम, विजयनगरम, और विशाखपट्टनम में रहने वाले तटवर्ती प्रदेशों के मछुआरे समुंदर में शिकार नहीं मिलने से कई सालों से उत्तर भारत के समुंदर के तटवर्ती प्रदेशों और गुजरात की ओर जा रहे हैं । प्रकाशम और नेल्लूरु प्रदेशों के रहने वाले तटवर्ती प्रदेशों के मछुआरे कर्नाटक के समुंदर के तटवर्ती प्रदेशों के प्रवासी बनकर जा रहे हैं । नेल्लूरु जिले के उदयगिरि , प्रकाशम जिले के कनिगिरि की ओर रहने वाली जनता, पीने के पानी के अभाव में और कृषि के लिए पानी उपलब्ध नहीं होने से ईंट बनाने का काम ढूँढते हुए कई सालों से अलग-अलग राज्यों की ओर प्रवास कर रहे हैं । रायलसीमा जिलों के लोगों को सरकार नजर अंदाज करती है । इनमें से मुख्य रूप से अनंतपुरम जिले के कृषि आधारित मजदूर और छोटे-मोटे कृषक हजारों संख्या में गाँव खाली करके बेंगलूर शहर की ओर जा रहे हैं । रायलसीमा प्रदेश से राष्ट्रपति और मुख्य मंत्री चुने गये । फिर भी आज अनंतपुरम जिले के कई गावों में पीने के पानी की बड़ी समस्या है । यह शासकों की विफलता का कारण ही नहीं प्रवासी मजदूरों के अस्तित्व की भी समस्या है । तेलंगाणा का पालमूरु जिला प्रवासी मजदूरों का जिला के रूप में प्रसिद्ध है । कई सालों से इस जिले से प्रवासी मजदूर मुंबई जाते हैं ।ये सिर्फ आंध्र प्रदेश और तेलंगाणा की कुछ खबरें मात्र हैं । यहाँ के हर शहर में भवन निर्माण का काम करने वाले मजदूरों में से ज्यादातर लोग बिहार राज्य के ही हैं ।

चिकित्सा की आपातकालीन स्थिति से आर्थिक आपातकालीन स्थिति की ओर –

करोना वायरस से लोगों को बचाने के लिए केद्र प्रशासन ने लॉकडाउन की घोषणा की। यह एक तरह से चिकित्सा परक आपतकालीन स्थिति हैं । देश के गावों की जनता सरकार की ओर से बताए गये सभी नियमों का यथावत अनुसरण कर रही है । शहरों में रहने वाले पढ़े-लिखे लोगों में इन नियमों के आचरण के प्रति श्रध्दा नहीं दिखाई देती । ताजा खबर यह है कि हैदराबाद के मादन्नपेटा बस्ती में एक शिशु के नामकरण उत्सव के अवसर पर 50 लोग एकत्रित हुए। इसके फलस्वरूप माँ और शिशु के साथ 30 लोगों को करोना लग गया ।

केंद्र सरकार की ओर से करोना लॉकडौन की घोषणा करते हुए लिखित रूप में स्पष्ट सूचनाएँ भेजी गयी थी कि प्रवासी मजदूरों को एक जगह से दूसरी जगह भेजना नहीं चाहिए और जो जहाँ हैं उनको वहीं आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराना चाहिए । फिर भी दिल्ली के मुख्य मंत्री ने इन सूचनाओं को ठुकरा दिया था और दिल्ली में रहने वाले उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूरों को बसों में भेज ने की कोशिश की । गरीब जनता-विरोधी कारवाई में भाग लेने वाले कुछ IAS अधिकारी अपनी गलती के लिए सस्पैन्ड हुए थे । देश भर के 'सेवाभारती' और अन्य कई सेवा संस्थाओं की ओर से गरीब जनता के साथ, इन प्रवासी मजदूरों को भी भोजन के पैकेट, पीने का पानी, शैनिटैजर आदि उपलब्ध कराये गये । हो सकता है कि ज्यादातर लोगों को इनकी सेवाएँ नहीं मिली हों। 

