जी 20 देशों के संगठन के दिल्ली में होने जा रहे सम्मेलन को ऐतिहासिक महत्व का बताए जाने पर कुछ लोगों को आश्चर्य होता है। लेकिन मुझे लगभग 40 साल पहले 1983 में हुए गुट निरपेक्ष देशों के संगठन और फिर राष्ट्रमंडल देशों के संगठन को पत्रकार के रुप में कवर करने और कई बार संयुक्त राष्ट्र महासभा की न्यूयॉर्क में होने वाली बैठकों में भारत के प्रधानमंत्रियों, विदेशमंत्रियों को बोलते देखने तथा भारत की भूमिका पर लिखने के अवसर मिलते रहे हैं, इसलिए मेरा मानना है कि इस समय उन सभी संगठनों के मुकाबले जी -20 संगठन का पलड़ा बहुत भारी हो गया है। वहीं बदलते अंर्तराष्ट्रीय परिदृश्य में अब महाशक्ति और संपन्नतम कहे जाने वाले देशों से अधिक भारत का महत्व बढ़ गया है। अब जरा सोचिये गुट निरपेक्ष देशों के संगठन में 120 सदस्य देश हैं और राष्ट्रमण्डल देशों के संगठन में 56 सदस्य देश हैं और संयुक्त राष्ट्र संगठन में तो 193 सदस्य देश हैं, लेकिन क्या ये संगठन रुस - यूक्रेन युद्ध को रोक पाने या आतंकवाद को पोषित करने वाले पाकिस्तान - अफगानिस्तान को नियंत्रित कर पा रहे हैं? यही नहीं अमेरिका - रुस - चीन - यूरोप और एशिया - अफ्रीका के साथ समान स्तर पर सम्बन्ध रखते हुए विश्व राजनीति , आर्थिक मामलों और मानवीय तथा पर्यावरण समस्याओं पर भारत के अलावा कोई अन्य देश अहम् भूमिका निभा सकता है?
जी - 20 देशों के दिल्ली सम्मलेन को ऐतिहासिक और भव्य बनाए जाने पर कुछ विशेषज्ञों को आपत्ति हो रही है, क्योंकि इसकी अध्यक्षता हर सदस्य देश को मिलने की परम्परा है। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि इस समय हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की भूमिका अहम् हो गई है। हम जैसे पत्रकार या विदेश मंत्रालय में रहे वरिष्ठ राजनयिक यह कैसे भूल सकते हैं कि 1983 में गुट निरपेक्ष देशों के राष्ट्र प्रमुखों और उनको सहयोगियों को ठहराने तक की व्यवस्था के प्रश्न पर अधिकारियों, नेताओं के हाथ पैर फूल गए थे। फिर सारे दावों के बावजूद सम्मेलन के सत्रों और निर्णयों पर पर्दे के पीछे सोवियत या अमेरिकी लॉबी सक्रिय रही। पराकाष्ठा यह थी कि छोटे से देश का प्रमुख किसी प्रतिद्वंदी को उससे पहले बोलने पर बहिष्कार कर वापस जाने की धमकी देता था। क्या आज कोई विकसित संपन्न देश भी भारत को ऐसी धमकी दे सकता है? इसी तरह विश्व मंच पर अमेरिका, चीन, पाकिस्तान भारत के विरुद्ध अभियान चला रहे थे। आज अमेरिका हर मुद्दे पर भारत को आगे रखकर अपने लाभ देख रहा है। राष्ट्रमंडल देशों के संगठन में 1983 में ब्रिटिश प्रधान मंत्री मार्गरेट थेचर ही नहीं महारानी एलिजाबेथ राष्ट्रपति भवन में बैठकर अपने ढंग से कार्यक्रम करने का प्रयास कर रहीं थी। तब भारत सरकार के राजनयिकों को बहुत कठिनाई से दोनों पक्षों की इज्जत बचाने की कोशिश करनी पड़ी थी। क्या आज ब्रिटेन भारत को परेशान करने की स्थिति में है ? इसके विपरीत ब्रिटिश प्रधानमंत्री सुनक भारत और हिन्दू होने के गीत गाते दिख रहे हैं। चीन एक तरफ छेड़खानी करता रहता है, लेकिन सम्मेलनों में आर्थिक संबंधों के लिए भारत से जुड़े रहने की कोशिश कर रहा है। रुस, फ्रांस, जापान, जर्मनी हो या ईरान और संयुक्त अरब अमीरात भारत से संबंधों को अधिकाधिक मजबूत करने के प्रयास कर रहे हैं। इसलिए जी -20 के सम्मलेन से भारत के ताज की चमक दुनिया को दिखाई देने वाली है।
