राकेश त्रिपाठी
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा हाल ही के प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार जनसंख्या की दृष्टि से भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। भारत की वर्तमान अनुमानित जनसंख्या १४२.८६ करोड़ हो चुकी है, जबकि चीन की जनसंख्या १४२.५७करोड़ है। अनुमान है कि सन् २०५० तक भारत की जनसंख्या बढ़कर १६४ करोड़ हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि भारत की जनसंख्या पूरे विश्व की जनसंख्या का १९ प्रतिशत है जबकि भारत के पास भूमि क्षेत्रफल पूरे विश्व का २.४ प्रतिशत ही है। चीन की तुलना में भी भारत की जमीन उसकी भूमि का केवल लगभग ३६ प्रतिशत ही है। स्पष्ट है कि देश के सभी प्रकार के संसाधनों पर घनी आबादी का गहरा दबाव है। इसमें संदेह नहीं कि भारत विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था बन चुका है और भारत में युवा आबादी लगभग ६५ प्रतिशत है। बहुत से अर्थशास्त्री इस विशाल किन्तु सस्ते लेबर फोर्स को आर्थिक विकास का एक प्रमुख कारण मानते हैं। तथापि वह यह भूल जाते हैं कि देश के संसाधनों पर कितना दबाव बढ़ गया है?
इसके अतिरिक्त अवैध अप्रवासन, अनियमित जनसंख्या वृद्धि या धर्म विशेष के लोगों के पलायन के फलस्वरूप कश्मीर, लद्दाख, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, असम, मणिपुर, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल,गोवा, हरियाणा केरलऔर लक्ष्यदीप सहित १६ राज्यों तथा जिलेवार देश के २०० जिलों में धार्मिक जनसांख्यिकी असंतुलन में वृद्धि देखने को मिल रही है। इनमें से ९ राज्यों लक्ष्यदीप, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर जम्मू एंड कश्मीर नागालैंड अरुणाचल प्रदेश एवं पंजाब में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। १९५१ से प्रत्येक १० वर्ष के अन्तराल पर जनसंख्या परिवर्तन के अध्ययन से जो ट्रेन्ड सामने आये हैं वे इसी भयंकर असंतुलन की ओर संकेत दे रहे हैं। इतिहास गवाह है कि जब इस प्रकार के धार्मिक असन्तुलन एक दायरे को पार कर जाते हैं तो देश का विखंडन सुनिश्चित हो जाता है, उदाहरण स्वरूप-सन् २००२ में इंडोनेशिया का विखंडन इण्डोनेशिया (मुस्लिम बहुल-मुस्लिम ९० प्रतिशत) और पूर्वी तिमोर (ईसाई बहुल-इसाई ९८ प्रतिशत) में, सूडान का विखंडन - वर्ष २०११में सूडान (मुस्लिम बहुल) एवं दक्षिणी सूडान (ईसाई बहुल-इसाई ६० प्रतिशत) में, वर्ष २००८ में सर्बिया का विखंडन सर्बिया(ईसाई बहुल) एवं कोसोवो (मुस्लिम बहुल-मुस्लिम ९६ प्रतिशत) और इसी प्रकार सांस्कृतिक एवं जनसांख्यिकी आधार पर वर्ष १९६० में युगोस्लाविया का संपूर्ण विखंडन-सर्बिया, क्रोएशिया, बोस्निया, मोंटेनीग्रो हरजेगोविंना,और मेसोडोनिया में। सवाल हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई पारसी,जैन अथवा बौद्ध जैसे किसी जाति, धर्म अथवा संप्रदाय का नहीं है। ऐसे विखंडनों की दशा में स्वाभाविक रूप से सभी संसाधनों के बट जाने के फलस्वरूप उनके अति सीमित एवं संकुचित हो जाने के कारण सभी विखण्डित धार्मिक जनसांख्यिकी के लिए घातक ही होता है। जनसंख्या की इस वृद्धि के कारण गरीबी और बेरोजगारी बढ़ेगी आज प्रतिवर्ष रोजगार तलाशने वालों की संख्या २.५ करोड़ है जबकि केवल ७० लाख लोगों को रोजगार मिल पा रहा है। इसके अतिरिक्त आबादी वृद्धि से लोगों के जीवन स्तर में गिरावट आएगी। प्रथम पंचवर्षीय योजना में ही बढ़ती आबादी को विकास के बाधक के तौर पर चिन्हित करते हुए भारत में सर्वप्रथम परिवार नियोजन का कार्यक्रम सन १९५२ में अपनाया गया। वर्ष १९७६ यथा संशोधित १९८१ में प्रथम जनसंख्या नीति बनी तत्पश्चात २००० में भी राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की गयी। वर्ष २००० में ही प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया जो जनसंख्या नीति के क्रियान्वयन की समीक्षा एवं निगरानी करने व निर्देश देने तथा स्वास्थ्य संबंधी शैक्षणिक , पर्यावरणीय और विकास कार्यक्रमों की सहक्रिया को बढ़ावा देने तथा कार्यक्रमों की योजना बनाने व क्रियान्वयन करने में तालमेल को बढ़ावा देते का कार्य करता है। भारत की विशेष परिस्थितियों एवं तमाम समस्याओं के मद्देनजर सब के ऊपर समान रूप से लागू होने वाले एक समग्र किन्तु सख्त कानून की तत्काल आवश्यकता है।
( लेखक पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर के पूर्व मुख्य परिचालन प्रबंधक हैं)