समतावादी विचार के प्रेरणापुंज बाबू जगजीवन राम

Update: 2023-07-05 20:19 GMT

अरविंद जयतिलक

बात चाहे आजादी के संघर्ष की हो अथवा स्वाधीन भारत को अर्थपूर्ण मुकाम देने की या दलित समाज को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने की देश सदैव ही जगजीवन बाबू का ऋणी रहेगा। जगजीवन बाबू का निर्मल व्यक्तित्व, ओजपूर्ण वक्तव्य और समतावादी विचार आज भारतीय जनमानस के लिए प्रेरणा का स्रोत है। छात्र जीवन से ही वे जुझारु प्रकृति के थे और देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उन्होंने हर परिस्थितियों का साहस से मुकाबला किया। बाबू जगजीवन राम में विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बनाने की अद्भुत क्षमता थी। 1942 में जब गांधी जी ने 'अंग्रेजो भारत छोड़ोÓ आंदोलन का नारा दिया तो बाबू जगजीवन राम सेनापति की तरह अग्रिम पंक्ति में डट गए। सिविल नाफरमानी आंदोलन में भी उन्होंनेे अंग्रेजी सरकार की मुखालफत कर जेल जाना स्वीकार किया। मानवीय उदात्त भावनाओं से लबरेज बाबू जगजीवन राम की लोकप्रियता की धाक ही कही जाएगी कि वे महज 28 साल की उम्र में ही 1936 में बिहार विधान परिषद के लिए चुने गए। इसके बाद जब 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत 1937 में चुनाव हुआ तो वे डिप्रेस्ड क्लास लीग के उम्मीदवार के तौर पर निर्विरोध चुने गए और साथ ही अपने राजनीतिक आभामंडल से 14 उम्मीदवारों को भी निर्विरोध निर्वाचित कराने में सफल रहे। हालांकि अग्रेजों ने भरपूर कोशिश की कि बाबू जगजीवन राम को पद और धन का लालच देकर बिहार में एक कमजोर सरकार का गठन किया जाए। लेकिन स्वाभिमान के धनी बाबू जगजीवन राम ने अंग्रेजों की रणनीति विफल कर दी और उनकी राष्ट्र निष्ठा का देश ने लोहा माना। 1952 में जब देश में प्रथम आम चुनाव हुए और पंडित नेहरु की सरकार बनी तो जगजीवन बाबू संचार मंत्री बनाए गए। महत्वपूर्ण विभाग होने के नाते उनकी जिम्मेदारी भी बड़ी थी। उन दिनों विमानन मंत्रालय भी संचार विभाग के ही अधीन हुआ करता था। लिहाजा उन्होंने राष्ट्र के विकास के लिए अपना जी-जान लगा दिया। उन्होंने निजी विमानन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और गांव-गांव में डाकखानों की उपलब्धता सुनिश्चित की। उनकी योग्यता और कर्मठता से अभिभूत होकर पंडित नेहरु ने उन्हें रेल मंत्रालय का उत्तदायित्व भी सौंप दिया। बतौर रेलमंत्री बाबू जगजीवन राम के समक्ष एक बड़ी चुनौती थी और उन्होंने इसे स्वीकार किया। 1962 में चीन के हाथों करारी हार ने सेना का मनोबल तोड़ दिया था। भारतीय जनमानस भी उद्वेलित और विचलित था। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में बाबू जगजीवन राम का योगदान अविस्मरणीय है। जिस तरह उन्होंने सेनाओं के लिए राजनीतिक समर्थन जुटाया वह उनकी राष्ट्रभक्ति की अटूट बानगी है। हिमालय की तरह अडिग विचार और सागर की तरह गहरी संवेदना रखने वाले इस मनीषी की पुण्यतिथि पर भला उन्हें कौन याद करना नहीं चाहेगा।                    (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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