20 जुलाई 2023 को प्रारंभ हुए संसद के मानसून सत्र के शुरू होने के एक सप्ताह के भीतर ही 26 जुलाई 2023 को लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने हृश ष्टशठ्ठद्घद्बस्रद्गठ्ठष्द्ग रूशह्लद्बशठ्ठ यानी 'अविश्वास प्रस्तावÓ रखा। अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करने का मुख्य कारण 'मणिपुर में हो रही हिंसा पर प्रधानमंत्री का मौनÓ बताया गया। श्री गोगोई के अनुसार प्रधानमंत्री को मणिपुर की हिंसा पर बोलना चाहिए था और हस्तक्षेप करना चाहिए था। इतना ही नहीं उनको मणिपुर जाना भी चाहिए था परन्तु जाना तो दूर प्रधानमंत्री इस पर कुछ बोले तक नहीं। गोगोई के अनुसार प्रधानमंत्री तीनों काम को करने में विफल रहे इसलिए उनके विरुद्ध यह अविश्वास प्रस्ताव रखा जा रहा है। लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और 8 अगस्त को चर्चा के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
8 अगस्त को चर्चा प्रारंभ हुई और 10 अगस्त को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा समाप्त हुई। इस दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने किसी भी अविश्वास प्रस्ताव पर अब तक का सबसे लंबा भाषण दिया। उन्होंने विपक्ष की प्रत्येक विषय पर अच्छी खासी खिंचाई ही नहीं की बल्कि अपनी सरकार की उपलब्धियों का भी वस्तुपरक प्रस्तुतिकरण बहुत तार्किक ढंग से किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में उनके विरुद्ध लाया गया यह दूसरा अविश्वास प्रस्ताव (हृश ष्टशठ्ठद्घद्बस्रद्गठ्ठष्द्ग रूशह्लद्बशठ्ठ) है। इसके पहले 2018 में अविश्वास प्रस्ताव उनके विरुद्ध लाया गया था जो पारित नहीं हो पाया था। 8 अगस्त को अविश्वास प्रस्ताव पर प्रारंभ हुई बहस 10 अगस्त को समाप्त हो गई और अविश्वास प्रस्ताव ध्वनिमत से अस्वीकृत हो गया।
अविश्वास प्रस्ताव तो आते और जाते रहते हैं यह अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं, महत्वपूर्ण है संवैधानिक प्रक्रिया में इसका महत्व, प्रावधान का कारण और इसके मूल में जो संविधान की आत्मा है। संविधान के अनुच्छेद 75(3) में मंत्रिपरिषद को सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदाई माना जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि सरकार के बने रहने के लिए लोकसभा में सरकार का बहुमत हो। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में मात्र एक बार ऐसा अवसर आया जब लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के कारण सरकार गिर गई थी। 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार अविश्वास प्रस्ताव के कारण गिरी थी लेकिन मत विभाजन नहीं हुआ था। अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के अनुमान से ही उन्होंने त्यागपत्र दे दिया।
दूसरी तरफ विश्वास प्रस्ताव (रूशह्लद्बशठ्ठ शद्घ ष्टशठ्ठद्घद्बस्रद्गठ्ठष्द्ग) के गिरने से अनेक सरकारें गिर चुकी हैं। इनमें से तीन उदाहरण बहुत महत्वपूर्ण है। पहला, जब विश्वनाथ प्रताप की सरकार 07 नवम्बर 1990 को विश्वास प्रस्ताव पारित न होने के कारण गिरी थी और उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी से त्यागपत्र देना पड़ा था। दूसरा, 1997 में एच डी देवगौड़ा की सरकार उनके द्वारा प्रस्तावित विश्वास मत प्राप्त नहीं कर पाने के कारण गिर गई थी। तीसरा, अटल बिहारी वाजपेई की सरकार 1999 में मात्र एकमत से विश्वास प्रस्ताव पारित न होने के कारण गिर गई थी।
लोकसभा के नियमानुसार, कोई भी संसद सदस्य जिसके पास 50 सांसदों का समर्थन हो, अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है। हाल ही में अनेक विपक्षी दल, मोदी सरकार के विरुद्ध, विवादास्पद इंडिया (ढ्ढ.हृ.ष्ठ.ढ्ढ.्र.) नामक नवगठित संगठन के पीछे इक_े हुए हैं जिनके बल पर कांग्रेस के लोकसभा में उपनेता गौरव गोगोई ने अविश्वास प्रस्ताव लाया था। सामान्यत: सरकार की सामर्थ्य का परीक्षण करने के दो ही विकल्प उपलब्ध होते हैं: अविश्वास प्रस्ताव यानि हृश ष्टशठ्ठद्घद्बस्रद्गठ्ठष्द्ग रूशह्लद्बशठ्ठ और दूसरा विश्वास प्रस्ताव यानि ष्टशठ्ठद्घद्बस्रद्गठ्ठष्द्ग रूशह्लद्बशठ्ठ. विश्वास प्रस्ताव हमेशा सरकार या सत्ता पक्ष प्रस्तावित करता है और अविश्वास प्रस्ताव हमेशा विपक्ष की ओर से लाया जाता है। इस प्रकार अविश्वास प्रस्ताव के पारित हो जाने से या विश्वास प्रस्ताव के गिर जाने से सरकार गिर जाती है। इसके विपरीत अविश्वास प्रस्ताव के गिर जाने से या विश्वास प्रस्ताव के पारित हो जाने से सरकार बनी रहती है।