जी 20 दुनिया की सबसे बड़ी 20 अर्थव्यवस्थाओं का समूह है। इसका विश्व सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 80 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार में 5 प्रतिशत और विश्व जनसंख्या में 60 प्रतिशत योगदान है और यह समकालीन वैश्विक राजनीति में सबसे प्रमुख बहुपक्षीय समूहों में से एक बन गया है। जी 20 की अध्यक्षता भारत के लिए कई कारणों से मायने रखती है। पहला, एजेंडा-सेटिंग अंतरराष्ट्रीय राजनीति, विशेषकर बहुपक्षीय मंचों पर शक्ति और प्रभाव हासिल करने और बढ़ाने के लिए बड़ा अवसर। वैश्विक मंचों पर, भारत हमेशा ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनने के लिए प्रचार और प्रयास करना चाहता था। भारत ग्लोबल साउथ के हितों और ग्लोबल साउथ की आवाज के रूप में नई दिल्ली की अपनी साख को आगे बढ़ाने के लिए अपनी जी20 नेतृत्व भूमिका का उपयोग कर रहा है। विश्व के बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार करके उन्हें अधिक समावेशी और जिम्मेदार बनाना भारतीय विदेश नीति की सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकताओं में से एक है। जलवायु परिवर्तन, आर्थिक सुधार, महामारी और बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव जैसे मुद्दों का सामना करते हुए, वैश्विक समुदाय प्रभावी और जवाबदेह बहुपक्षीय संस्थानों की तलाश कर रहा है जो क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकें। इसलिए, भारत ने 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने के लिए उपयुक्त सुधारित बहुपक्षवाद को अपनी प्राथमिकताओं में से एक के रूप में रखा। इससे वैश्विक राजनीति में भारत का कद और रुतबा बढ़ेगा। भारत का नेतृत्व ऐसे समय में आया है जब वैश्विक स्तर पर उतार-चढ़ाव के दौर के साथ-साथ वैश्विक तनाव भी बढ़ रहा है। दुनिया को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें कोविड-19 के बाद आर्थिक सुधार, जलवायु परिवर्तन, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा संकट, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और संघर्ष शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को उम्मीद है कि भारत इन मुद्दों के समाधान के लिए वैश्विक सहमति बनाने और वैश्विक आम वस्तुओं के भविष्य के एजेंडे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसी तरह, दुनिया यह भी उम्मीद कर रही है कि भारत देशों के बीच बढ़ते विभाजन को पाटेगा, न केवल विकासशील और विकसित दुनिया बल्कि पश्चिम के बीच भी दरार, खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्षों के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मंचों अथवा द्विपक्षीय वार्ताओं में भारत की स्थिति मजबूत की है। उनका यह दावा सही है कि जी -20 समूह की बैठक की मेजबानी करना भारत की आजादी के ७5वें वर्ष में गौरव की बात होने के साथ देश लिए एक महान अवसर है।
भारत में जी-20 सम्मेलन का होना, पाकिस्तान जैसे देशों के लिए ये चिंता का विषय हो सकता है। गौरतलब है कि इसका आयोजन करने वाले देशों को ट्रोइका कहा जाता है, इसलिए उनके मुद्दों को अहम माना जाता है।
