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बदलते काशी ने धर्म के प्रति राजनीतिक दलों की सोच भी बदली

Update: 2022-03-06 06:45 GMT

उत्तरप्रदेश प्रदेश का विधानसभा चुनाव अब अंतिम चरण में पहुंच गया है। सात मार्च को होने वाले अंतिम चरण के मतदान से पहले सभी राजनीतिक दल और उनके बड़े नेता बाबा विश्वनाथ की शरण में पहुंचे। बाबा विश्वनाथ सभी पर कृपा बरसा रहे हैं। यह अलग बात है कि कोई उनकी कृपा के समुंदर में भीग गया है तो कोई सिर्फ अपनी राजनीतिक नैया को पार कराने की कोशिश में है। इस बार तो हर किसी को बाबा भोलोनाथ याद आ गए हैं। उन्हें भी जिन्हें यह सिर्फ 'माइथोलॉजीÓ का विषय लगता रहा और उन्हें भी जो धर्म को सिर्फ हिन्दुओं और ब्राह्मणों का धंधा या दिखावा मानते रहे हैं।

वेब डेस्क। वर्तमान में काशी विश्वनाथ की सूरत काफी बदल गई है। मोदी सरकार में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया है। प्रधानमंत्री ने उद्घाटन भी कर दिया है। सीधे गंगा घाट से भी जोड़ दिया है। अभी तक तस्वीरों में शिव जी की जटाओं से गंगा निकलती देखते थे। अब गंगाजल लेकर सीधे शिव का अभिषेक किया जा सकता है। विश्वनाथ मंदिर पहले करीब तीन हजार वर्गफीट में फैला था। अब इसका विस्तार पांच लाख वर्ग फीट में हो गया है। करीब चार सौ करोड़ की लागत से मंदिर के आसपास के तीन सौ भवनों को खरीदा गया और फिर इसे नई सूरत देने का काम शुरू हुआ। विश्वनाथ धाम के लिए खरीदे गए भवनों को नष्ट करने के दौरान 40 से ज्यादा पुराने मंदिर भी मिले। इन मंदिरों को भी इसी कॉरिडोर प्रोजेट के तहत नए सिरे से संरक्षित किया गया है। वाराणसी देश के सबसे पुरानों शहरों में से एक है। आध्यात्मिक शहर, संगीत और कला का शहर, संस्कृति का वाहक शहर, साधु-संतों और घाटों का शहर, मणिकर्णिका घाट पर दिन रात जलती लाशों की कभी न बुझने वाली चिताओं से जुड़ा जिंदा शहर, सैकड़ों बरसों से देश और विदेशी लोगों को आकर्षित करने वाला शहर।

लेकिन साल 2014 में भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी ने इसे एक बार फिर तब राजनीतिक नशे पर चर्चा में ला दिया जब उन्होंने गुजरात से यहां जाकर चुनाव लडऩे का फैसला किया और कहा कि मां गंगा ने मुझे बुलाया है। तब बहुत सी बातें हुईं। पहली यह कि मोदी चुनाव भले ही लड़ रहे हों लेकिन वो वड़ोदरा और वाराणसी में से वडोदरा को ही चुनेंगे और फिर गुजरात लौट जाएंगे। लेकिन मोदी ने वड़ोदरा सीट छोड़ दी और वाराणसी से सांसद हो गए। अगले चुनाव में भी उन्होंने वाराणसी को ही चुना। वाराणसी से उन्होंने सिर्फ चुनावी रिश्ता ही नहीं रखा। इसके विकास, इसके बदलाव, इसके सौंदर्यीकरण, गंगा की सफाई और गंगा घाटों का चेहरा बदलने में जुट गए। कुछ लोग कह सकते हैं कि मोदी जी ने काशी को योटो बनाने की बात की थी, वो तो अब तक नहीं बना है, लेकिन बनारस बदल रहा है, गंगा के जल की तरह, हर दिन नया बनारस। काशी पूरे देश का संगम स्थान माना जाता है। इतिहास पर नजर डालें तो काशी की महाा साफ हो जाती है। यह भगवान शिव की नगरी है जहां बाबा विश्वनाथ विराजते हैं। इसके साथ भगवान बुद्ध का पहला उपदेश काशी में हुआ।

