तेजेन्द्र शर्मा
१७ वर्ष के नाहेल की पुलिस के हाथों हुई हत्या के बाद लगभग पूरे सप्ताह भर फ्रांस हिंसा की आग में जलता रहा। वहां आगज़नी, लूटपाट तो हुई ही, इन सबके बीच फ्रांस की ऐतिहिसिक मार्सेले लाइब्रेरी को भी फूंक दिया गया। बताया जाता है कि एक हज़ार से अधिक दंगाइयों को गिरफ़्तार किया जा चुका है और दो सौ से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। नाहेल अल्जीरियाई मूल का मुसलमान था। इसीलिये यह जुर्म और कानून से जुड़ी घटना से कहीं आगे बढ़ कर सांप्रदायिक दंगे में परिवर्तित हो गई।
जिस प्रकार नाहेल की हत्या हुई उसकी फ्रांस और उसके बाहर भरपूर निंदा हुई। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को अपना जर्मनी दौरा रद्द करना पड़ा जबकि 23 साल के बाद पहली बार कोई फ्रांसीसी राष्ट्रपति जर्मनी के दौरे पर जा रहा था।
नाहेल के बारे में आमतौर पर उसके परिवार और जानने वालों ने अच्छी बातें ही कहीं। उनके अनुसार वह एक विनम्र बच्चा था और नशे या किसी प्रकार की आपराधिक गतिविधियों से नहीं जुड़ा था। उसकी माँ ज़ाहिर है कि बुरी तरह से टूट गई थी और प्रशासन से बुरी तरह नाराज़ है। नाहेल की मां का कहना है कि जिस पुलिस वाले ने गोली मारी, उसने एक अरब चेहरा देखा, एक छोटा बच्चा देखा और उसकी जान लेना चाहता था। फ्रांस 5 टीवी से बात करते हुए मां ने सिर्फ एक व्यक्ति को दोषी ठहराया, जिसने उनके बेटे पर गोली चलाई, पुलिस को नहीं। मौनिया ने कहा, 'मेरे कई दोस्त (पुलिस) ऑफिसर्स हैं - वे पूरे दिल से मेरे साथ हैं।Ó
नाहेल की मां के अनुसार, उनके बेटे को सब प्यार करते थे। वह रग्बी खेलता था और भोजन डिलीवरी का काम करता था। वैसे पढ़ाई में नाहेल का मन नहीं लगता था। उसने इलेक्ट्रिशियन बनने के लिए कॉलेज में एडमिशन लिया था। वहां भी उसका अटेंडेंस का रिकॉर्ड काफी खराब है।
मगर वहीं पुलिस का दावा है कि इससे पहले भी नाहेल को पांच बार गैर-कानूनी ढंग से कार चलाने के अपराध में रोका गया। वह रुकने के आदेश को बार-बार नजरअंदाज करता आया था। जब पुलिस ने मंगलवार को उसे रोका तो जिस कार में वह मौजूद था था, उस पर पोलैंड की नंबर-प्लेट थी और दो यात्री भी थे। 17 साल की उम्र में ड्राइविंग लाइसेंस नहीं मिलता। पिछले हफ्ते भी उसे कुछ वक्त के लिए हिरासत में लिया गया था क्योंकि वह सितंबर 2022 में जुवेनाइल कोर्ट के सामने पेश नहीं हुआ था।
फ्रांस की सोशलिस्ट पार्टी की नेता ओलिविएर फॉरे ने कहा कि 'रुकने से इन्कार करने पर पुलिस को हत्या का लाइसेंस नहीं मिल जाता। देश के सभी बच्चों को न्याय का अधिकार है।Ó वहीं नाहेल की मां मौनिया ने पूरी पुलिस फ़ोर्स पर निशाना नहीं साधा। उसे शिकायत उसी अधिकारी से हैं जिसने एक अरबी युवा चेहरा देखा और उस पर गोली चला दी। उन्होंने आगे कहा कि मेरे कई दोस्त पुलिस अफ़सर हैं। वे पूरे दिल से मेरे साथ हैं।
फ्रांस के उपनगरीय क्षेत्रों पर मीडिया का ध्यान तभी जाता है जब वो आग की लपटों में घिरे हों। मुल्क़ में भड़की हिंसा की मौजूदा आग भी इसका अपवाद नहीं है। दरअसल इस हिंसा ने स्कूलों और पुलिस स्टेशनों तक को आग की लपटों के हवाले कर दिया।
नाहेल की हत्या के विरोध में फ्रांस जल उठा। पैरिस के कई हिस्सों में आगज़नी और हिंसा की घटनाएं हुईं। कुछ जगह शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी हुए। हिंसा की आग अन्य शहरों में भी फैल गई। अब तो इसकी लपटें यूरोप तक पहुंचने लगी हैं। फ्रांस में भड़के विवाद पर सबसे महत्वपूर्ण बात नाहेल के परिवार के वकील, यासीन बुजरू ने कही है। उनका कहना है कि घटना को केवल नस्लवाद के चश्मे से देखने के बजाय न्याय मांगने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। एक ज़िम्मेदार वकील और नागरिक ही ऐसी दृष्टि से मसले को देख सकता है। फ्रांस में 40,000 पुलिसकर्मियों को कानून-व्यवस्था काबू में करने के लिए लगाया गया। 600 से भी अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। लगभग 2000 दंगाइयों को गिरफ्तार किया गया। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ को वहाँ भेज दिया जाए, वो 24 घंटे के भीतर दंगों को नियंत्रित कर सकते हैं।
