एक बार फिर से रफाल ही क्यों?

Update: 2023-07-18 19:44 GMT

मेजर सरस् त्रिपाठी

भारत के लिए कूटनीतिक दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण है कि बैस्टिल दिवस, 14 जुलाई (फ्रांंसीसी राष्ट्रीय दिवस) पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि थे। स्मरणीय है कि 14 जुलाई 1789 में फ्रांस की क्रांति की वर्षगांठ पर यह दिवस मनाया जाता है। भारतीय प्रधानमंत्री के मुख्य अतिथि होने के महत्व पर मैक्रोन के एक सहयोगी ने कहा, 'भारत हमारी इंडो-पैसिफिक रणनीति के स्तंभों में से एक है। मोदी को इस अवसर पर फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान 'ग्रांड क्रॉस ऑफ द लीज़न ऑफ आनर से सम्मानित किया गया।

राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय चर्चा की दृष्टि से इस दौरे का सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु भारतीय नौसेना के लिए 26 रफाल-एम (रफाल-मैरीन) की खरीददारी का समझौता है। स्मरणीय है कि भारत फ्रांसीसी हथियारों के सबसे बड़े खरीदारों में से एक है। मोदी ने 2015 में पेरिस की यात्रा के दौरान भारतीय वायुसेना के लिए 36 रफाल लड़ाकू विमानों के लिए एक ऐतिहासिक सौदे की घोषणा की थी, जिसकी कीमत उस समय लगभग 4.0 बिलियन यूरो (4.24 बिलियन डॉलर) थी। ये विमान अब भारतीय वायुसेना में सम्मिलित हो चुके हैं। इस बार के रफाल-एम के सौदे के विषय में फ्रांसीसी फर्म दसॉउ एविएशन ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि 'भारत सरकार ने भारतीय नौसेना को नवीनतम पीढ़ी के लड़ाकू विमान से लैस करने के लिए रफाल (रफाल-एम) के चयन की घोषणा की है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि रक्षा संबंध फ्रांस के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों का मूल स्तंभ हैं। दोनों देश तीन अतिरिक्त पनडुब्बियों के निर्माण और लड़ाकू जेट इंजनों के सह-विकास पर सहमत हुए।

इस घोषणा से एक दिन पहले भारत सरकार की रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने नौसेना के लिए अतिरिक्त 26 रफाल-एम लड़ाकू विमानों और तीन स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों की खरीद के लिए प्रारंभिक मंजूरी दे दी थी। अकेले रफाल लड़ाकू विमानों की लागत लगभग 5 से 6 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है। रफाल-एम की खरीद का निर्णय भारतीय रक्षा अधिकारियों द्वारा शुरू की गई एक अंतरराष्ट्रीय परीक्षण प्रतियोगिता अभियान के बाद लिया गया है। इसके दौरान नौसेना ने सहमति दी कि रफाल भारतीय नौसेना की परिचालन आवश्यकताओं को पूरी तरह से पूरा करता है और इसके एयरक्राफ्ट कैरियर की विशिष्टताओं के लिए पूरी तरह से अनुकूल है।

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जिस कंपनी से रक्षा समझौते के बाद मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की गयी उसी कंपनी से दोबारा सरकार ने रफाल खरीदने का समझौता कर लिया? असल में भारतीय नौसेना अपने विमानवाहक पोत के लिए लड़ाकू विमान की खोज कर रही थी जिसके लिए रफाल के प्रारंभिक प्रतिद्वंद्वी अमेरिकी एफ-18 सुपर हारनेट्स ब्लाक बोइंग, एफ-35 (लाकहीड मार्टिन) और साब-जेएसएस 39 ग्रिपेन तथा यूरो-फाइटर रहे हैं। बाद में एफ-18 और रफाल में निकटतम प्रतिद्वंद्विता रही है। लेकिन प्रारम्भ से ही भारतीय वायुसेना की और अब भारतीय नौसेना की पहली पसंद रफाल ही रहा है। स्मरणीय है कि 2006 में मनमोहन सरकार ने भी 126 रफाल ही खरीदने का निर्णय लिया था जो भारतीय वायुसेना और नौसेना की अनुशंसा और पसंद पर आधारित था। 2015 में मोदी सरकार ने भी रफाल ही खरीदने का निर्णय लिया। इतना ही नहीं यह विवाद सर्वोच्च न्यायालय तक गया जहां सर्वोच्च न्यायालय ने भी रफाल सौदे को सही ठहराया। फ्रांस निर्मित मिराज-2000 भारत की वायुसेना का पहले से ही हिस्सा है।