शंकराचार्य का पहला व्यायान सत्र और स्वामी विवेकानंद ने भी अपने पहले विचार-प्रचार के लिए काशी को चुना था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभी दो दिन पहले काशी का जिक्र करते हुए कहा था कि कुछ लोगों ने मेरी मृत्यु की कामना काशी में की थी। मोदी जी ने कहा कि यह मेरा सौभाग्य होगा कि मैं बाबा महादेव के भतों की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दूं और यहीं मृत्यु को प्राप्त करूं। मोदी जी का यह जवाब समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के उस बयान पर था जब उन्होंने कहा था कि मोदी जी वाराणसी जा रहे हैं तो अच्छी बात है। आखिरी दौर में सबको काशी जाना चाहिए। हालांकि बाद में उन्होंने सफाई दी कि उनका उद्देश्य मोदी जी की आयु से नहीं, बल्कि योगी सरकार के आखिरी चरण को लेकर था लेकिन तब तक बातों का यह तीर उड़ चुका था। 

काफी लंबी है काशी विश्वनाथ को तोडऩे और फिर से बनाने की कहानी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को लेकर काम किया। पिछले दिनों उन्होंने इसका उद्घाटन किया। यह कॉरिडोर काशी विश्वनाथ मंदिर को सीधा गंगा घाट से जोड़ता है। खुद मोदी जी भी गंगा जल लेकर बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करने पहुंचे थे। यानी वह बाबा विश्वनाथ के भतों को भावनात्मक रूप से जोडऩे में लगे थे। आठ सौ करोड़ की इस परियोजना से 240 साल बाद यह आध्यात्मिक केन्द्र नए अवतार, नए रूप में दिखाई देने लगा है। काशी विश्वनाथ को तोडऩे और फिर से बनाने की कहानी काफी लंबी है जो सैकड़ों सालों से चली आ रही है। बहुत से साम्राज्यों ने इसे तोड़ा तो उसके जवाब में बहुत से साम्राज्यों ने इसका पुनर्निर्माण भी कराया। पिछले एक हजार साल में चार बार काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने की कोशिश की गई।

आक्रमणकारी तीन बार सफल भी हुए लेकिन हर बार उसे और ज्यादा ताकत और भावना के साथ ज्यादा बेहतर रूप दिया गया। औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1669 को आखिरी बार विश्वनाथ मंदिर को तोडऩे के आदेश दिए थे और तभी ज्ञानव्यापी मस्जिद बनवाई गई थी। इसके बाद सौ साल से ज्यादा समय तक काशी विश्वनाथ मंदिर नहीं था। फिर 1780 में इन्दौर की मराठा महारानी अहिल्या बाई होलकर ने मौजूदा मंदिर का निर्माण कराया। इतिहास की किताबों के मुताबिक कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1194 ईस्वी में पहली बार काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया। वह मोहमद गौरी का कमांडर था। करीब सौ साल बाद एक गुजराती व्यापारी ने मंदिर का दोबारा निर्माण कराया।

मंदिर पर दूसरी बार आक्रमण जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने 1447 में कराया था। तब मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया था। सौ साल से ज्यादा समय के बाद 1585 में राजा टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। राजा टोडरमल अकबर के नवरत्नों में से एक माने जाते हैं। फिर शाहजहां ने 1642 में काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया लेकिन तब हिन्दुओं के भारी विरोध की वजह से इसे तोड़ा नहीं जा सका। उस समय काशी के साठ से ज्यादा मंदिर तोड़े गए थे। इतिहास के जानकार बताते हैं कि राजा रणजीत सिंह और दूसरे कई राजाओं ने भी अलग-अलग समय में मंदिर के लिए दान दिया। राजा रणजीत सिंह ने मंदिर के लिए सोना दान किया तो राजा त्रिवक्रम नारायण सिंह ने गर्भगृह के लिए चांदी के दरवाजे दान दिए। अहिल्या बाई होल्कर ने तो मंदिर का पुनर्निर्माण ही कराया था।




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