हर बात पर फूफा बनने की जरुरत नहीं: सुपर पावर को लोकतांत्रिक देश के एक आम नागरिक का खुला खत

Update: 2025-05-13 09:07 GMT

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भारत में जहां कहीं शादी हो वहां फूफा सिंड्रोम देखा जाना आम है। ये फूफा शादी के हर मामले में अपनी नाक घुसाता है और जब कुछ गलत हो जाए तो दोष दूसरों पर मढ़कर रिसेप्शन में रसगुल्ले खाकर निकल जाता है। ये फूफा सिंड्रोम इतना खतरनाक है कि, कभी - कभी बात शादी टूटने तक आ जाती है। इस फूफा सिन्ड्रोन से आजकल एक सुपर पावर ग्रसित है। वैसे तो दुनिया भर में ये सुपर पावर अपनी फूफागिरि के लिए ये मशहूर है लेकिन आजकल पूर्व दिशा में हो रहे कार्यक्रमों पर इसका खासा ध्यान है।

पूर्व इस समय थोड़ी हलचल में है। कहीं से गोली चली है तो कहीं से गोला। इस गोली - गोला की कश्मकश में बात निपटने को थी कि, फूफा सिंड्रोम से ग्रसित सुपर पावर ने अपनी नाक घुसा दी। नाक तो घुसाई ही साथ ही साथ चिन्दी का सांप बनाया और दूसरे की बनाई खीर का क्रेडिट भी खुद ले लिया। जिसने गोली चलाई उसके घर में नुकसान ज्यादा हो गया था। तंगहाली से जूझ रहा क्या करता भागते - भागते चाय में चीनी मिलाकर इस सुपर पावर को पिलाई तो उसके दिल में न्याय करने और दुनिया में शांति बहाल करने की सनक छा गई। कुछ लोग कहते हैं नोबल पीस प्राइज का चक्कर है इसलिए सुपर पावर ऐसा कर रहा है। खैर 100 मुंह, 100 बातें और सिन्दूर से 100 कीड़े तबाह...

बात कहीं और जाए इसलिए वापस मुद्दे पर आते हैं...तो इस सुपर पावर ने आगे कार्रवाई की, क्योंकि वह भी इस अटल सत्य को जनता था कि, गलती गोली चलाने वाले की ही थी इसलिए उसे नतमस्तक होकर "SORRY अब नहीं होगा बाबू plzz" जैसे शब्द कूटनीतिक अंदाज में कहने को कही। गोला फेंकने वाले चाहते तो गोली जहां से निकली उस रास्ते को ही बंद कर देते लेकिन..."कुछ बातें अधूरी रह जाएं तो बेहतर है" ऐसा डायलॉग बोलकर पतली गली से निकलते हुए बात वापस सुपर पावर की।

गोली और गोला पर कुछ देर में बात बनी, वो गले क्या हाथ भी नहीं मिला पाए थे कि, सुपर पावर ने कहा मैंने किया, मैंने किया, मैंने किया। बताइए कॉल लगवाने में क्या बड़ी बात, अगर सामने वाला कॉल ही नहीं उठता तो रह जाती बातें लबर - लबर...।

इन सभी बातों के बीच जान लीजिए इस सुपर पावर के हाथ खून से रंगे हैं। इसका कारोबार है असला - बारूद का। लोगों को सड़े - गले हथियार बेचता है जब वो ख़राब हो जाते हैं तो कहता है लड़ाई - लड़ाई माफ करो। इसको लगने लगा है कि, सहस्र वर्ष पहले गोला - गोली की बात शुरू हुई थी...शायद किसी ने इसको सोशल मीडिया से जानकारी निकाल कर दी है। असल में बताऊं तो गोला - गोली की ये बहस, लड़ाई, मन मुटाव 100 साल पुराना भी नहीं है। ये तो कलयुग में गोरी चमड़ी वाले एलियंस का किया-धरा है

सुपर पावर की बचकान हरकतों के बारे में कहां से शुरू करूं और कहां खत्म करूं। एक समय पर ये पंचायत लगाकर सजा सुनाता था। बिना किसी अधिकार के लोगों के घरों में घुसकर तबाही मचाया करता था। इसका एक आदमी इधर - उधर हो जाए तो गांव में दंगों की स्थिति बन जाती थी। दूसरे के घर का कोई मर जाए तो ये सुपर पावर अंग्रेजी में कहता है 'ceasefire Plz'

उफ्फ ये सुपर पावर, इसने तो ये उपाधि भी खुद ही खुद को दे दी है। आजकल ये ट्रेड - ट्रेड करता है। कहता है ऐसा ट्रेड करूंगा दुनिया कदमों में होगी। कहता है गोला - गोली ने बात नहीं की तो सामान न खरीदूंगा न बेचूंगा। इसे लगता है सिद्धांतों और उसूलों की लड़ाई ये व्यापार से समाप्त कर लेगा।

जिनके हाथों में गोला है उनके घर से शांतिदूत निकले हैं। सिद्धांतों का व्यापर करना शांतिदूतों की पहचान नहीं। यह तो सुपर पावर भी जानता है कि, गोली वाले भी कभी इन गोला पकड़े लोगों के साथ थे। ये सगे भाई हैं। इनकी मां एक है। इन्हें शांति एक हो जाने पर ही मिलेगी। जिन हाथों ने गोली पकड़ी है जिस जमीन से गोली चली है वो अपना इतिहास भूल चुके हैं। इनके खाने में चीनी इतनी अधिक हो गई है कि, इनका शरीर अब सड़ चुका है। इलाज पूर्ण मुक्ति से ही संभव है - ऐसा कई हकीम कह गए हैं।

जब तक इन गोली वालों को पूर्ण मुक्ति नहीं मिल जाती तब तक संघर्ष जारी रहेगा। सुपर पावर को चाहिए कि, अपने काम से काम रखे। फूफा सिंड्रोम से बाहर आने के लिए थेरेपी ले और सही गलत का अंतर समझे।

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