एक ओर प्रवासी मजदूरों के सामने करने के लिए कोई काम नहीं था । लोग ऐसी जगह रह गये जो उनका अपना गाँव भी नहीं था । इसके ऊपर करोना का ड़र भी था । फिर काम कबसे शुरु होंगे - इसकी भी कोई जनकारी नहीं थी । एक ऐसी स्थिति आ गयी थी कि किस ओर जाए ? क्या करें ? स्पष्ट नहीं था । बाकी जनता की तरह रहने के लिए इन प्रवासी मजदूरों के पास कोई घर नहीं था । पच्चीस( 25) दिनों के बीतने के बाद देश के सभी प्रवासी मजदूरों के मन में यह बात आ गयी थी कि हम अपने-अपने गाँव चले जाएँगे । वे इन निर्णय पर पहुँच गये कि 'अपने गाँव में सुरक्षित रहेंगे'; 'जो कुछ मिलता है वही खाएँगे' । इन प्रवासी मजदूरों के मन की स्थिति के प्रति ध्यान देते हुए केंद्र सरकार ने लॉकडौन की तीसरी दशा में प्रवासी मजदूरों को अपने-अपने राज्य भेजने की स्वीकृति देते हुए विषेश रेल गाड़ियों की व्यवस्था की । इस अवसर पर केंद्र और राज्य प्रशासन के नेता यह विश्वास प्रवासी मजदूरों में नहीं भर सकें कि आप अपने-अपने गाँव मत जाए । फिर से काम शुरु होंगे । जैसा काम कर रहे थे आप लोग आगे भी अपना-अपना काम वैसे ही कर सकते हैं ।

केंद्र सरकार ने स्वीकार किया था कि इन विषेश रेल गाड़ियों में 85 प्रतिशत रेल का किराया केंद्र प्रशासन वहन करेगा और 15 प्रतिशत उन -उन राज्यों को को देना होगा जहाँ से प्रवासी मजदूर निकलते हैं । देश के पाँच राज्यों से यथा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश ,तेलंगाणा, बेंगाल और तमिळनाडु से केंद्र सरकार को उचित सहायता नहीं मिली । केंद्र सरकार ने विदेशों में फस गये भारतीयों को देश में वापिस लाने के लिए विशेष हवाई जहाज और जहाजों की व्यवस्था की । लेकिन कुछ राज्य के प्रवासी मजदूर अपने-अपने राज्यों की ओर जाने के प्रति ध्यान नहीं दिया । यह एक दुर्भग्य पूर्ण स्थिति हैं । एक ओर भारी संख्या में अपने घर की ओर मुख्य सड़कों से परिवार और बच्चों के साथ पैदल चलने वाले प्रवासी मजदूरों के दृश्य, राज्यों के सरहदों पर भीड़ में एकत्रित प्रवासी मजदूर, भावोद्वेग में विद्रोह करने वाले कुछ लोग ,25 दिनें से दिन-रात काम करने वाली पुलिस संतुलन खोकर प्रवासी मजदूरों पर लाठीछार्ज करने के दृश्य और मौकादेखकर मोदी सरकार की आलोचना करने के लिए राह देखने वाला कॉग्रेस और वामपंथी बुद्धी जीवी कार्यकर्ता प्रवासी मजदूरों की स्थिति पर अपनी आँसू बहा रहे थे । इन प्रवासी मजदूरों की समस्या को लेकर देश में अराजक माहौल तैयार करने की कुछ बुरी ताकतों की योजनाएँ - यह वर्तमान की स्थिति है ।

