कैसे लगेगा खालिस्तान समर्थकों पर अंकुश

Update: 2023-07-09 20:19 GMT

ज्ञानेन्द्र रावत

आजकल कनाडा हो या अमेरिका खालिस्तान समर्थकों ने उत्पात मचा रखा है। हालात इस बात के सबूत हैं कि वहां बीते दिनों खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों से स्थिति न केवल बिगड़ती जा रही है बल्कि यों कहें कि वहां के हालात दिन ब दिन खतरनाक होते जा रहे हैं । वहां के स्थानीय प्रशासन ही नहीं, समूची दुनिया की चिंता की असली वजह भी यही है। कारण यह कि यदि इस पर जल्दी लगाम नहीं लगी तो इसके दूरगामी परिणाम काफी भयावह हो सकते हैं। वैदेशिक मामलों के जानकारों की चिंता का अहम कारण यही है। इस मामले में वहां की सरकारों की विवशता की असली वजह यह भी है कि यदि वह कड़ाई से इस समस्या को हल करने का प्रयास करती हैं तो उसे वहां के नागरिक अधिकारों के खिलाफ माना जायेगा जबकि हकीकत यह है कि ऐसे संगठन और उनसे जुड़े लोग अक्सर सरकारों की इस कमजोरी का लाभ उठाते हुए इस तरह की आतंकी गतिविधियों को अंजाम देकर सरकारों के लिए मुसीबत पैदा करते हैं। ताजा घटना अमेरिका के सैनफ्रांसिस्को स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास की है जहां न केवल तोड़फोड़ की गयी बल्कि उसमें आग भी लगा दी गयी। दूसरी बारदात कनाडा की है जहां खालिस्तान समर्थकों ने दो भारतीय राजनयिकों की तस्वीर वाले पोस्टर लगाये।

गौरतलब यह है कि सैनफ्रांसिस्को में भारतीय दूतावास में की गयी तोड़फोड़ और आगजनी की वारदात का एक फोटो व वीडियो शेयर किया गया था। उसके साथ निज्जर की हत्या से जुड़ी समाचार पत्रों की कतरने भी शामिल की गयी थीं। हकीकत यह भी है कि इससे कोई जान-माल का नुकसान तो नहीं हुआ और लगाई आग पर भी तुरंत काबू पा लिया गया। साथ ही सभी दूतावास के कर्मचारियों को भी कोई नुकसान नहीं हुआ। लेकिन यह घटना नि:संदेह बेहद गंभीर और शर्मनाक है। फिर कनाडा में भारतीय राजनयिकों की इस तरह तस्वीर को प्रचारित करना खतरनाक तो है ही, वह इसलिये भी निंदनीय है कि इससे द्विपक्षीय सम्बंधों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे एक संप्रभु राष्ट्र की प्रतिष्ठा भी प्रभावित होती है। यही वह अहम कारण है कि भारत सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लिया है और कनाडा के हाई कमिश्नर को समन किया है। संतोष इस बात का है कि इन घटनाओं पर कनाडा और अमेरिकी सरकार ने फिलहाल कार्यवाही की बात कही है।

असलियत यह है और दुखदायी भी कि ऐसी घटनाओं पर दोनों ही देश की सरकारों का रवैय्या अभी तक बेहद निराशाजनक रहा है और आजतक दोनों ही सरकारें इस बाबत कोई भी कार्यवाही करने में नाकाम साबित हुयी हैं। इस मामले में ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देश भी हैं जिनके भारत के साथ बेहद नजदीकी और मधुर संबंध हैं। जिसके बावजूद वहां की सरकारें इस प्रकार की गतिविधियों पर काबू नहीं पा सकी है। अमृत पाल सिंह का प्रकरण इसका जीता जागता सबूत है। हकीकत में अमृतपाल सिंह धर्म की आड़ में सीधे-सीधे कानून व्यवस्था को चुनौती दे रहा था। उसके बावजूद वहां की सरकारों की चुप्पी समझ से परे है। यही विचार का विषय है। वह बात दीगर है कि अमेरिकी सरकार ने इस कृत्य की कड़े शब्दों में निंदा की है और इस घटना की तुलना आपराधिक कृत्य से की है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर भले यह कहें कि अमेरिका में राजनयिक केन्द्रों या विदेशी राजनयिकों के खिलाफ हिंसा एक जघन्य अपराध है। फिर भी यह भी कटु सत्य है कि कुछ ही महीनों में सैनफ्रांसिस्को में भारतीय राजनयिक मिशन पर हमले की यह दूसरी घटना है।

वैसे यह तो सभी भलीभांति जानते-समझते हैं कि वह चाहे कनाडा हो या अमेरिका, खालिस्तानी अलगाववादियों ने यहां बरसों से अपनी गहरे तक जड़ें जमाने में कामयाबी पा ली है। कनाडा तो उनकी शरणस्थली है। यह भी सच है कि कनाडा में ही खालिस्तान की मांग करने वाले अलगाववादियों का हेडक्वार्टर भी रहा है और वहीं से खालिस्तानी आंदोलन संचालित किया जाता रहा है। यही नहीं कनाडा की धरती से अलगाववादियों को हरसंभव मदद भी दी जाती रही है। यही नहीं खालिस्तान समर्थक आंदोलन को हवा-पानी देने में कनाडा वासियों का महत्वपूर्ण योगदान भी रहा है। बीते दशकों का इतिहास इसका प्रमाण है जिसे नकारा नहीं जा सकता।

भारत की हमेशा से यही नीति रही है कि हिंसा में लिप्त अलगाववादी तत्वों को किसी प्रकार का संरक्षण नहीं दिया जाये, अलगाववादी तत्वों को किसी भी तरह की आड़ न मिलने पाये। यह भी कि आतंकवादी किसी भी रूप में हों, ऐसे तत्व जो समाज के लिए कलंक हैं आखिरकार इंसानियत को देर सवेर अपना कुरूप चेहरा दिखाते ही हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इनको संरक्षण नहीं देना चाहिए। इससे आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है। एक समय ऐसा आता है जब ये तत्व उस देश के लिए नासूर बन जाते हैं। फ्रांस इसका जीता जागता सबूत है। वह संरक्षण का दुष्परिणाम भोग रहा है। यह समूची दुनिया के लिए सबक है। भारत के लिए भी यह चेतावनी है कि देश को ऐसे तत्वों की शरणगाह बनने नहीं देना चाहिए। इसका खामियाजा भारत ने भी भुगतान है और वह नासूर बन आज भी देश के विकास के लिए बाधक है। अंत में निष्कर्ष यह कि कैसे भी हो ऐसे विषधरों का फन जितनी जल्दी हो, कुचल देना चाहिए। यह समय की आवश्यकता है। इसमें दो राय नहीं है।    (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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