साध्वी रमणीक कुंवर जी! गुरु छाया का प्रतिरूप

81वे जन्मदिवस पर विशेष

Update: 2023-08-17 21:22 GMT

अशोक कोचेटा

प्रसिद्ध जैन संत मालव केसरी पूज्य श्री सौभाग्यमल जी म.सा. के मुखारबिंद से दीक्षा लेने वाली और शांति की प्रतिमूर्ति पूज्य शांति कुंवर जी म.सा. की सुशिष्या साध्वी रमणीक कुंवर जी का व्यक्तित्व जिन शासन की अनमोल धरोहर है। उनके गुणों का जितना बखान किया जाए उतना कम है। सरलता, सहजता, वात्सल्यता और निरहंकारिता की वह प्रतिमूर्ति हैं। उनके दर्शन और वंदन करने वाले श्रद्धालुओं से जब वह कहती हैं दया पालो पुण्यवानो तो रोम-रोम पुलकित हो उठता है। अनुशासित और संस्कारित जीवन जीने की वह प्रेरणा देती हैं और भारतीय संस्कृति को विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति बताकर उसका आचरण करने की नसीहत वह अपने अनुयायियों को देती हैं। गुरु भक्ति की वह अनुपम मिसाल हैं।

साध्वी रमणीक कुंवर जी का जन्म निमाड़ के एक छोटे से गांव करई में हुआ था। उनके पिता का नाम धनसुख लाल और माँ का नाम सूरज बाई था। उनके बचपन का नाम दमयंती था। जब वह महज दो वर्ष की थीं तो उनकी माँ का स्वर्गवास हो गया था। उनकी माँ जैन कुल में मूर्तिपूजक समाज से थीं। सौतेली माँ ने उनका लालन पालन किया। वह स्थानकवासी समाज की थीं जबकि उनकी धाई माँ वैष्णव धर्म का पालन करती थीं। बालिका दमयंती ने तीन-तीन माँ का दूध पिया था। परिवार बहुत समृद्ध था तथा धन दौलत और जमीन जायदाद की कोई कमी नहीं थी। नौ वर्ष की उम्र होते-होते दमयंती के सिर से पिता का साया भी उठ गया। पिता के वियोग के साथ ही घर में धन संपत्ति का विवाद भी शुरु हो गया जिससे बालिका दमयंती के मन में वैराग्य का बीजारोपण हुआ। इंदौर की मोरसली गली में उनके मामा रहते थे। बालिका दमयंती के मामा के घर के पास जैन स्थानक था जब वह अपने मामा के घर गई तो रास्ते में उन्हें महासती शांति कुंवर जी म.सा. मिलीं और जैन संस्कारों से परिपूरित बालिका ने साध्वी जी को प्रणाम किया और उनसे अपने गांव आने की विनती की। इस पर हंसते हुए शांति कुंवर जी महाराज बोलीं यदि तुम दीक्षा लोगी तो मैं अवश्य तुम्हारे गांव आऊंगी। यह छोटी सी बात बालिका के दिल को लग गई और उसने सहज भाव से कहा कि मैं साध्वी बनूंगी और आपसे दीक्षा लूंगीं। इसके बाद दमयंती अपने गांव करई लौटी और उसने परिवार से दीक्षा लेने की अनुमति मांगी। जैन दर्शन में बिना परिवार की आज्ञा के दीक्षा नहीं दी जाती। दमयंती के दीक्षा लेने की बात सुनकर उनकी सौतेली माँ विफर उठीं और उन्हें लगा कि मुझ पर यह आरोप लगेगा कि मैंने ठीक से देखभाल नहीं की इसलिए दमयंती दीक्षा ले रही है। उन्होंने दीक्षा की अनुमति देने से इंकार कर दिया। बालिका के काका साहब तो दीक्षा का नाम सुनकर लाल पीले हो गए। भाई ने भी दीक्षा लेने की अनुमति नहीं दी। इसके बाद बताया जाता है कि 13 वर्षीय बालिका अपनी मौसी के पुत्र पूर्व मंत्री अमोलक चंद्र छाजेड़ जी से मिलीं। इस पर अमोलक चंद्र जी उन्हें एक जज साहब के पास ले गए। जज महोदय ने सुझाया कि यदि बालिका विवाह कर ले तो अनुमति सिर्फ एक पतिदेव से ही लेनी होगी। इतिहास में यह पहला उदाहरण है जब वैराग्य पथ पर अग्रसर किसी बालिका ने संन्यासी बनने के लिए विवाह की सहमति दी। उनका विवाह 13 वर्ष की उम्र में वकील साहब श्रेयमल जी छाजेड़ के पुत्र अमृतलाल छाजेड़ से हुआ। 8 मार्च 1962 को वह अमूल्य क्षण आ गया जिसकी बालिका दमयंती को प्रतीक्षा थी। मालव केसरी सौभाग्यमल जी म.सा. के मुखारबिंद से और साध्वी चांद कुंवर जी, साध्वी शांति कुंवर जी के सानिध्य में दीक्षा संपन्न हुई। बालिका दमयंती का नामकरण अब साध्वी रमणीक कुंवर जी किया गया। दीक्षा लेने के बाद उन्होंने आगमों का अध्ययन किया, संस्कृत और प्राकृत भाषा में निपुणता प्राप्त की। गुरुणी शांति कुंवर जी महाराज के हर आदेश को शिरोधार्य किया। ज्ञानार्जन का कोई अवसर नहीं छोड़ा और आज भी उनके नौ घंटे साधना में व्यतीत होते हैं। सादगीपूर्ण और संयमित जीवन की वह मिसाल हैं। मानव सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं। गुप्त रुप से पीड़ित मानवता की सेवा के लिए उनके कई उपक्रम संचालित हो रहे हैं। उनके सानिध्य में रहकर उनकी सुशिष्याएं आध्यात्मिक क्षेत्र में उन्नति के पथ पर लगातार अग्रसर हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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