नाहेल की मौत के बाद लोगों के मन में पुलिस के खिलाफ नफरत पनपने लगी और सोशल मीडिया ने 'आग में घीÓ डालने का काम किया। वहीं, राष्ट्र्रपति मैक्रों ने देश में बेकाबू हालात के लिए सोशल मीडिया को काफी हद तक जिम्मेदार ठहराया है। नाहेल की हत्या की तुलना अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या से की गई है। हिंसाग्रस्त फ्रांस के फुटबॉल स्टार किलियन एम्बाप्पे सहित कई अन्य शख्सियतों ने शांति की अपील की है और कहा कि हिंसा से कोई समाधान नहीं निकलता। हालांकि, इस अपील का कोई खास असर दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में सरकार ने उपद्रवियों को रोकने के लिए सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ाकर 45 हजार कर दी। भारतीय सोशल मीडिया में फ्रांस की हिंसा अचानक वायरल हो उठी जब वहां ख़बर पहुंची कि फ्रांस की ऐतिहिसिक मार्सेले लाइब्रेरी को भी जला दिया गया। उन्हें अचानक याद आ गया बख्तियार खिलजी जिसने नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया था।
भारत में सोशल मीडिया पर सवाल पूछे जाने लगे कि आखिर वो कौन सी मानसिकता है, जो विद्या के मंदिरों को भी फूँक देती है। विद्यालयों और पुस्तकालयों को जलाने वाले ये लोग कौन होते हैं? वे बात करने लगे 830 वर्ष पहले सन् 1193 की जब इस्लामी आक्रांता बख्तियार खिलजी ने पूरे नालंदा विश्वविद्यालय को तबाह कर दिया था। साथ ही उसके नौ-मंज़िला पुस्तकालय को आग के हवाले कर दिया था। कहते हैं, वहाँ दुर्लभ प्राचीन पांडुलिपियों समेत लाखों पुस्तकें थीं जो धू-धू कर ऐसी जली कि महीनों तक जलती रही।
ट्विटर पर बहुत से भारतीयों ने इस विषय पर अपने-अपने ट्वीट में दुख ज़ाहिर किया। मगर पूरे यूरोप में इस हिंसा के बाद शरणार्थियों को लेकर बहुत से सवाल किये जाने लगे हैं। ऐसा सोचा जाने लगा है कि यदि फ्रांस ने शरणार्थियों का दिल खोल कर स्वागत न किया होता तो आज फ्रांस को ये दिन नहीं देखने पड़ते। फ्रांसीसी कानून राज्य को जातीयता के आधार पर जनगणना करने से रोक लगाते हैं। वैसे कुछेक ऐसे संकेत मिलते हैं कि सात करोड़ की आबादी वाले फ्रांस में 15 प्रतिशत लोग विदेशी मूल के हैं। फ्रांस में आने वाले आप्रवासियों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। इसमें से वर्तमान आबादी का लगभग 10 प्रतिशत विदेश में जन्मे लोग हैं। इनमें से अधिकांश प्रवासी अफ्रीका और एशिया से आए हैं। जातीय विविधता, धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग, अवैध प्रवास और कुछ स्थानीय नीतिगत निर्णयों को फ्रांस में लंबे अरसे से चली आ रही हिंसा के विस्फोट के लिये उत्तरादायी ठहराया गया है। बहुत से पर्यवेक्षकों ने इस बारे में फ्रांसीसी कानूनों को दोषी ठहराया है। इन कानूनों के कारण ऐसा माना जाता है कि अल्पसंख्यक समूह को भेदभाव और अपमान का एहसास होता है। वहीं यह भी सच है कि प्रवर्तन एजेंसियां निरंतर चुनौतीपूर्ण माहौल और ज़बरदस्त तनाव में काम करती हैं।
फ्रांस में आज जो स्थिति सामने आ रही है, वह नि:संदेह गंभीर है। यह यूरोप में सरकारों द्वारा अपनाए गये दृष्टिकोण के बारे में कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी उठाता है। यदि कोई देश खुले मन से शरणार्थियों को अपने देश में पनाह देता है तो उनकी संवेदनाओं का भी ख्याल रखना होगा। वहीं यह स्थिति शरणार्थियों पर भी यह ज़िम्मेदारी डालती है कि अपने अपनाए हुए देश को अपना देश समझना शुरू करें। (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं एवं लंदन में रहते हैं)