श्रेष्ठता के शिखर की ओर भारतीय खिलाड़ी

Update: 2023-08-28 20:11 GMT

अरविंद जयतिलक

आज खेल दिवस है। आज भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित मेजर ध्यानचंद जी का जन्मदिन है। खेल में उनके महत्वपूर्ण योगदान के सम्मान में उनके जन्मदिन को भारत में खेल दिवस के रुप में मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद विश्व हॉकी में शुमार महानतम खिलाड़ियों में से एक अद्भुत खिलाड़ी रहे हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा व लगन से देश का मस्तक गौरान्वित किया। अच्छी बात है कि देश के खिलाड़ी उनसे प्रेरणा लेकर अपने खेल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे हैं। अभी कल ही नीरज चोपड़ा ने दमदार प्रदर्शन करते हुए भारत को विश्व ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल दिलाया। इससे पहले संपन्न कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत अपने खिलाड़ियों के श्रेष्ठ प्रदर्शन से गौरान्वित हो चुका है। तब भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में पदकों की झड़ी लगाते हुए कुल 61 मेडल हासिल किए थे जिसमें 22 गोल्ड, 16 सिल्वर और 23 ब्रॉन्ज मेडल शामिल रहे। इस शानदार प्रदर्शन से भारत ने चौथा स्थान हासिल किया जिससे देश का मस्तक स्वाभिमान से दमक उठा। कॉमनवेल्थ गेम्स की तरह गत वर्ष संपन्न टोक्यो ओलंपिक में भी भारतीय खिलाड़ियों ने अपने खेल का शानदार प्रदर्शन किया।

इसमें दो राय नहीं कि कॉमनवेल्थ और टोक्यो ओलंपिक में मिली उपलब्ध्यिों ने देश को गौरान्वित किया है। लेकिन एक सच यह भी है कि 135 करोड़ की आबादी वाले देश को इससे बड़ी उपलब्धि की दरकार है। ऐसा तभी संभव होगा जब देश में उत्कृष्ट खिलाड़ियों, अकादमियों और प्रशिक्षकों को बढ़ावा मिलेगा। एक आंकड़े के मुताबिक देश में सिर्फ पंद्रह प्रतिशत लोग ही खेलों में अभिरुचि रखते हैं। यह आंकड़ा निराश करने वाला है। विचार करें तो इसके लिए भारतीय समाज का नजरिया और सरकार की नीतियां दोनों जिम्मेदार हैं। समाज में यह धारणा है कि खेलकूद के जरिए नौकरी या रोजी-रोजगार हासिल नहीं किया जा सकता। इसलिए पढ़ाई पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए। नतीजा सामने है। बच्चों में खेल के प्रति लगन और उत्सुकता में कमी है। खेलों के विकास के लिए आवश्यक है कि स्कूल स्तर से ही खेल को बढ़ावा देने का मिशन चलाएं। स्कूलों में बच्चों की प्रतिभा एवं विभिन्न खेलों में उनकी अभिरुचि को ध्यान में रखकर उन्हें विभिन्न किस्म के खेलों में समायोजित कर उनके उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था करें। ऐसा करने से उनकी प्रतिभा का सार्थक इस्तेमाल होगा और खेल को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन देखें तो स्कूलों में खेल के प्रति घोर उदासीनता है। इसका मूल कारण खेल संबंधी संसाधनों की भारी कमी और खेल से जुड़े योग्य शिक्षकों-प्रशिक्षकों का अभाव है। अगर प्राथमिक स्कूलों से इतर माध्यमिक विद्यालयों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की बात करें तो यहां भी स्थिति कमोवेश वैसी ही है। यहां संसाधन तो हैं लेकिन इच्छाशक्ति और प्रशिक्षण के अभाव में खेलों के प्रति रुझान नहीं बढ़ रहा है। उचित होगा कि केंद्र व राज्य सरकारें खेलों में सुधार के लिए पटियाला में स्थापित खेल संस्थान की तरह देश के अन्य हिस्सों में भी इस तरह के संस्थान खोलें। ऐसा इसलिए कि उचित प्रशिक्षण के जरिए ही देश में खेलों का स्तर ऊंचा उठाया जा सकता है। यहां यह भी समझना होगा कि जब तक खेलों को रोजगार से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक खेल प्रतिभागियों में स्पर्धा का वातावरण निर्मित नहीं होगा। अगर खेलों में नौजवानों को अपना भविष्य सुनिश्चित नजर नहीं आएगा तो स्वभाविक है कि वे खेलों में बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लेंगे। आज भी देश में एक कहावत खूब प्रचलित है कि 'पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होगे खराबÓ। अब इस कहावत को बदलने की जरुरत है। अकसर देखा जाता है कि माता-पिता के माथे पर तब चिंता की लकीरें उभर आती हैं जब उनका बच्चा खेल में कुछ ज्यादा ही अभिरुचि दिखाने लगता है। तब उन्हें डर सताने लगता है कि कहीं उनका बच्चा खेल में अपनी उर्जा खर्च कर अपना भविष्य न चैपट कर ले। स्कूलों में भी गुरुजनों द्वारा अकसर बच्चों से कहते सुना जाता है कि दिन भर खेलोगे तो पढ़ोगे कब। इस तरह की प्रवृत्ति ठीक नहीं है। बच्चों को खेलने के लिए उत्साहित करना चाहिए।

अगर सरकार की नीतियों में खेल से रोजगार का जुड़ाव हो तो फिर माता-पिता के मन में भी बच्चे के भविष्य को लेकर किसी तरह की आशंका-चिंता नहीं रहेगी। खेल के प्रति उत्साहजनक वातावरण निर्मित न होने के कारण ही आज देश अंतर्राष्ट्रीय खेल पदकों की फेहरिस्त में निचले पायदान पर रहता है। हां, यह सही है कि अब पहले के मुकाबले कॉमनवेल्थ, ओलंपिक और एशियाड खेलों में भारत के खिलाड़ी उत्तम प्रदर्शन कर रहे हैं। वे पदक जीतकर देश का मान बढ़ा रहे हैं। भारत को गांवों से लेकर नगरों तक के खेल की बुनियादी ढांचे में आमुलचूल परिवर्तन करना होगा। उसे खेल प्रशिक्षण की आधुनिक अकादमियों की स्थापना के साथ-साथ समुचित प्रशिक्षण, खेल धनराशि में वृद्धि तथा प्रतियोगिताओं का आयोजन करना होगा। इस पहल से भारत पदक तालिकाओं में शीर्ष पर दिखेगा।        (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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