मणिपुर के दो दिवसीय दौरे पर गया 21 सदस्यीय विपक्षी आईएनडीआईए सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के वक्तव्यों व विवरणों में ऐसा कुछ नहीं है जो पहले समाचार माध्यमों से हमारे आपके पास नहीं पहुंचे हों। कहने का तात्पर्य यह नहीं कि विपक्षी सांसदों का दौरा महत्वपूर्ण नहीं था। बिल्कुल महत्वपूर्ण था। जनप्रतिनिधि होने के नाते वहां जाकर सच्चाई को अपनी आंखों से देखना, समझना तथा जो कुछ समाधान के रास्ते नजर आए उसे देश,सरकार के समक्ष रखना विपक्ष का भी दायित्व है। इस नाते देखें तो कहा जा सकता है कि विपक्षी सांसदों का दौरा बिल्कुल उपयुक्त था। विपक्षी सांसदों ने राज्यपाल अनुसुइया उइके से मुलाकात कर अपना ज्ञापन भी दिया। राज्यपाल को ज्ञापन देने का अर्थ है कि वह केंद्र सरकार तक भी पहुंच गया होगा। आखिर राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर ही प्रदेश के संवैधानिक प्रमुख होते हैं। दिल्ली आने के बाद प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू से भी मुलाकात कर अपनी बात रखी। इन सबके साथ विपक्ष का मूल स्वर यही है कि प्रधानमंत्री इस विषय पर बोलें। तो फिर बात आकर वहीं अटक गई है। प्रश्न है कि अब आगे क्या?
एक ओर आप मणिपुर की स्थिति का आकलन करें और दूसरी ओर संसद न चलने दें तो रास्ता निकलेगा कैसे? सांसदों के दल ने राज्यपाल को जो ज्ञापन दिया उसके अनुसार 140 से अधिक मौतें हुई, 500 से अधिक लोग घायल हुए, 5000 से अधिक घर जला दिए गए तथा मैतेयी एवं कुकी दोनों समुदाय के 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। इन तथ्यों को कोई नकार नहीं सकता। उन्होंने यह भी लिखा है कि राहत शिविरों में स्थिति दयनीय है। प्राथमिकता के आधार पर बच्चों का विशेष ख्याल रखने की जरूरत है। विभिन्न स्ट्रीम के छात्र अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं जो राज्य और केंद्र सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए। इस तरह के सुझावों को स्वीकार करने में केंद्र और प्रदेश सरकार को समस्या नहीं हो सकती है। इस तरह के जातीय नस्लीय संघर्ष में शांति, राहत तथा पुनर्वास अत्यंत कठिन होता है। हर संभव कोशिश करने के बावजूद राहत शिविरों में लोगों को सामान्य जीवन देना पूरी तरह संभव नहीं होता। तो इसके लिए जितनी कोशिश संभव है की जानी चाहिए। शेष बातें तो सरकार की आलोचना है जिन पर बहुत चर्चा करने की आवश्यकता नहीं। लेकिन अगर वाकई विपक्ष मणिपुर में शांति व्यवस्था स्थापित करने की आकांक्षा रखता है तथा यह चाहता है कि इस तरह की पुनरावृत्ति भविष्य में नहीं हो तो उसे अपने दायित्व पर भी विचार करना चाहिए।
अगर राज्यपाल अनुसुइया ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने तथा सभी समुदायों के नेताओं से बात करने का सुझाव दिया है तो इसे स्वीकार करने में किसी को समस्या नहीं हो सकती है। मणिपुर का संकट नि:संदेह, राष्ट्रीय सुरक्षा का संकट है। पर विपक्ष का यह कहना कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जाए यह गले नहीं उतर सकता। जाहिर है इसमें मणिपुर की चिंता कम और आगामी लोकसभा चुनाव की राजनीति ज्यादा दिखती है। वैसे तो 18 जुलाई को बेंगलुरु में आईएनडीआईए के गठन के साथ ही स्पष्ट हो गया था कि आगामी संसद में विपक्ष आक्रामक भूमिका निभाएगा तथा हर स्तर पर यह संदेश देने की कोशिश करेगा कि वे एकजुट हैं और नरेंद्र मोदी सरकार के विरुद्ध प्रखरता से हमले कर रहे हैं। संसद के अधिवेशन में यही दिख रहा है। प्रधानमंत्री बोलें इस एक जिद के कारण दोनों सदनों की कार्यवाही लगातार बाधित है। सच यह है कि चाहे कश्मीर हो या पूर्वोत्तर हिंसा और अशांति के बीच सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का कभी भी प्रधानमंत्री ने नेतृत्व किया हो इसका रिकॉर्ड नहीं है। अगर आईएनडीआईए के नेता इसकी मांग कर रहे हैं तो उन्हें बताना चाहिए कि इसके पूर्व कब प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हिंसा में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल गया? मणिपुर में भाजपा की सरकार है और केंद्र में भी तो निश्चित रूप से प्रदेश की स्थिति को लेकर उससे प्रश्न किया जाएगा। विपक्ष कटघरे में खड़ा करेगा यह भी स्वाभाविक है। सरकार उत्तर दे इसमें भी दो मत नहीं हो सकता किंतु प्रधानमंत्री ही उत्तर दें इसका अर्थ तो यही है कि आपको सरकार के वक्तव्य से ज्यादा अपनी राजनीति साधनी है। कुछ विषय ऐसे होते हैं जिन पर राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों को व्यवहार करना चाहिए। देश की एकता अखंडता तथा आंतरिक अशांति व संघर्ष के मामले पर अगर राजनीतिक एकता नहीं होगी तो किस पर होगी?
यह तो संभव नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर पर कभी बोलेंगे ही नहीं। इससे कोई इनकार कर नहीं सकता कि मणिपुर में स्थिति धीरे-धीरे शांत हो रही है। सरकार ने कुकी और मैतेयी दोनों समुदायों के नेताओं के साथ बातचीत शुरू की है और इसके कई दौर संपन्न हो चुके हैं। सेना और केंद्रीय सशस्त्र बल वालों ने दोनों समुदायों के बीच कुछ बफर जोन भी स्थापित कर दिए हैं। मर्चुअरी में पड़े मृतकों के शवों के अंतिम संस्कार किए जा रहे हैं। थोड़े समय में जलाए गए, उजाड़े गए घरों के पुनर्निर्माण की भी शुरुआत होगी। तोड़े गए ध्वस्त किए गए सड़कें और पुल भी बनने शुरू होंगे। सुरक्षा बढ़ने के साथ यातायात की शुरुआत भी होगी। जहां-जहां संभव है विद्यालय खोले गए हैं। कहने का तात्पर्य है कि मणिपुर को सामान्य स्थिति में लाने की सरकारी स्तर पर कोशिशें जारी है। सरकार ने तात्कालिक और दूरगामी लक्ष्य बनाया होगा। इसमें एक सोपान तक पहुंचने के बाद अब प्रधानमंत्री का वक्तव्य देना उचित होगा। यही मणिपुर पूरे पूर्वोत्तर तथा देश के हित में होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)