डिजिटल युग में डेटा सुरक्षा की चुनौती

Update: 2023-07-11 19:29 GMT

कैलाश बिश्नोइ

हाल ही के वर्षों में आम लोगों के बीच इंटरनेट और उसके अन्य साधनों के उपयोग में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है लेकिन साथ ही डेटा चोरी की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं। इसी वजह से सरकार देश में पहली बार डेटा संरक्षण कानून लाने की तैयारी कर रही है। इस संबंध में हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट ने निजी डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 को मंजूरी दे दी है। जिसे आगामी 20 जुलाई को शुरू होने जा रहे मानसून सत्र में संसद में प्रस्तुत किया जाएगा। विधेयक के मुताबिक कोई भी निजी या सरकारी संस्था किसी व्यक्ति के डेटा का उसकी अनुमति के बिना इस्तेमाल नहीं कर सकेंगी। विधेयक के मसौदे में कहा गया है कि इस विधेयक के पास हो जाने के बाद यदि कोई भी इकाई इस बिल के नियमों का उल्लंघन करती पाई जाती है तो उस पर 250 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।

दरअसल,भारतीय अर्थव्यस्था का जिस तरह से डिजिटलीकरण हो रहा है और पूरी दुनिया में डेटा की सुरक्षा को सशक्तिकरण, प्रगति और नवाचार की कुंजी माना जाने लगा है। इस लिहाज से यह विधेयक काफी महत्वपूर्ण है। डेटा प्रोटेक्शन विधेयक में डेटा के स्थानीय भंडारण पर बल दिया है। इसके लिए देश भर में कई डेटा केन्द्र बनाने होंगे। इसके माध्यम से देश में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का एक इकोसिस्टम बन पाएगा और रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।

देश में डिजिटल क्रांति के बीच सरकार के ऊपर देश के नागरिकों के डेटा सुरक्षित रखने को लेकर प्रेशर बढ़ रहा था। ऐसे में देश की कई पॉलिसी संस्थाओं ने सरकार से लगातार अपील की थी कि वह डेटा संरक्षण के लिए एक ऐसे कानून का निर्माण करे जो देश के नागरिकों के डेटा को प्रोटेक्ट करने का काम करे। ऐसे में यह डेटा प्रोटेक्शन बिल नागरिकों (डिजिटल नागरिक) के अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित करने का काम करेगा और दूसरी ओर डेटा फ्रॉड को नियंत्रित और जरूरत पड़ने पर सुरक्षित करने का भी काम करेगा। आपको बताते चलें कि डेटा संरक्षण एक प्रक्रिया है जिसमें डेटा की सुरक्षा, गोपनीयता और इंतेग्रिटी की रक्षा की जाती है। यह उपयोगकर्ताओं के व्यक्तिगत और संग्रहित डेटा को अनधिकृत उपयोग, अनधिकृत पहुंच और भ्रष्टाचार के खतरों से बचाता है।

एक डिजीटल अर्थव्यवस्था में डेटा को देश की सम्पत्ति के रूप में देखा जाने लगा है। ऐसे में भारत अपने नागरिकों को उन कंपनियों से बचाना चाहता है, जो डेटा के बदले सेवाएँ प्रदान करती हैं, जिससे उनके डेटा के दुरुपयोग की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। वर्तमान में,भारत में डेटा प्रोटेक्शन के लिए कोई अलग कानून नहीं है और न ही कोई संस्था है जो डेटा की गोपनीयता को सुरक्षा प्रदान करती हो। हालांकि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा-43ए के तहत डेटा संरक्षण हेतु उचित दिशा-निर्देश दिये गए है, लेकिन यह धारा नाममात्र का संरक्षण प्रदान करती है। असल में डेटा के संदर्भ में कई आयाम महत्वपूर्ण होते हैं जैसे डेटा का संग्रह कहाँ होता है, इसे कहाँ भेजा जाता है, इसे कहाँ उपयोगी डेटा में बदला जाता है, डेटा तक किनकी पहुँच है, कौन डेटा से लाभ कमाता है? दरअसल एप्पल, गूगल, फेसबुक, ट्विटर एवं वाट्सएप्प जैसी कंपनियां व्यापार के माध्यम से बड़े पैमाने पर लाभ कमा रही हैं, परंतु भारत में इन कंपनियों के दफ्तर नहीं होने से उन पर भारत के कानून लागू नहीं होते।

हाल ही में इंटरनेट व अलग-अलग माध्यमों से साझा किए गए भारतीयों के डेटा को सुरक्षित रखे जाने पर बहस तेज हुई है। डेटा सुरक्षा की गंभीरता 'क्या आपका डेटा निजी हैÓ से 'आपका डेटा कितना निजी हैÓ तक बढ़ गई है। इस सवाल के कारण भारत में डेटा सुरक्षा के जरिये डेटा प्राइवेसी की चर्चा भी तेज हो गई है। हाल के दिनों में सोशल साइट कंपनी वाट्सएप पर डेटा की सुरक्षा में लगी सेंध के बाद सरकार भी और सतर्क हो गई है। इस मामले को लेकर काफी बवाल भी मचा था। वाट्सएप मामले में आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा था कि सरकार निजता को गंभीरता से लेती है और सूचना की गोपनीयता इसी का हिस्सा है। व्हाट्सएप की डेटा चुराने के प्रकरण से पहले भी सोशल साइट की एक बड़ी कंपनी फेसबुक ने डेटा गोपनीयता की बात को स्वीकार किया है कि भारत के ही लगभग साढ़े पाँच लाख उपभोक्ताओं के डेटा को केम्ब्रिज एनालिटिका के साथ अनधिकृत तरीके से साझा किया गया। हमारे देश में फेसबुक का उपयोग करने वाले लगभग 24 करोड़ लोग हैं। अनुमान लगाया जा सकता है, कि डेटा सुरक्षा के अभाव में इतने लोगों की व्यक्तिगत जानकारियां दांव पर लगी हुई है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक ए.टी.एम, डेबिट-क्रेडिट कार्ड, नेटबैंकिग आदि में धोखेबाजी की घटनाओं में हालिया वर्षों में तेजी से वृद्धि हुई है। इन घटनाओं का असर इंटरनेट के उपभोग की विश्वसनीयता पर पड़ रहा है। इसके अलावा चुनाव और नीति निर्धारण के संदर्भ में सरकारों और राजनीतिक दलों के द्वारा भी इस प्रकार के डेटा में रुचि दिखाई जाती है। इसलिए डेटा संरक्षण के लिए वैधानिक प्रदान करना जरूरी हो चला है।

( शोध अध्येता, दिल्ली विश्वविद्यालय )

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