शिवकुमार शर्मा
स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक मदनलाल ढींगरा के पिता डॉ. दित्तामल अमृतसर के ख्यातनाम चिकित्सक थे। 18 सितंबर 1883 को अमृतसर में उनकी छठी संतान के रूप में जन्मे सपूत की मैट्रिक तक की शिक्षा- दीक्षा अमृतसर के मिशन हाई स्कूल में हुई। गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से बी.ए.किया। गणित और तकनीकी विषयों में विशेष रुचि रखने वाले मेधावी छात्र मदनलाल उच्च शिक्षा विदेश से ग्रहण करना चाहते थे परंतु पिता उन्हें विदेश नहीं भेजना चाहते थे। उनका मन छठपटाया और वे उन्मुक्त गगन के पक्षी की भांति घर छोड़कर निकल पड़े। जम्मू कश्मीर रियासत में सेटलमेंट विभाग में नौकरी की कुछ दिन बाद छोड़ दी । मनमुखी मदनलाल कलका चले गए, वहां तांगा चलाया। वह काम भी छोड़ा कारखाने में नौकरी कर ली। कारखाने में मजदूर भाइयों पर होने वाले अत्याचार से मदनलाल का मन विचलित हुआ, मजदूरों का अधिकार दिलाने की ठान ली। ट्रेड यूनियन बनाई। यूनियन बाजी के चलते मालिक ने हटा दिया। वापस अमृतसर आए, फिर मुंबई जाकर नाविक की नौकरी की और वहीं से लंदन चले गए। 1906 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हेतु दाखिला लिया। वहां श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित 'इंडिया हाउसÓजाने का अवसर मिला। वीर सावरकर के देशभक्ति पूर्ण संबोधन सुनकर, उनके भक्त हो गए और अंग्रेजों से नफ़रत हो गई। 1908 में सावरकर द्वारा लंदन में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 51 वीं वर्षगांठ के रूप में एक अभियान छेड़ा गया था जिसमें जुड़े सभी क्रांतिकारी छात्रों '1857 स्मारकÓ के बिल्ले धारण किए। सजसॅंवर कर रहने के शौकीन मदनलाल ढींगरा सूट पहनकर उसके ऊपर बिल्ला लगाकर कॉलेज की इमारत में ठाट से घूम रहे थे, एक अंग्रेज ने बिल्ला खींचने का प्रयास किया। उन्होंने तमाचा जड़ा, जमीन पर पटका, उसके ऊपर चढ़ गए। उसके गिड़गिड़ाने पर माफ कर दिया। यह था उनका स्वाभिमान और स्वदेशाभिमान। एक ओर जहां इंडियाहाउस लंदन में पढ़ने वाले छात्रों को वीर पराक्रमी देशभक्त के रूप में तैयार कर रहा था वही अंग्रेजों द्वारा गठित नेशनल इंडियन एसोसिएशन इंग्लैंड में रह रहे भारतीयों को अंग्रेजों का प्रशंसक बनाने के काम में लगा हुआ था। भारत सचिव का सलाहकार सर विलियम कर्जन वायली भी इसका सदस्य था जो इंडिया हाउस से जुड़े क्रांतिकारियों की खबरें खुफिया तरीके से लेता रहता था। इसलिए भारतीय छात्र उसे घृणा करते थे। इन्ही दिनों क्रांतिकारी कन्हाईलाल, यतींद्र पाल तथा काशीराम को ब्रितानी सरकार द्वारा फांसी दिए जाने का समाचार मिलते ही धींगरा और उनके साथियों का खून खौल गया, बदला लेने की ठान ली।1 जुलाई 1909 को नेशनल इंडियन एसोसिएशन की वर्षगांठ का कार्यक्रम इंपीरियल के जहांगीर हॉल में आयोजित था। मदनलाल ढींगरा बन ठन कर योजनाबद्ध तरीके से कार्यक्रम में पहुंच गए। कर्नल वायली तक पहुंचकर पिस्तौल की गोलियां उसके माथे में उतार दीं और उसे मौत के घाट उतार दिया। उसे बचाने दौड़ा लाल काका भी गोली लगने से वहीं ढेर हो गया। अंग्रेजों की क्रूरता का जवाब भारत की वीरता ने दे दिया। शेरदिल मदनलाल ढींगरा दिलदारी से वहीं खड़े रहे,गिरफ्तार हुए। ब्रिक्स्टन जेल में रखा गया। मुकदमा चला, मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। 17 अगस्त 1909 को मातृभूमि की मुक्ति के अनुष्ठान में मदनलाल ढींगरा ने प्राणों की आहुति देकर सच्चे राष्ट्रभक्त का दायित्व पूरा किया। उनकी शहादत के लिए देशवासियों का शत-शत नमन।
(लेखक महिला एवं बाल विकास विभाग में संयुक्त संचालक है)