दमोह के एक छोटे से गांव में रहने वाली मनीषा अहिरवार और उसका परिवार कोरोना की पहली लहर के समय वापस अपने गांव आ गया था, खेती के लिए सिर्फ तीन बीघा ज़मीन होने के कारण मनीषा को अपने बच्चों को छोड़कर पति के साथ फरीदाबाद में मज़दूरी करनी पड़ रही थी, लेकिन कोरोनाकाल बीतने के बाद भी मनीषा और उसका परिवार वापस मज़दूरी करने दिल्ली-एनसीआर में नहीं गया है। दरअसल मनीषा और उसके पति ने अपने खेत में तलाब बनाकर उसमें मोती की खेती शुरु की है, पड़ोस के एक गांव में एक किसान के मोती की खेती शुरु करने और उससे अच्छा पैसा कमाने से प्रभावित मनीषा अहिरवार और उसके परिवार ने भी अपने खेत के तलाब में मोती उगाना शुरु किया। इसके लिए ट्रेनिंग से लेकर बाकी व्यवस्था भी एक प्राइवेट कंपनी ने कर दी, यही कंपनी उनके मोती भी खरीद लेती है। अब दमोह के इस गांव में उनका अपना एक पक्का घर है, पति ने अब एक मोटरसाइकिल भी खरीद ली है।
बुंदेलखंड के इस इलाके से मिस्त्री और मज़दूर पूरे देशभर में काम करने के लिए जाते हैं, सूखे की मार यहां के किसानों को मज़दूर बना देती है। लेकिन अब समय बदलने लगा है, सरकार की कई योजनाओं के कारण ग्रामीण इलाकों में अब खुशहाली आने लगी है। गरीब लोगों के पास अपना घर, पानी, रसोई गैस और बैंक खाता सब कुछ हो गया है। गांव के गरीबों को सबसे बड़ा फायदा डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर (डीबीटी) से हुआ है। सरकार के जनधन अकाउंट के जरिए जिन 48 करोड़ से ज्य़ादा लोगों के बैंक खाते खोले गए हैं, वो ज्य़ादातर गरीबी रेखा से नीचे या फिर गरीबी रेखा के मापदंडों के आसपास ही थे। 2011 तक देश में तीन में सिर्फ एक व्यक्ति के पास बैंक खाता था, लेकिन अब देश की 80 प्रतिशत आबादी का अपना बैंक खाता है। जिन जनधन खातों को बैंकों के लिए खर्चा बताया जाता था, उन खातों में लगभग 2 लाख करोड़ रुपये जमा भी हैं। देश में गरीबी मिटाने में इन जनधन खातों ने एक बड़ी भूमिका निभाई है। इन बैंक खातों के खुलने के बाद देश में गरीबों के पास सीधे सरकारी मदद पहुंचने लगी है, जोकि पहले भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती थी। लिहाजा देश में गरीबों की संख्या में भारी कमी हुई है।
स्वदेशी जागरण मंच के सह-संगठक सतीश कुमार के मुताबिक, जनधन खातों में भी 26 करोड़ खाते महिलाओं के हैं, जोकि अब बचत के पैसों को बैंक खातों में डाल रही हैं। इस बचत ने गरीब परिवारों को अपने पैरों पर खड़ा किया है। इन बचतों से ये गरीब परिवार छोटे छोटे खुद के काम कर रहे हैं। इसका बड़ा असर हुआ है।
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 13.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं, मतलब उनका खानपान, शिक्षा, उनके रहन सहन और घर इत्यादि में काफी सकारात्मक बदलाव हुआ है। नीति आयोग ने बहुआयामी गरीबी सूचकांक तैयार किया है, जिसमें 2015-16 में कराये गए नेशनल फैमिल हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) और 2019-21 में कराये गये एनएफएचएस की तुलना के आधार एक रिपोर्ट जारी की है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: एक प्रगति समीक्षा 2023 नामक रिपोर्ट देश के सामने रखी। इस रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत पर आ गई है। जिन ग्रामीण क्षेत्रों के लिए मोदी सरकार ने सबसे ज्य़ादा योजनाएं शुरु की थी, वहां लोगों के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आया है। दूसरी ओर शहरों में गरीबी की दर 8.65 से घटकर 5.27 प्रतिशत रह गई है, इसका मतलब गांवों में अभी भी शहरों के मुकाबले तीन गुना अधिक गरीबी है।
उत्तर प्रदेश गरीबी मिटाने में नंबर वन
रिपोर्ट के मुताबिक, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश ने गरीबों के जीवन में बदलाव में बड़ी भूमिका निभाई है। यहां गरीबों की संख्या में 3.43 करोड़ की बड़ी गिरावट आई है। इसके बाद बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान का स्थान है। रिपोर्ट के मुताबिक, पोषण में सुधार, स्कूली शिक्षा के वर्षों, स्वच्छता और खाना पकाने के ईंधन ने गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे पहले भारत सरकार ने 2030 तक गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या आधा करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन यह रिपोर्ट कहती है कि ये लक्ष्य काफी पहले ही हासिल हो जाएगा। इससे पहले नवंबर 2021 में राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) को लांच किया गया था।
क्या है गरीबी का मापदंड
इस रिपोर्ट में कुल मिलाकर 12 ऐसे प्वाइंट है, जिनके आधार पर जीवन के स्तर को देखा जाता है। जोकि पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी 12 संकेतकों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है, जिससे गरीबी में कमी आई है।
देश में इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा
आंकड़ों के अनुसार, देश के शहरी क्षेत्रों में 51.8 प्रतिशत महिलाओं और 72.5 प्रतिशत पुरूषों और ग्रामीण क्षेत्रों में 24.6 प्रतिशत महिलाओं और 48.7 प्रतिशत पुरूष इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएसएच) 2019-21 के आंकड़ों के मुताबिक इंटरनेट के उपयोग को लेकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बीच अभी अंतर तो है, लेकिन ये धीरे धीरे कम होता जा रहा है। इंटरनेट के जरिए किसान अपनी फसलों के भाव से लेकर खेती की नई नई तकनीकों और मार्केटिंग को भी सीख रहे हैं। इस वजह से गांवों में गरीबी के स्तर में कमी आई है। (लेखक स्तंभकार हैं)