खत्म होती देशज भाषाएं

अरविंद जयतिलक

Update: 2023-09-24 20:16 GMT

गत दिवस अमेरिका के वाशिंगटन राज्य के केलर में रहने वाली पॉलिन स्टेन्सगर का निधन इसलिए खूब सुर्खियों में रहा कि वह 'इन-हा-उस-चीनÓ देशज भाषा बोलने वाली वह अंतिम व्यक्ति थी। उनके निधन के साथ ही अब 'इन-हा-उस-चीनÓ भाषा का अस्तित्व भी खत्म हो गया। याद होगा गत वर्ष पहले मैक्सिकों की पुरानतम देशज भाषाओं में से एक अयापनेको के विलुप्त होने की खबरें भी खूब चर्चा में रहा। आज की तारीख में इस भाषा को जानने और बोलने वाले लोगों की संख्या महज दो रह गयी है। इन दो लोगों ने भी ठान लिया है कि वे आपस में इस भाषा के जरिए वार्तालाप नहीं करेंगे।

मतलब साफ है कि अब अयापनेको भाषा का अस्तित्व भी मिटने जा रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक हर दो सप्ताह में एक देशज भाषा का अस्तित्व मिट रहा है। दुनियाभर में तकरीबन 6900 देशज भाषाएं बोली जाती है जिनमें से लगभग 2500 से अधिक भाषाओं के अस्तित्व पर संकट है। इन्हें 'भाषाओं की चिंताजनक स्थिति वाली भाषाओं की सूचीÓ में रखने के लिए मजबूर होना पड़ा है। गत वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा कराए गए एक तुलनात्मक अध्ययन से खुलासा हुआ कि 2001 में विलुप्तप्राय: देशज भाषाओं की संख्या जो 900 के आसपास थी वह बढ़कर तीन गुने से पार जा पहुंची है। दुनियाभर में तकरीबन 199 भाषाएं ऐसी हैं जिनके बोलने-लिखने वाले लोगों की संख्या एक दर्जन से भी कम है। भाषायी वैज्ञानिकों की मानें तो इन देशज भाषाओं को बचाकर ही उनसे जुड़ी संस्कृति और उनकी ज्ञान परंपरा की रक्षा हो सकती है।

भारत की बात करें तो यहां भी देशज भाषाओं के अस्तित्व पर संकट है। गत वर्ष पहले पीपल्स लिविंग्वस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया (पीएलएसआइ) के जरिए यह खुलासा हुआ कि देश में बोली जाने वाली आठ सैकड़ा भाषाओं में आधी भाषाएं आगामी 50 वर्ष बाद सुनाई नहीं देंगी। देश में तकरीबन 780 भाषाएं बोली जाती हैं। इनमें से 400 भाषाओं पर विलुप्ति का खतरा है। पिछले पांच दशकों में 250 भाषाएं विलुप्त हुई हैं। इनमें से 22 आधिकारिक मान्यता प्राप्त भाषाएं भी हैं।

गत वर्ष पहले 'भाषा रिसर्च एंड पब्लिकेशन सेंटरÓ द्वारा प्रकाशित अपने सर्वेक्षण में कहा गया कि देश में बोली जाने वाली 250 भाषाएं विलुप्त हो चुकी हैं। 130 से अधिक भाषाएं विलुप्ति की कगार पर हैं। इस शोध की मानें तो असम की 55, मेघालय की 31, मणिपुर की 28, नागालैंड की 17, और त्रिपुरा की 10 भाषाओं पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा हैं। इन्हें बोलने वालों की संख्या लगातार तेजी से घट रही है। उदाहरण के तौर पर सिक्किम में माझी बोलने वालों की संख्या सिर्फ 4 रह गयी है। कमोवेश ऐसी ही स्थिति देश के अन्य देशज भाषाओं की भी है। जिन देशज भाषाओं के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है उनमें ज्यादतर आदिवासी समुदायों की भाषाएं हैं। उदाहरण के तौर पर भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल में ही 90 से अधिक देशज भाषाएं बोली जाती है। इनमें से कई देशज भाषाओं को बोलने वालों की तादाद ऊंगलियों पर है। ओडिसा में 47 और महाराष्ट्र एवं गुजरात में 50 से अधिक देशज भाषाएं बोली जाती हैं। लेकिन इनमें से कई देशज भाषाएं अब नाम भर की हैं। दरअसल इसका मूल कारण यह है कि आदिवासी समुदायों की बच्चों को अपनी भाषा में शिक्षा नहीं मिल रही है। वे स्कूल जाते हैं तो इन्हें 22 आधिकारिक भाषाओं में ही शिक्षा लेनी पड़ती है। उचित होगा कि इन बच्चों को उनकी देशज भाषाओं में भी शिक्षा की व्यवस्था हो। अगर ऐसा नहीं हुआ तो न सिर्फ दुनिया की बल्कि भारत की भी देशज भाषाएं खत्म हो जाएंगी। ध्यान देना होगा कि जिन भाषाओं के अस्तित्व पर सबसे ज्यादा संकट मंडरा रहा है वह सर्वाधिक रुप से उन जनजाति समूहों के बीच बोली जाती हैं जो आज की तारीख में कई तरह के संकट से गुजर रहे हैं।

अच्छी बात है कि संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया भर की ऐसी देशज भाषाओं को विलुप्ति से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय देशज भाषा दशक की पहल शुरु कर दी है। यह पहल इसलिए महत्वपूर्ण है कि देशज भाषाओं के संरक्षण से उनसे जुड़ी संस्कृति, परंपरा और ज्ञान का संरक्षण हो सकेगा। अगर इन्हें बचाने का ठोस पहल नहीं हुआ तो इन भाषाओं में से आधे से अधिक इस शताब्दी के अंत तक विलुप्त हो जाएंगी। देशज भाषाओं के अस्त्वि पर मंडराते संकट का असर जैव विविधता पर भी पड़ रहा है। भाषा विद्वानों की मानें तो अगर हम प्रकृति को बचाना चाहते हैं तो इसके लिए देशज लोगों की भाषाओं को समझना-जानना और बचाना बेहद जरुरी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) 

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