हैदराबाद से प्रवासी मजदूरों की रेल गाड़ी बिहार के पटना शहर पहुची । रेल गाड़ी से उतरने वाले कुछ प्रवासी मजदूरों ने अपनी मातृभूमि पहूँचते ही प्लाटफॉरम से उतर कर अपनी मातृभूमि बिहार की वंदना की थी । उन तस्वीरों में यह व्याकुलता दिखाई देती है कि किसी न किसी तरह से अपना गाँव चला जाए । शसकों और उन गाँव में रहने वाले लोगों में यह डर था कि ये प्रवासी मजदूर अपने-अपने गाँव आ जाए तो अबतक सुरक्षित उन गाँवों में करोना वैरस फैल जायेगा । उनके डर में भी सचाई दिखाई देती है । इन सभी लोगों को क्वरनटैन में रखना कोई ममूली बात नहीं है लेकिन अवश्य रखना ही चाहिए । अभी भी विभिन्न राज्यों के सड़कों पर पैदल चलने वाले प्रवासी मजदूरों के दृश्य दिखाई देते हैं । इनको कई स्थानों पर आर.एस.एस, सेवा भारती, समरसता फॉउन्डेशन तेलंगाण और आंध्र में भेजन के पैकेट, पीने के लिए पानी और कुछ जगहों पर जूते भी दे रहे हैं ।

करोना के फैलाव को रोकने के लिए अब तक लॉकडौन के नाम पर चिकित्सा-आपातकालीन- स्थिति अप्रकटित रूप में लागू हो गई । अब इस स्थिति से बाहर आना शुरु हो गया है । लॉकडौन से देश के अर्थिक-चक्र की गति रुक गई थी । पूरा देश अप्रकटित- आपातकालीन -स्थिति में प्रवेश कर गया था । इसका प्रभाव सभी वर्गों की जनता पर दिखाई देता है । केंद्र सरकार ने बड़े अर्थिक पैकेज की घोषणा की । इसका कार्यान्वयन करने वाले राज्य सरकारों को मन लगाकर काम करना चाहिए । इस तरह से नहीं सोचना चाहिए कि प्रवासी मजदूरों पर किये जाना वाला खर्च अनुत्पादक है ।

स्वयं समृद्ध गाँवों के निर्माण की दिशा में-

अपने-अपने गाँव पहुँचनेवाले प्रवासी मजदूरों में से कुछ लोगों ने निर्णय लिया था कि काम की तलाश में अब बाहर नहीं जाना चाहिए । ऐसी स्थिति में गाँवों को आर्थिक दृष्टि से स्वयं समृध्द ( Economic self-sufficiency)बनाने के लिए इन्हीं गाँवो में उन प्रवासी मजदूरों की सेवाओं को लेने की जरूरत है । इसके लिए विशेष योजनाओं को बनाना चाहिए । इन योजनाओं का उचित रूप में कार्यान्वयन करना चाहिए । इस काम में केंद्र और राज्य सरकारों को ऐसी कुछ प्रमाणिक स्वच्छंद संगठनों की मदद लेनी चाहिए ।

प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार देने की योजनाएँ बनाना चाहिए –

केंद्र और राष्ट्र सरकारों की यह जिम्मेदारी होगी कि अपने राज्य के हों या दूसरे राज्यों के प्रवासी- मजदूर, सबको समान मानते हुए रोजगार के काम देने चाहिए । कोई भी प्रवासी-मजदूर भूख से नहीं तड़पें; भूख के कारण आत्महत्या न करें । इसके लिए विशेषज्ञों को अपनी अमूल्य सलाह देनी चाहिए जिससे कि केंद्र और राष्ट्र सरकार और स्वच्छंद सेवा संगठन, एक सुनिश्चित नीति अपनाए और कार्यक्रम करें । केंद्र और राज्य सरकार भी अधिकार के मायाजाल के चौखटें से बाहर आकर विशेषज्ञों की सलाह स्वीकार करें और उनके कार्यन्वयन की कोशिश करनी चाहिए । इस संकट- समय में समस्याओं के आधार पर आंदोलन की ओर नहीं; समस्यों को सुलझने की दिशा में बुध्दिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ताओं को प्रयास करना चाहिए । देश भर के प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर मिलें- इस दिशा में उचित योजना बनाने और उनके कार्यान्वयन की दिशा में केंद्र और राज्य सरकारों को एक व्यवस्था का गठन करना चाहिए ।    

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