15 अगस्त से जुड़े कुछ अनछुए प्रश्न
स्वाधीनता 15 अगस्त 1947 को ही क्यों मिली...
विवेक शुक्ला
आप नई दिल्ली के दिल में जनपथ से कुछ आगे बढ़िए। वहां आपको एक गोल चक्कर मिलता है। यहां से अलग-अलग दिशाओं में सड़कें निकलती हैं। उनमें एक सड़क मोतीलाल नेहरू मार्ग की तरफ जाती है। इसे पहले कहा जाता था यार्क रोड। यहां के 17 नंबर के बंगले का देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू तथा भारत के स्वाधीनता दिवस से गहरा संबंध रहा। पंडित नेहरू और तीन मूर्ति भवन को जोड़कर देखा जाता है। हां, वे तीन मूर्ति भवन में रहे। यह तथ्य सही नहीं है। देखिए देश में 2 सितंबर,1946 को अंतरिम सरकार का गठन हुआ और उसके मुखिया बने पंडित नेहरू। अब उन्हें दिल्ली में रहना था,तो उन्हें 17 यार्क रोड ( अब मोती लाल नेहरु मार्ग) का बंगला आवंटित हुआ।
नेहरु जी इसी यार्क रोड के अपने घर से 14-15 अगस्त की रात को काउंसिल हाउस (अब संसद भवन) में हुए गरिमामय कार्यक्रम में भाग लेने के लिए गए थे। फ्रीडम एट मिड नाइट में लैरी कोलिंस तथा डोमिनिको लॉपियर लिखते है- देश के स्वंतत्र होने की खुशी को दिल्ली की फिजाओं में महसूस किया जा सकता था। सड़कों पर साधू और संन्यासी भी प्रकट हो गए थे। नई दिल्ली में जगह-जगह पर शहनाई वादक शहनाई बजा रहे थे। उधर, भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के घर में पूजन हो रहा था देश की खुशहाली और सुख -समद्धि के लिए। वे तब क्वीन विक्टोरिया रोड ( राजेन्द्र प्रसाद रोड) में रहते थे।
कहां थे बापू?
और जब सारी दिल्ली पर देश की निगाहें थी क्योंकि यहां ही सत्ता का हस्तांतरण और दूसरे स्वाधीनता से जुड़े अन्य जरूरी आयोजन हो रहे थे तब हमारे स्वाधीनता आंदोलन के नेता महात्मा गांधी दिल्ली से दूर कोलकत्ता में थे। वे उस दिन कोलकाता के बेलियाघाटा इलाके के हैदरी हाउस में थे। यह वही स्थान है जहां पर बैठकर उन्होंने सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए आमरण अनशन किया था। वे 13 अगस्त, 1947 को यहां आए थे। वे तब शहर में 25 दिनों तक रहे। आजादी के बाद जब कलकत्ता और देश के विभिन्न स्थानों पर सांप्रदायिक दंगे भड़के, उस वक्त गांधीजी ने एक सितंबर को आमरण अनशन शुरू किया था। उनके अनशन करने के बाद हिंदू-मुस्लिम समुदायों के दिग्गज नेताओं ने यहां आकर गांधीजी के सामने माफी मांगी थी। 4 सितंबर को दंगे रुकने के बाद गांधीजी ने अपना अनशन खत्म किया था और वे 7 सितंबर को यहां से चले गए थे। वे दिल्ली में 9 सितंबर,1947 को पहुंचे थे। दिल्ली में आकर भी वे सांप्रदायिक दंगों को रूकवाने में लग गए थे।
यह सवाल बार-बार पूछा जाता है कि ब्रिटिश सरकार ने भारत को 15 अगस्त, 1947 को ही क्यों आजाद किया? क्या इस तारीख को चुनने के पीछे कोई खास वजह थी। लार्ड लुइस माउंटबेटन 3 जून,1947 को कांग्रेस नेताओं से देश के विभाजन की मंजूरी हासिल कर चुके थे। अब वे जल्दी में थे ताकि भारत की आजादी की कोई तारीख की घोषणा कर दें। उसके बाद एक पत्रकार सम्मेलन राजधानी में हो रहा था। वहां पर सम्मेलन के लगभग आखिर में एक सवाल लार्ड माउंटबेटन से पूछा गया कि 'क्या सत्ता के हस्तांरण की तारीख तय हुई?Ó लार्ड माउंटबेटन कुछ पल रूकने के बाद कहते हैं- 'भारतीय हाथों में सत्ता अंतिम रूप से 15 अगस्त, 1947 को सौंपी जाएगी।Ó
चूंकि तब तक खबरिया चैनल और सोशल मीडिया ने तो दस्तक दी नहीं थी। इसलिए सारे देश को माउंटबेटन की घोषणा की जानकारी अगले दिन अखबारों से मिली। इतिहासकार राज खन्ना ने अपनी किताब 'आजादी से पहले,आजादी के बादÓ में लिखा है-'मौलाना आजाद ने माउंटबेटन से अपील की कि वे आजादी की तारीख को एक साल के लिए बढ़ा दें। जल्दबाजी में बंटवारे से पैदा हो रही दिक्कतों का मौलाना आजाद ने हवाला दिया।Ó वे अपने 4 किंग एडवर्ड रोड ( अब मौलाना आजाद रोड ) के बंगले में पत्रकारों से मिलकर इस मसले पर विस्तार से बात भी कर रहे थे। उस बंगले को उनकी 1958 में मौत के बाद तोड़कर विज्ञान भवन खड़ा किया गया था।
बहरहाल, लार्ड माउंटबेटन ने किसी की नहीं सुनी। भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया। माउंटबेटन ने तो नहीं बताया कि उन्होंने क्यों 15 अगस्त, 1947 की तारीख को चुना था भारत को आजाद करने के लिए । राज खन्ना लिखते हैं- 'माउंटबेटन के प्रेस सचिव कैम्पवेल जॉनसन ने एक बार खुलासा किया था कि 15 अगस्त, 1947 का दिन इसलिए चुना गया था,क्योंकि 15 अगस्त, 1945 को जापान की सेनाओं ने मित्र देशों की सेना के सामने आत्म समर्पण किया था। इसी दिन दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ था।Ó तो साफ है कि माउंटबेटन चाहते थे कि भारत को उस दिन आजाद किया जो ब्रिटेन के इतिहास में खास दिन था।