स्वदेश व्यक्तित्व विशेष: धर्मेंद्र ने जगाई 'उम्मीद' की लौ और 'लौटाया' प्रशासन का 'प्रताप'

Update: 2025-07-07 02:22 GMT

लखनऊ (अतुल मोहन सिंह)। वर्ष 2024 के 16 सितंबर को शाहजहांपुर में जिलाधिकारी की कुर्सी संभालने वाले धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने महज आठ महीने में ही 'उम्मीद' की लौ तेज कर दी है। उन्होंने न सिर्फ प्रशासन का 'प्रताप' लौटाया बल्कि आमजन में लोक सेवक का विश्वास भी बहाल किया। 'कार्यालय' हो या 'घर' दोनों ही स्थानों पर उनका 'दिल' दरिया ही नजर आता है। जनसुनवाई से निकला समाधान का सुफल इसकी स्वयं तस्दीक करता है। 'फरियादी' के पक्ष में न्याय न सिर्फ होता है बल्कि दिखता भी है।

'दुर्गम वन हैं बड़े घनेरे, छाँव यहां की छलना है। अभी पथिक विश्राम कहां, बहुत दूर तक चलना है।' अपने बायो में उक्त सूक्ति को ध्येय मानने वाले धर्मेंद्र प्रताप सिंह की चर्चा उत्तर प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों में सर्वाधिक है। उनका नाम आज प्रशासन की ताकत, जनसेवा की भावना और पर्यावरण के लिए गहरी सोच का उदाहरण बन गया है। उन्होंने न सिर्फ एक सूखी नदी को दोबारा जिंदा किया, बल्कि आमजन के दिलों में 'उम्मीद' और प्रशासन का 'प्रताप' भी लौटाया। अवैध स्कूलों में ताले डलवाए तो सरकारी स्कूलों में सुविधाएं बढ़वाएं। अवैध अस्पताल बंद करवाए तो सरकारी की व्यवस्था दुरुस्त करवा दी। नदियों के पुनरुद्धार के लिए शाहजहांपुर में किए जा रहे प्रयास जल संरक्षण की दिशा में 'मील का पत्थर' साबित होंगे।

 छोटे से गांव के बेटे ने पूरा किया बड़ा सपना :

धर्मेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 16 जनवरी 1975 को देवरिया के छोटे से गांव तरकुलवा में किसान परिवार में हुआ। बचपन से ही उन्होंने संघर्ष और सादगी को साथी बनाया। गांव के स्कूल से देवरिया इंटर कॉलेज तक पढ़ाई करते हुए उन्होंने कभी हार नहीं मानी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र और दर्शन जैसे विषयों में दो गोल्ड और सिल्वर मेडल हासिल कर दिखा दिया कि मेहनत करने वालों के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं।

21 साल में अफसर बनने का सपना पूरा :

सिर्फ 21 साल की उम्र में उन्होंने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करके उपजिलाधिकारी की कुर्सी संभाली। इसके बाद उन्होंने बस्ती, प्रयागराज, गाजियाबाद, सहारनपुर, इटावा और लखनऊ जैसे कई जिलों में कड़ी मेहनत से काम किया। गाजियाबाद में तो मेट्रो और एलिवेटेड रोड जैसे बड़े प्रोजेक्टों में भी अहम योगदान रहा।

आईएएस बनने के बाद देशसेवा का नया रास्ता :

साल 2013 में धर्मेंद्र सिंह को आईएएस अधिकारी बना दिया गया। फिर उन्होंने नई दिल्ली नगर परिषद में निदेशक (सतर्कता) बनकर काम किया। यहां उन्होंने 50 से ज्यादा सरकारी सेवाओं को लोगों के घर तक पहुंचाने की पहल की, जिसके लिए उन्हें प्रधानमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार 2022 मिला।

भैंसी नदी-जो कभी सूखी थी, अब फिर बहने लगी :

14 सितंबर 2024 को उन्हें शाहजहाँपुर का डीएम बनाया गया। तब किसी ने नहीं सोचा था कि कुछ महीनों में यहां की तस्वीर ही बदल जाएगी। पुवायां तहसील की भैंसी नदी, जो कभी गांवों की जिंदगी थी, अब पूरी तरह सूख चुकी थी। धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने इस नदी को फिर से जिंदा करने की ठान ली। उन्होंने पुराने नक्शे निकाले, गांवों में लोगों से बात की और दो दर्जन से ज्यादा जेसीबी मशीनें लगाकर 53 किलोमीटर लंबी इस नदी को फिर से बहाने लायक बना दिया। अब ये नदी दोबारा पानी से लबालब होने को तैयार है। साथ ही लोगों की उम्मीदों से भी। केवल नदी को बहाना ही नहीं, उन्होंने उसके किनारों पर हजारों पेड़ लगवाने का भी अभियान जिलाधिकारी द्वारा शुरू किया जा रहा है। इस अभियान में गांव के लोग, स्कूल के बच्चे, अधिकारी और एनजीओ सब साथ आएँगे। आज यह काम एक जन आंदोलन बन गया है।

धर्मेंद्र स्वयं संभालते हैं घर और दफ्तर :

धर्मेंद्र सिंह सिर्फ एक ईमानदार और मेहनती अफसर ही नहीं हैं, बल्कि एक अच्छे परिवार के मुखिया भी हैं। उनकी पत्नी डॉ. एकता सिंह एक जानी-मानी महिला डॉक्टर हैं और उनका बेटा आईआईटी दिल्ली में पढ़ाई कर रहा है। वो बताते हैं कि एक अच्छा अफसर बनने के लिए घर की जिम्मेदारी निभाना भी उतना ही जरूरी है।

समाज के बने मिसाल और प्रेरणा :

आज जब लोगों को लगता है कि सरकार या प्रशासन से कुछ नहीं होने वाला, तब धर्मेंद्र प्रताप सिंह जैसे अफसर उम्मीद की किरण बनकर सामने आते हैं। उनके काम खुद बोलते हैं। इसलिए हाल ही में उन्हें उत्तर प्रदेश के सबसे बेहतरीन जिलाधिकारियों में टॉप रैंक मिला है। उनकी कहानी सिर्फ एक नदी को दोबारा बहाने की नहीं है-ये कहानी है संकल्प, मेहनत, और जनसेवा की। वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं-एक ऐसा अफसर, जो जल, जीवन और जनता को जोड़ता है। 'जहां नदी बहती है, वहां जीवन मुस्कुराता है और और जहां ऐसे अफसर हों, वहां तरक्की की नदियां कभी नहीं सूखती।'

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