अब प्रश्न यह है कि भारतीय वायुसेना और नौसेना रफाल पर ही इतनी मोहित क्यों हैं? इसके अनेक कारण हैं। सबसे बड़ा कारण इसकी भारतीय आवश्यकताओं के लिए उपयुक्तता है। भारत को एक 'मल्टी रोल मीडियम रेंजÓ फाइटर चाहिए था। रफाल मल्टी रोल (बहुविधिक कार्य करने वाला) फाइटर है। इसमें उन्नत रडार, फाइटर का कम वजन, अपने वजन से 10 गुना 'लोड कैरिंग कैपेसिटीÓ, सिंगल सीटर और ट्विन सीटर ऑप्शन इत्यादि इसके पक्ष में पलड़े को झुका लेते हैं। भारतीय नौसेना को रफाल-एम के पक्ष में जो एक और फैक्टर प्रभावित करता है वह Interoperability4 या अंतरनिर्भरता है। नौसेना के पायलट पहले वायु सेना के साथ ही ट्रेनिंग करते हैं। रफाल के साथ अंतरनिर्भरता एक बहुत बड़ा फैक्टर है। वैसे भी नौसेना को हल्का लड़ाकू विमान चाहिए होता है क्योंकि ये धरती पर नहीं बल्कि एयरक्राफ्ट कैरियर (समुद्री युद्धक जलपोत) से उड़ान भरते और उतरते हैं। ये सब तथ्य मिलकर रफाल को भारतीय नौसेना के लिए 'श्रेष्ठतम फाइटरÓ की श्रेणी में स्थापित करते हैं। कुछ रणनीतिक तथ्य भी रफाल के पक्ष में जाते हैं। भारत का सबसे बड़ा रक्षा सहयोगी रूस इस समय यूक्रेन के साथ युद्ध में बुरी तरह फंसा हुआ है। रूस की आंतरिक और आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। इसलिए यह आवश्यक है कि भारत युद्ध सामग्री के लिए रूस के बाहर भी देखे। अमेरिका के एफ-18 या एफ-35 के साथ समस्या यह है कि इन विमानों के पुराने वर्जन हमारे दुश्मन (पाकिस्तान) के पास पहले से ही हैं और अमेरिका कब उन्हें नये वर्जन भी दे देगा- कहा नहीं जा सकता। अमेरिका अभी तक भारत का एक विश्वसनीय रक्षा सहयोगी नहीं बन पाया है। इसके अतिरिक्त भारत-फ्रांस डिफेंस रोडमैप में मझगांव डॉकयार्ड लिमिटेड और पनडुब्बियों के लिए नौसेना के बीच समझौता (रूश) पर भी हस्ताक्षर हुआ है। भारत इससे पहले छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों का निर्माण कर चुका है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस प्रोजेक्ट की लागत करीब 4.5 अरब डॉलर आंकी गई है। भारत और फ्रांस भारतीय पनडुब्बी बेड़े और उसके प्रदर्शन को विकसित करने के लिए और अधिक महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का पता लगाने के लिए तैयार हैं। रक्षा क्षेत्र में दूरगामी परिणाम देने वाले 'होराइज़न 2047Ó प्रपत्र में कहा गया है कि रक्षा सहयोग को लड़ाकू विमान इंजन के संयुक्त विकास तक बढ़ाया जाएगा, जिसका रोडमैप 2023 के अंत से पहले तैयार किया जाएगा। इसमें यह भी घोषणा की गई है कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और फ्रांस के सॉफरान हेलीकॉप्टर इंजन के साथ भारतीय मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर (आईएमआरएच) कार्यक्रम के तहत हेवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टरों के इंजन विकास में साझीदार होंगे। सॉफरान लड़ाकू विमान इंजन के संयुक्त विकास में रक्षा सहयोग के लिए 2023 के अंत से पहले डीआरडीओ के साथ एक रोडमैप को भी अंतिम रूप देगा। इसी के साथ डीआरडीओ पेरिस में भारतीय दूतावास में एक तकनीकी कार्यालय स्थापित करेगा।

साफ है भारत और फ्रांस के बीच रणनीतिक साझेदारी और परिपक्व दौर में प्रवेश कर रही है। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन ने चीन का नाम लिए बिना इशारा किया कि 'इंडो-पैसिफिक एक ऐसा स्थान है जो सब के लिए खुला रहना चाहिए और किसी भी प्रकार के आधिपत्य से मुक्त होना चाहिए।Ó उपरोक्त सभी रक्षा सहयोग इस बात का स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि भविष्य में रूस को पीछे छोड़ते हुए फ्रांस भारत का सबसे बड़ा रक्षा सहयोगी हो सकता है।

(लेखक भारतीय सेना में मेजर रहे हैं औऱ वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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