इन दिनों देश में समरूप विधिविधान के जरिये भविष्य के भारत को स्वर्णिम और अनुशासित बनाने के लिये समान नागरिक संहिता लागू करने की चर्चा बडी जोर शोर से है, देश के हर नागरिक के लिये एक ही कानून हो ऐसा ध्येय वर्तमान सरकार का है। संविधान की भी यही मंशा हमेशा से रही है, और उसी अनुरूप भारत देश के अधिकतर पंथ, समाज, धर्म के अनुयायी और सम्प्रदाय के लोग भी यही मंशा रखते हंै कि समान नागरिक कानून की व्यवस्था देश में लागू हो जो किसी पंथ, जाति के सभी निजी कानूनों से उपर हो। फिलहाल समान नागरिक संहिता भारत में नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाने और लागू करने का एक प्रस्ताव भर है। भारत के संविधान में समान नागरिक संहिता की व्यवस्था होते हुये भी समान नागरिक संहिता लागू नहीं है बल्कि भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर प्रचलित हैं और लागू हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध के लिये एक व्यक्तिगत कानून है वहीं मुसलमानों और इसाईयों के लिये भी अपने कानून हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 44 भारतीय राज्य से अपेक्षा करता है कि वह राष्ट्रीय नीतियां बनाते समय सभी भारतीय नागरिकों के लिये राज्य के नीति निर्देशक तत्व और समान कानून को लागू करें। भारत में अभी व्यक्तिगत कानून, सामाजिक कानून से प्रथक हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 25-28 भारतीय नागरिकों को धार्मिक स्वतं़त्रता की गारंटी देता है और धार्मिक समूहों को उनके धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है। इस हेतु समान नागरिक संहिता एक सामाजिक मामलों से संबंधित कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिये विवाह, तलाक, भरण पोषण, विरासत व बच्चा गोद लेने आदि में समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों मेंं, अलग-अलग पंथों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही समान नागरिक संहिता की मूल भावना है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में भोपाल में आयोजित भाजपा की एक आमसभा में जनमानस को संबोंधित करते हुये देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की आवश्यकता पर जोर देते हुये देश के भविष्य के लिये आवश्यक बताया है। इस दृष्टि से भारत के रहने वाले हर नागरिक के लिये एक समान कानून होना चाहिये चाहे वह किसी भी धर्म जाति का क्यों ना हो। इस पर भारत के विधि आयोग ने भी धार्मिक संगठनों से और जनता से समान नागरिक संहिता को आमराय से लागू करने पर राय मांगी है ।
अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों में पूर्णतया समान नागरिक संहिता लागू है जहां बडी संख्या में मुस्लिम व अन्य अल्पसंख्यक वर्गों के नागरिक निवास करते हैं इसी तरह अनेक प्रगतिशील मुस्लिम देशों जिसमें मिश्र, सीरिया, तुर्की, मोरक्कों इंडोनेशिया व मलेशिया आदि में भी एक से अधिक पत्नी के मामले में, मौखिक तलाक तथा पुुरुष प्रधान उत्तराधिकार आदि के विषय में दमनकारी व विभेदकारी कानून खत्म कर दिये गये हैं या उदार, सहज और मानवीय बना दिये गये हैं इन देशों में समान नागरिक संहिता लागू कर हर एक के लिये समान कानून आवश्यक कर दिया गया है । हमारे देश में भी 23 नवम्बर 1948 का दिन समान नागरिक संहिता के उदय का दिन था किन्तु इसे मूर्त रूप में लागू करने का प्रयास 70 वर्ष से अधिक समय से दफन ही रहा।
भविष्य के भारत की विकासोन्मुख सुनहरे भविष्य के लिये समान नागरिक संहिता अतिमहत्वपूर्ण है, इसका विरोध करने वालों का मत है कि ये हिन्दू कानून थोपने के समान है कई मुस्लिम धर्मगुरू समान नागरिक संहिता लागू करने के पक्ष में नहीं आते, उनका विचार है कि हमारा देश बहुधर्म प्रधान है जिसमें प्रथक-प्रथक मान्यताये, रीति रिवाज हैं उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता, पर ये सीमित और संकुचित विचार है, क्यांकि अलग-अलग पंथों के शादी विवाह कानून हैं जिसके कारण विवाह, जनसंख्या समेत कई विषयों में सामाजिक असंतुलन की स्थिति है विविधता भरे धर्म कानून के कारण देश की न्यायपालिका के लिये भी कार्य करना मुश्किल होता है। वर्तमान सरकार के देश के विकासोन्मुखी प्रयासों के बीच भविष्य के भारत को बसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा के अनुरूप सुरक्षित, अनुशासित, बनाये रखने के लिये आमराय से एक समरूप कानून, समान नागरिक संहिता का लागू करना सार्थक होगा। (लेखक म.प्र.उच्च न्यायालय के अधिवक्ता हैं)