लोकतंत्र का मंदिर या शोरतंत्र का अखाड़ा?: मानसून सत्र में हंगामे पर बीजेपी सांसद प्रवीण खंडेलवाल से तीखी बातचीत…

Update: 2025-07-22 05:50 GMT

अनीता चौधरी, नई दिल्ली: मानसून सत्र का आगाज़ हो चुका है, लेकिन पहले ही दिन संसद का माहौल हंगामे की भेंट चढ़ गया। लोकतंत्र का यह पवित्र मंदिर, जहां देशहित में सकारात्मक चर्चा की उम्मीद थी, विपक्ष के शोर-शराबे में शोरतंत्र में तब्दील होता नज़र आया।

इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे नवीनता और शौर्य का प्रतीक बताया, विशेष रूप से ऑपरेशन सिंदूर जैसे भारत के गौरवशाली अभियान का जिक्र करते हुए, जिसने विश्व पटल पर देश का नाम रौशन किया। लेकिन विपक्ष के तेवर और हंगामे ने सत्र की शुरुआत को धूमिल कर दिया। आखिर बीजेपी इस सबके बारे में क्या सोचती है? हमने इस मुद्दे पर बीजेपी सांसद प्रवीण खंडेलवाल से खास बातचीत की।

विपक्ष का हंगामा: चर्चा की इच्छा या सुनियोजित एजेंडा?

प्रवीण खंडेलवाल ने विपक्ष के रवैये पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह हर मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है। खुद प्रधानमंत्री, संसदीय कार्य मंत्री और रक्षा मंत्री ने इसकी पुष्टि की थी, बशर्ते चर्चा संसद की मर्यादा और नियमों के दायरे में हो। खंडेलवाल ने विपक्ष के शोर-शराबे को सुनियोजित एजेंडा करार देते हुए कहा, "जब सरकार हर मुद्दे पर खुली चर्चा को तैयार है, तो नारेबाजी की क्या ज़रूरत? यह साफ़ है कि विपक्ष का मकसद चर्चा नहीं, बल्कि हंगामा खड़ा करना था।" उनके अनुसार, विपक्ष का यह रवैया पहले से तय था, जिसने सदन की कार्यवाही को बाधित किया और मानसून सत्र का पहला दिन बेकार गया।

राहुल गांधी की शिकायत: हकीकत या बहाना?

विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया जाता। इस पर खंडेलवाल ने पलटवार करते हुए सवाल उठाया, "राहुल गांधी की सदन में उपस्थिति कितनी रही है? पिछले एक साल का रजिस्टर देख लें, तो शायद उन्हें खुद शर्मिंदगी महसूस हो।" उन्होंने दावा किया कि राहुल गांधी के आरोप बेबुनियाद हैं और विपक्ष के पास न तो तर्क हैं, न ही चर्चा की इच्छा। खंडेलवाल ने जोर देकर कहा, "विपक्ष सिर्फ़ कुतर्क और आरोपों की राजनीति करना चाहता है, लेकिन सदन ऐसे नहीं चलता।"

ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा: नियमों की अनदेखी क्यों?

जब हमने पूछा कि विपक्ष ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की मांग कर रहा था, तो सरकार ने इसे क्यों टाला, खंडेलवाल ने स्पष्ट किया कि चर्चा नियमों और परंपराओं के तहत होनी चाहिए। उन्होंने कहा, "स्पीकर ने विपक्ष से नोटिस देने को कहा, जो संसदीय प्रक्रिया का हिस्सा है। लेकिन विपक्ष ने प्रश्नकाल में खड़े होकर सिर्फ़ शोर मचाया। यह साफ़ है कि उनका मकसद हंगामा था, न कि चर्चा।"

क्या राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल: जवाब से बच रही सरकार?

विपक्ष ने पहलगाम आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान जाने के मुद्दे को उठाया और पूछा कि आतंकी अभी तक क्यों नहीं पकड़े गए। इस पर खंडेलवाल ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सार्वजनिक मंचों पर खुली चर्चा उचित नहीं। "कुछ जानकारियां गोपनीय होती हैं, जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। फिर भी, सरकार ने बार-बार कहा कि वह नियमों के तहत चर्चा को तैयार है। लेकिन विपक्ष डंडे के ज़ोर पर सदन नहीं चला सकता।"

विपक्ष के रवैये पर केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान का सवाल : 'पाकिस्तान की भाषा'

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा कि वे 'पाकिस्तान की भाषा' बोल रहे हैं और हंगामे से सदन को चलने नहीं दे रहे। खंडेलवाल ने इस पर सहमति जताते हुए कहा, "हमें अपने सैनिकों के शौर्य का सम्मान करना चाहिए, शहीदों को श्रद्धांजलि देनी चाहिए और देश की सुरक्षा को मज़बूत करने की चर्चा करनी चाहिए। लेकिन विपक्ष के पास न सुझाव हैं, न तर्क, सिर्फ़ आरोप और कुतर्क हैं।"

जनता की उम्मीदें और विपक्ष का हंगामा

ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह पहला संसदीय सत्र था, और जनता को उम्मीद थी कि शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाएगी और सेना के शौर्य की गाथा गाई जाएगी। लेकिन विपक्ष के हंगामे ने इन मुद्दों को पीछे धकेल दिया। इस बातचीत में प्रवीण खंडेलवाल ने साफ़ किया कि सरकार रचनात्मक चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन विपक्ष को संसद की मर्यादा और प्रक्रिया का सम्मान करना होगा।

लोकतंत्र की जीत या शोरतंत्र की?

मानसून सत्र की शुरुआत ने एक बार फिर सवाल उठाया है कि क्या संसद वाकई जनता की आवाज़ का मंच है, या सिर्फ़ राजनीतिक शोर का अखाड़ा? जब देश ऑपरेशन सिंदूर जैसे शौर्यपूर्ण कदमों का जश्न मना रहा है, तब संसद में हंगामे की जगह सकारात्मक चर्चा की ज़रूरत है। क्या विपक्ष मानसून सत्र को अपने नाम सकारात्मक राजनीति के साथ भुनाएगा, या शोरतंत्र में ही उलझा रहेगा? 

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