मूल्यपरक शिक्षा का आधार है भारतीय ज्ञान परंपरा

प्रो.एस.के.सिंह

Update: 2023-07-28 21:15 GMT

अभी हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) ने 'राष्ट्रीय शिक्षा नीतिÓ (एनईपी -2020) के आलोक में भारतीय ज्ञान परंपरा (इण्डियन नॉलेज सिस्टम) को पाठ्यक्रम में शामिल करने एवं शिक्षकों को भारतीय ज्ञान परंपरा के बारे में प्रशिक्षित करने हेतु उन्मुखीकरण तथा पुनश्चर्या कार्यक्रम आयोजित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने के साथ-साथ अगले तीन माह में एक हजार शिक्षकों को भारतीय ज्ञान परंपरा के तहत प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा यूजीसी ने भारतीय ज्ञान परंपरा पाठ्यक्रम भी शुरू कर दिया है, जिसमें 31 जुलाई, 2023 से छात्र ऑनलाइन कक्षा में शामिल हो सकते हैं। इस ऑनलाइन पाठ्यक्रम को तीन भागों इंजीनियरिंग, साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी तथा मानविकी और समाज विज्ञान में विभाजित किया गया है।

वैसे तो एनईपी-2020 में कई आमूलचूल बातें कही गई हैं लेकिन भारतीय भाशाओं को प्रोत्साहन एवं छात्रों को भारतीय ज्ञान परंपरा से अवगत कराना 34 साल बाद आई पहली भारतीय 'राष्ट्रीय शिक्षा नीतिÓ की प्रमुख विशेषता है। 1835 में जब अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम लागू हुआ था उसके लगभग 185 वर्ष बाद 2020 में आई 'राष्ट्रीय शिक्षा नीतिÓ ऐसा पहला महत्वपूर्ण प्रयास है, जिसमें वर्षों से उपेक्षित भारतीय भाषाओं एवं भारतीय दर्शन को नये सिरे से सहेजने की कोशिश की गई है। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम का एक दुखद पहलू यह है कि इन 185 वर्षों में 73 वर्ष स्वतंत्रता के बाद के हैं। स्वतंत्रता के आन्दोलन में अपनी जान न्योछावर करने वालों ने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिनके हाथों में वे देश सौंपने जा रहे हैं वे इतने वर्षों तक अंग्रेजियत के बोझ तले दबे रहेंगे। वेद, उपनिषद, पुराण, महाकाव्य - जिनमें रामायण और महाभारत प्रमुख हैं,

भगवद्गीता आदि ग्रन्थों का गहन अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि भारतीय दर्शन एवं भारतीय ज्ञान परंपरा 'वसुधैव कुटुम्बकम्Ó विचाराधारा पर ही आधारित है।

प्रकृति और मनुष्य के संबंधों में सकारात्मक सामंजस्य रखते हुए सतत् विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेन्ट) करना भारतीय दर्शन की मूल विशेषता रही है। सर्वे भवन्तु सुखन:, परहित सरिस धर्म नहिं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधिमाई, सांई इतना दीजिए जामें कुटुम्ब समाय, मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाय, वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर परायी जाणे रे, जैसे न जाने कितने अनगिनत उदाहरण हैं जिनके आधार पर यह प्रतिस्थापित होता है कि भारतीय दर्शन सही मायनों में सतत् विकास की मूल अवधारणा को समाहित किये हुए है, क्योंकि दया, प्रेम, क्षमा, त्याग, सत्य, अहिंसा, शांति, सद्भावना, दान, करूणा, धैर्य, शिष्टाचार, सहिष्णुता, बलिदान, समर्पण जैसे शाश्वत जीवन मूल्य सदियों से भारतीय दर्शन एवं हमारी मूल्यपरक शिक्षा का आधार रहे हैं। चूंकि भारतीय दर्शन में पूरी पृथ्वी को ही एक परिवार माना गया है एवं सभी के सुखी रहने की कामना की गई है, इसलिए भारतीय जीवन मूल्य भौगोलिक सीमाओं से परे जड़-चेतन सभी के लिये समान रूप से लाभकारी हैं।

