कॉमन सिविल कोड -एक समग्र विमर्श

Update: 2023-07-14 20:26 GMT

राकेश त्रिपाठी

भारत में लगभग विश्व के सभी धर्म,जातियों के लोग निवास करते हैं। विविधता एवं अनेकता में एकता ही भारत की खूबसूरती है। परंतु व्यक्तिगत एवं सामाजिक कानूनों में विविधता विद्रूपता एवं भेदभाव पैदा करती है। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की मांग को लेकर 2019 में दायर की गई पहली याचिका के बाद से यह एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है। यूसीसी की अवधारणा परस्पर विरोधी व्यक्तिगत और कथित धार्मिक कानूनों को खत्म कर देगी जिससे सभी नागरिकों को धर्म या लिंग से परे एक कानून के अंतर्गत लाया जाएगा। यूसीसी का प्रावधान संविधान के भाग 4 (राज्य के नीति निर्देशक तत्व) के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत किया गया है जिसके अनुसार राज्य अपने नागरिकों के लिए पूरे भारत में एक समान नागरिक संहिता (यूसीसी) सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। अनुच्छेद 37 में उेल्लखित है कि राज्य के नीति निर्देशक तत्व किसी भी अदालत द्वारा लागू नहीं किए जाएंगे तथापि वे देश के शासन के लिए मौलिक हैं।

यद्यपि यूसीसी हाल ही में चर्चा में आया है तथापि इस पर विमर्श सन 1835 में अंग्रेजों के शासन काल में प्रस्तुत लेक्स लोसी रिपोर्ट में भी आया था। अंग्रेजों ने फूट डालो, राज करो नीति के अंतर्गत यद्यपि अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय कानून के एकीकरण में एकरूपता लाने की आवश्यकता पर बल दिया था तथापि रिपोर्ट में हिंदू व मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस एकरूपता से बाहर रखने की सिफारिश की थी। इंग्लैंड की महारानी की 1859 के उद्घोषणा में भी धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप से दूर रहने की शपथ ली गई थी।

पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं डॉ बी आर अंबेडकर की यूसीसी विचारधारा को क्रियान्वित करने के दृष्टिकोण से 1956 में हिंदू कोड बिल लाया गया जिसमें सम्मिलित कानून थे-हिंदू विवाह अधिनियम 1955, उत्तराधिकार अधिनियम 1956 अप्राप्त वयस्कता एवं संरक्षकता अधिनियम, दत्तक ग्रहण और भरण पोषण अधिनियम तथा विशेष विवाह अधिनियम। दूसरी ओर वर्ष 1937 का शरीयत कानून भारत में मुसलमानों के सभी व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करता है। इसी प्रकार पारसी और इसाई धर्मों के अपने पर्सनल लॉ हैं।

वर्तमान में बहुत से भारतीय कानून सिविल मामलों में भी एक समान नागरिक संहिता का पालन करते हैं जैसे भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता 1973, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882, भागीदारी अधिनियम 1932, साक्ष्य अधिनियम 1872 तथा निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्टआदि। हालांकि राज्यों ने कई कानूनों में संशोधन किए हैं परंतु धर्मनिरपेक्षता संबंधी कानूनों में अभी भी विविधता है। आज यूसीसी सभी इस्लामिक देशों सहित विश्व के 125 देशों में लागू है।

भारत में समान नागरिक संहिता के विरुद्ध भी तर्क दिए जाते हैं और इसके मार्ग में चुनौतियां भी पेशेनजर आती हैं। जैसे समान नागरिक संहिता को धार्मिक एवं सांस्कृतिक विविधता के लिए एक खतरे के रूप में देखा जाता है। द्वितीय इसे संविधान के अनुच्छेद 14,15 (समानता के अधिकार) और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)एवं अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक अधिकारों (अनुच्छेद 29 एवं 30) के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है। तृतीय इसमें आम सहमति का अभाव दृष्टिगोचर होता है। चतुर्थ विधियों एवं प्रथाओं की एक विस्तृत श्रृंखला के सामंजस्य की समस्या और संविधान के अन्य प्रावधानों के साथ संघर्ष की संभावना रहती है। पंचम: समाज का एक वर्ग इसे राजनीति प्रेरित भी मानता है। परंतु आधुनिक प्रगतिशील एवं मानवतावादी दर्शन के समक्ष ये तर्क निराधार हैं।

भारत 'समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणतंत्रÓ है। विविधता भारत का सार है, लेकिन कानून में विविधता अन्यायपूर्ण है। चूंकि यूसीसी आस्था की परवाह किए बिना सभी लोगों को प्रभावित करने वाली व्यक्तिगत स्थितियों को विनियमित करने के लिए कानून स्थापित करेगा, जो अत्यावश्यक है और वास्तविक धर्मनिरपेक्षता की आधारशिला भी है।            (लेखक पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर के पूर्व मुख्य परिचालन प्रबंधक हैं)

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