डॉ. प्रिया जैन
जनसंख्या के मामले में हम दुनिया में चीन को पछाड़ कर अब शीर्ष पर खड़े हैं। पर जनसंख्या वृद्धि के इस तमगे के पीछे सांख्यकीय गणनाओं के अलावा और भी बहुत कुछ है, जिन्हें हम दरकिनार करते हुए ऐसे स्वरूप में ले जाते हैं, जिन पर हम अक्सर हास परिहास करते हैं या फिर बदलते परिवेश में आजकल धर्म से जोड़कर भी अक्सर इससे जुड़े कुछ मुद्दों का विश्लेषण किया जाने लगा है। कभी- कभी हम आबादी के लिहाज से कम होते खाद्य संसाधनों की बात भी कर लेते हैं, तो कभी रेल या हवाई जहाज में खास मौकों पर टिकट न मिलने से बढ़ती आबादी के कारण घटती सुविधाओं की उपलब्धता पर भी चिंता व्यक्त कर लेते हैं। जब बच्चों को बेहतर और वांछित शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश नहीं मिल पाता तो मानसिक दबाव के साथ- साथ वैश्विक स्तर पर हमारा चिंतन पहुँच जाता हैं, और भी बहुत सारी वजहें होती हैं नौकरी, शादी, भीड़, पर्यावरण, औद्योगीकरण वगैरह वगैरह...। गाहे - बगाहे कामकाजी दंपत्ति के सिंगल चाइल्ड संकल्पना की ओर बढ़ते रुझान के कारण चाचा, मौसी, बुआ, चचेरे-मौसेरे भाई बहन के खत्म होते रिश्तों और इससे बदलते सामाजिक ताने बाने तथा बच्चों के मानसिक विकास पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी चर्चाएं होने लगी हैं।
प्रजनन स्वास्थ्य के अंतर्गत परिवार नियोजन से सम्बंधित एक शब्द 'अनमेट नीडÓ का प्रयोग किया जाता है, जिसका अभिप्राय है परिवार नियोजन के आकांक्षी दंपति को परिवार नियोजन के साधन की सहज उपलब्ध्द्ता न होना या उपलब्ध न हो पाना। विशेष तौर पर महिलाओं के लिए जब हम 'अनमेट नीडÓ का विश्लेषण करेंगे तो बहुत से ऐसे मसले सामने आना चाहेंगे जिन्हें परिवार से लेकर समाज तक सामने लाने के लिए स्वत:स्फूर्त प्रयास करता नहीं दिखता। हालांकि स्वास्थ्य विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग और कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं कई दशकों से इससे जुड़े मुद्दों पर गंभीर प्रयास कर रही हैं अन्यथा सर्वाधिक जनसंख्या का खिताब शायद कई साल पहले हमारे देश को मिल चुका होता।
हिन्दू धर्म और संस्कृति के सोलह संस्कारों में गर्भाधान संस्कार को प्रथम संस्कार माना गया है। गर्भाधान संस्कार पारिवारिक और सामाजिक अनुष्ठान है, जिसमें भावी माता- पिता, परिवार, समाज तक के सही आचार-विचार और व्यवहार के गर्भवती और संतान पर शारीरिक और मानसिक प्रभाव तक का ध्यान रखा गया है। हमारे संस्कार और संस्कृति में कर्तव्यों पर इतना ध्यान केंद्रित था कि महिलाओं के प्रजनन अधिकार की स्वत: रक्षा और सम्मान होता था। अब हम समय के साथ अपने संस्कारों के स्वरुप में बदलाव कर बेबी शावर जैसे कार्यक्रम आयोजित करने लगे है ।
पहले संयुक्त परिवारों और सांस्कृतिक रूप से सुगठित समाज के अंदर भाभियों, मामियों, शादीशुदा ननदों, बहनोइयों और गांव-मोहल्ले की दाइयां बिना किसी इंसेंटिव की अपेक्षा से भी सदियों से अनुभव और संस्कृति आधारित परिवार नियोजन के विमर्श नव दम्पतियों को उपलब्ध कराते रहे हैं। बहरहाल वर्तमान परिवेश में सामुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहीं हमारी आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्तायें, एएनएम के द्वारा किये जा रहे कार्यों की एक बड़े वर्ग की महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य की देखभाल में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। इन प्रथम स्तरीय महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा परिवार नियोजन के साधनों के बारे में बताना और उसके साधन उपलब्ध कराने में सहयोग करने का नतीजा है कि परिवार नियोजन के साधनों की पहुँच बढ़ी है पर आंतरिक शरीर पर साधनों का उपयोग करने में महिलाओं की संख्या ही अधिक है।
जनसँख्या बढ़ने और कम होने के कई प्रभावों से दुनिया के बहुत से देश अलग- अलग तरीके से जूझ रहे हैं । प्रजनन दर और क्षमता देश के आर्थिक और सामाजिक विकास को प्रभावित करती है। जापान और चीन जैसे देशों की उत्पादकता दर बुज़ुर्ग आबादी होने के कारण प्रभावित होने लगी है। जिसके सामाजिक और मनोविज्ञानिक प्रभाव भी परिलक्षित होने लगे हैं। प्रजनन दर में अपेक्षित संतुलन और लैंगिक समानता को अंतराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं एवं सतत विकास के लक्ष्यों के साथ जोड़कर देश की नीतियों और योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए। इसमें लैंगिंक समानता की शक्ति को हर लिहाज से बिना किसी भेदभाव के उजागर किया जाना चाहिए, जिससे न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व, पृथ्वी और समाज के संवहनीय विकास के लिए नवीन संभावनाओं और नवाचारों के द्वार खोले। यही इस वर्ष 2023 में विश्व जनसंख्या दिवस की थीम भी है।
(लेखिका हेल्थ साइकोलोजिस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता एवं शोध अध्येता हैं)