भारत इस बैठक के आयोजन के साथ ही, एक साफ्ट पावर के तौर पर अपनी पहचान बना रहा है। आने वाले समय में पूरी दुनिया की निगाहें भारत पर ही टिकी हुई हैं। इस वक्त पूरी दुनिया, आर्थिक मंदी के मुहाने पर खड़ी है। कोविड के बाद वैश्विक व्यापार पर असर पड़ा है। गरीब देश और गरीब हुए हैं, वैश्विक असमानता बढ़ी हैं। इस वक्त पूरी दुनिया में महंगाई बहुत बड़े स्तर पर पहुंच गयी है। कई विकसित देश भी खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। ऐसे में सभी देश भारत की ओर, उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं। अनतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक 'भारत दुनिया की तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। अगले साल जर्मनी, रूस और इटली जैसे मजबूत और बड़ी अर्थव्यवस्थाएं कमजोर होती जाएगी। ब्रिटेन की विकास दर 0.3 प्रतिशत, अमेरिका की विकास दर केवल1 प्रतिशत रहेगी। इस नाजुक दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था 6.1 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ेगी।
दूसरी तरफ आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में भारत अग्रणी है। भारत के रूस के साथ दोस्ताना संबंध हैं। यूक्रेन और उसके समर्थक पश्चिमी देशों के साथ भी भारत के संबंध अच्छे हैं। इस युद्ध के समाधान को लेकर पूरी दुनिया, भारत से पहल करने गुजारिश करती रही है। सबको मालूम है, कि इस युद्ध को अगर कोई देश रोक सकता है, या दोनों देशों में संधि करवा सकता है, तो वो केवल भारत है। भारत ने अभी तक इस युद्ध को लेकर तटस्थ रुख अपनाया हुआ है। हालांकि कई वैश्विक मंचों पर भारत ने युद्ध रोककर, शांतिपूर्ण हल निकालने की बात कही है। कोविड महामारी के दौरान भारत की वसुधैव कुटुंबकम वाली संस्कृति देखकर, दुनिया को अहसास हो गया, कि भारत विश्व पटल पर एक मददगार देश है। भारत ने महामारी काल में कोविड वैक्सीन पूरी दुनिया को सप्लाई की थी। गरीब देशों को भारत ने मुफ्त में वैक्सीन उपलब्ध करवाई थी। कोविड काल में भारत ने दुनिया के 101 देशों को 23 करोड़ 90 लाख वैक्सीन डोज दी थी।
दुनिया में बढ़ रही खाद्य असुरक्षा को लेकर भारत की पहल को दुनिया ने सराहा था। रूस और यूक्रेन, पूरी दुनिया में अनाज के बड़े सप्लायर हैं, लेकिन इन देशों के बीच चल रहे युद्ध की वजह से, कई देशों में खाद्य असुरक्षा की स्थिति बन गई थी। फिर रूस और यूक्रेन के बीच एक सहमति हुई, जिसके बाद अनाज की सप्लाई शुरू कर दी गई है। भारत की पहल से ही, रूस और यूक्रेन के बीच ये सहमति हुई थी। दुनिया पर आया खाद्य संकट, भारत की वजह से टल गया। पूरी दुनिया, वैश्विक मामलों में भारत की पहल की अहमियत समझ रही है। इस तरह जी - 20 देशों के सम्मेलन के अवसर पर भारत की राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक शक्ति का प्रभाव दुनिया को दिखेगा। वहीं सामरिक संबंधों, परमाणु ऊर्जा के उपयोग, अंतरिक्ष अनुसन्धान, चंद्रयान और सूर्य के रहस्य खोज के प्रयास, डिजिटल क्रांति से विकासशील देशों के साथ विकसित संपन्न देशों के साथ साझेदारी के रास्ते खुल सकेंगें। भारत की इस जयकार पर सरकार ही नहीं हर भारतीय को गौरव होना चाहिए। (लेखक पद्मश्री सम्मानित देश के वरिष्ठ संपादक है)