विश्व के अनेक लोकतांत्रिक देशों में नो कॉन्फिडेंस मोशन और कॉन्फिडेंस मोशन का प्रावधान है। यह एक बहुत ही अच्छा प्रावधान है लेकिन इसका भारत में काफी दुरुपयोग होता है। जैसे इस बार का जो अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था वह एक दुरुपयोग ही था। दुरुपयोग इसलिए था कि गौरव गोगोई को और विपक्ष को यह अच्छी तरह से पता है कि सरकार बहुमत में है और उसे किसी भी तरह से गिराया नहीं जा सकता है। सरकार में बने रहने के लिए 273 सांसदों का लोकसभा में बहुमत होना आवश्यक है। जबकि अकेले भाजपा के पास 303 सांसद हैं। इस तरह विपक्ष को अच्छी तरह पता था कि सरकार गिर नहीं सकती है। इस अविश्वास प्रस्ताव का उपयोग उन्होंने सरकार को मात्र घेरने के लिए किया। इनका प्रकट मुख्य उद्देश्य प्रधानमंत्री से मणिपुर की स्थिति पर उनका वक्तव्य लेना था। दुर्भाग्य का विषय यह है कि अविश्वास प्रस्ताव रखने के बाद और स्वीकृत होने के बाद जब बहस प्रारंभ हुई तो विपक्षी नेताओं ने अपने-अपने विचार रखे और सरकार की अच्छी खासी सही -गलत धुलाई की। लेकिन जब प्रधानमंत्री ने अपना भाषण शुरू किया तो 'इंडियाÓ का लगभग सारा का सारा विपक्ष वाकआउट कर गया और सदन छोड़कर चला गया। प्रश्न उठता है कि फिर अविश्वास प्रस्ताव किस लिए लाया गया था या अविश्वास प्रस्ताव किसने लाया था? आप चाहते थे कि प्रधानमंत्री अपना वक्तव्य दें और जब वह वक्तव्य देने आये तो आप सदन से बहिर्गमन कर गये। यह जनता के पैसे और संसद के समय के अपव्यय के सिवा और क्या हो सकता है? यह अत्यंत ही खेद जनक और निंदा जनक कार्य है। इसमें संसद और राष्ट्र का इतना अधिक समय और धन नष्ट होता है और इसका कोई परिणाम नहीं निकलता। इस तरह की बर्बादी को रोकने के लिए विश्व के कुछ देशों के संविधान में बहुत अच्छे प्रावधान हैं। जर्मनी के संविधान में प्रावधान है कि कोई भी, जिसमें प्रतिपक्ष भी सम्मिलित हैं, तब तक हृश ष्टशठ्ठद्घद्बस्रद्गठ्ठष्द्ग रूशह्लद्बशठ्ठ नहीं ला सकता है जब तक कि वह पीठासीन अधिकारी (लोकसभा अध्यक्ष) को इस बात के लिए मना नहीं लेता है कि यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है और सरकार गिर जाती है तो उसके पास सरकार बनाने का विकल्प उपलब्ध है। यदि विपक्ष यह सिद्ध नहीं कर पाता है या संतुष्ट नहीं कर पाता है कि सरकार गिरने की स्थिति में वह सरकार बना सकता है तो अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार ही नहीं होता। यह बहुत अच्छा प्रावधान है। ऐसा ही प्रावधान भारत के संविधान में भी होना चाहिए। क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव या विश्वास प्रस्ताव से सरकार तो गिर सकती है लेकिन विपक्ष भी सरकार बना नहीं पाता। परिणाम ये होता है कि तत्काल लोकसभा के चुनाव कराने पड़ते हैं जिसमें सांसदों की संख्या का गणित वैसा ही रहा जैसा पहले था। चुनाव में 25 से 30 हजार करोड रुपए खर्च होते हैं। देश के संसाधनों को इस तरह से नष्ट करने का किसी को भी अधिकार नहीं है।
इसलिए यह आवश्यक है कि संविधान में संशोधन किया जाए और यह प्रावधान किया जाए कि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव तब तक नहीं ला सकता जब तक कि उसके पास सरकार बनाने का विकल्प उपलब्ध न हो। यदि विपक्ष लोकसभा अध्यक्ष को इस बात से मनाने में अक्षम रहता है कि वह सरकार बना सकता है तो फिर अविश्वास प्रस्ताव स्वीकृत नहीं होना चाहिए। दूसरी स्थिति वह है जब यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि सरकार किसी हालत में गिरेगी नहीं और सरकार का बहुमत है तो ठ्ठश-ष्शठ्ठद्घद्बस्रद्गठ्ठष्द्ग द्वशह्लद्बशठ्ठ लाने का कोई मतलब नहीं है। यह मात्र समय और संसाधन की बर्बादी है और इस पर रोक लगाई जानी चाहिए, ताकि संसद का अमूल्य समय और राष्ट्र के संसाधन ऐसे निरर्थक कार्यों पर नष्ट ना हो। (लेखक भारतीय सेना में मेजर रहे हैं)