आजादी के इस अमृतकाल में विष्व की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं (जी-20) का नेतृत्व भारत के पास है। वसुधैव कुटुम्बकम् एवं एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य की विचाराधारा के साथ भारत जी-20 की अध्यक्षता करते हुए पूरी दुनिया को वैश्विक असमानता कम करने एवं वैश्विक चुनौतियों का सामना करने का संदेश दे रहा है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का मंत्र है - सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास। यह मंत्र इस बात का प्रमाण है कि भारत सदियों से सर्वे भवन्तु सुखन: की अवधारणा में विश्वास करता रहा है एवं अभी भी उसी विचारधारा को लेकर आगे बढ़ रहा है। मोदी का मंत्र सदियों पुरानी सतत् विकास की भारतीय अवधारणा का जीवन्त एवं सटीक उदाहरण है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अभी हाल ही में अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान व्हाइट हाउस में संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस मंत्र के माध्यम से पूरी दुनिया को सदियों पुरानी सतत् विकास की भारतीय अवधारणा से अवगत कराया है।

उपनिशद के श्लोक 'विद्या ददाति विनयं एवं तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, उज्जयिनी, काशी से लेकर एनईपी 2020 तक भारत के पास मूल्यपरक शिक्षा का बहुत ही समृद्ध इतिहास रहा है। छात्र एवं शिक्षक शिक्षा व्यवस्था के सबसे महत्वपूर्ण अंग होते हैं, शायद यही कारण है कि एनईपी 2020 के आधार सिद्वान्तों में कहा गया है कि ''शैक्षिक प्रणाली का उद्देश्य अच्छे इंसानों का विकास करना है, जो तर्कसंगत विचार और कार्य करने में सक्षम हों, जिनमें करूणा और सहानुभूति, साहस और लचीलापन, वैज्ञानिक चिंतन और रचनात्मक कल्पनाशक्ति, नैतिक मूल्य और आधार हों। इसका उद्देश्य ऐसे उत्पादक लोगों को तैयार करना है जो कि अपने संविधान द्वारा परिकल्पित समावेशी और बहुलतावादी समाज के निर्माण में बेहतर तरीके से योगदान करें।ÓÓ अंग्रेजों एवं आक्रांताओं ने कई बार हमारे इस सुदृढ़ इतिहास को मिटाने एवं खण्डित करने की कोशिश की, लेकिन हमारी बुनियाद इतनी मजबूत है कि हम आज भी सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास विचारधारा को लेकर ही आगे बढ़ रहे हैं। शिक्षक को समाज में पुन: प्रतिस्थापित करने के लिये एनईपी- 2020 में उल्लेख है कि ''शिक्षा की नई नीति को निश्चित तौर पर हर स्तर पर शिक्षकों को समाज के सर्वाधिक सम्मानीय और अनिवार्य सदस्य के रूप में पुन:स्थान देने में सहायता करनी होगी, क्योंकि शिक्षक ही नागरिकों की हमारी अगली पीढ़ी को सही मायने में आकार देते हैं।ÓÓ व्यास, पाणिनि, पतंजलि, वाल्मीकि कौटिल्य, वात्स्यायन, भरतमुनि, चरक, कालिदास, भृर्तहरि, भवभूति, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, बल्लभाचार्य, रामानंद, कबीर, सूर, तुलसी, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद जैसे विद्वानों के योगदान का अध्ययन हमें यह एहसास कराता है कि ज्ञान के क्षेत्र में भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है। मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में ''संसार को पहले हमीं ने ज्ञान भिक्षा दान की, आचार की, व्यवहार की, व्यापार की, विज्ञान की।ÓÓ भारतीय ज्ञान परंपरा में ऐसी मूल्यपरक शिक्षा पर जोर दिया गया है जिसमें नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों के साथ मनुष्य का सर्वागींण विकास हो सके।

मूल्यपरक शिक्षा की एक प्रमुख विशेशता यह भी है कि यह अधिकारों की तुलना में कर्तव्यबोध पर विशेष बल देती है। स्वतंत्रता के बाद देश जिन समस्याओं से जूझ रहा है उनमें से अधिकतर समस्याओं के मूल में कर्तव्यबोध का अभाव ही है। भारतीय ज्ञान परंपरा का अध्ययन एवं आचरण इस खोये हुए कर्तव्यबोध एवं उत्तरदायित्व की भावना जाग्रत करने का सबसे सशक्त माध्यम है।        ( लेखक जीवाजी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)

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