यह लिपिकीय चूक नहीं, सिस्टम फेलियर: कैदी को रिहा न करने पर UP सरकार को सुप्रीम फटकार, 5 लाख का जुर्माना

Update: 2025-06-25 07:35 GMT

लिपिकीय चूक नहीं, यह सिस्टम है फेलियर : कैदी को रिहा न करने पर UP सरकार को सुप्रीम फटकार

उत्तरप्रदेश। कैदी को रिहा न करने पर उत्तरप्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है। अदालत ने 5 लाख का जुर्माना लगाते हुए कहा कि, लिपिकीय चूक नहीं, यह सिस्टम फेलियर है। गाजियाबाद जेल में जमानत के बावजूद 28 दिन तक कैदी को छोड़ा नहीं गया था। इसके चलते मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और एनके सिंह की पीठ ने मामले की सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि, जमानत आदेश में अपराध और आरोप स्पष्ट थे फिर भी एक उपधारा का उल्लेख न होने के बहाने रिहाई में देरी हुई। जेल अधीक्षक व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश हुए जबकि UP के DIG (जेल) VC के जरिए पेश हुए।

इस मामले में अदालत ने राज्य की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद का तर्क भी खारिज कर दिया।

पीठ ने कहा कि, मामला बेहद गंभीर है यह सिर्फ एक लिपिकीय चूक नहीं, सिस्टमिक विफलता दिखती है। बेकार की तकनीकी त्रुटियों के आधार पर आजादी को रोका नहीं जा सकता।"

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए गाजियाबाद जेल में जमानत आदेश के बावजूद 28 दिन तक कैदी को रिहा न करने पर 5 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया है।

अदालत की कार्यवाही :

सुप्रीम कोर्ट ने गाजियाबाद जेल से एक आरोपी व्यक्ति की रिहाई न होने पर नाराजगी जताई, जबकि शीर्ष अदालत ने जमानत आदेश पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि जिस प्रावधान के तहत उसे बुक किया गया था, उसकी उपधारा का उल्लेख जमानत आदेश में नहीं किया गया था।

एएजी गरिमा प्रसाद ने बताया कि, एसजी जेल ने डीआईजी मेरठ को जांच करने का निर्देश दिया है..इससे पता चलेगा कि आखिर देरी क्यों हुई।

जस्टिस केवी विश्वनाथ ने कहा - देखिए, आदेश कितने भोलेपन से पारित किए गए हैं। संशोधन की मांग की जा रही है। हमें नहीं पता कि ऐसे कितने लोग जेलों में सड़ रहे हैं। जब इस अदालत ने उसे स्वतंत्रता प्रदान करने वाला वैध आदेश दिया है तो उसे कैसे छीना जा सकता है। हम निहित स्वार्थ वाले हिस्से को खारिज करना चाहते हैं। बहुत सारी जेलें हैं। ये स्वतंत्रता के मामले हैं। कृपया जान लें। हम इस मामले को नहीं छोड़ेंगे। हमें नहीं पता कि कितने लोग सड़ रहे हैं।

डीजी जेल पेश हुए

सुप्रीम कोर्ट : आदेश एक वैध आदेश है। यह जाली आदेश नहीं है। यह बिल्कुल जायज आपत्ति है। हम अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए क्या कर सकते हैं।

डीजी (जेल)  - हम दिशा-निर्देश जारी कर सकते हैं।

न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन - अगर हम अपने आदेशों के बावजूद लोगों को सलाखों के पीछे रखते हैं तो हम क्या संदेश दे रहे हैं??

सुप्रीम कोर्ट - अगर किसी को दोषी ठहराया जाता है तो हम व्यक्तिगत देयता लगाएंगे। कृपया जान लें कि अगर अधिकारी शामिल है तो लागत का भुगतान अधिकारी को स्वयं करना होगा। हम आरोपी को भुगतान करने के लिए 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाएंगे। अब कौन भुगतान करेगा यह जांच रिपोर्ट पर निर्भर करता है जो प्रस्तुत की जाएगी।

जब अदालत ने पूछा कि, कौन जांच कर रहा है? तो एएजी ने डीआईजी जेल बताया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा - नहीं हमें इस पर न्यायिक जांच की जरूरत है।

जस्टिस विश्वनाथन - सही हो या गलत, मौलिक कर्तव्य अदालत के आदेश का पालन करना है। कौन सा प्रावधान कहता है कि यह केस नंबर सेक्शन नंबर पर्याप्त नहीं है और सब सेक्शन का उल्लेख नहीं करने का मतलब है कि पक्षकार जेल में रहेंगे। आप जिस हाईकोर्ट के आदेश का हवाला दे रहे हैं, उसमें यह नहीं बताया गया है कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं।

एएजी ने कहा - हाईकोर्ट के आदेश में जो कहा गया है, वह निचली अदालतों के लिए है, जेल अधिकारियों के लिए नहीं।

सुप्रीम कोर्ट - अगर निचली अदालतें जोर नहीं देतीं तो जेलर ऐसा कैसे कर सकते हैं। अगर स्वतंत्रता में यही रवैया है तो हम लागत को बढ़ाकर 10 लाख कर देंगे।

न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन - यह कहा गया है कि अभियुक्त को 28 मई को जिला एवं सत्र न्यायाधीश के समक्ष संशोधन आदेश प्रस्तुत किए जाने के बाद से रिहा नहीं किया गया तथा उसका निपटारा नहीं किया गया। एएजी ने कहा कि मामले का लंबित होना रिहाई न होने का कारण था।

सुप्रीम कोर्ट: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुधार आवेदनों के दाखिल किए जाने तथा जमानत बांडों के अस्वीकार किए जाने पर पीड़ा व्यक्त की है। डीजी जेल हमें आश्वस्त करते हैं कि वे अधीनस्थों को न्यायालय का सम्मान करने तथा अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत व्यक्तियों की स्वतंत्रता के महत्व के बारे में जागरूक करेंगे। न्यायालय के आदेशों पर मीनमेख निकालना तथा इस बहाने न्यायालय के आदेशों का क्रियान्वयन न करना कर्तव्य की गंभीर उपेक्षा होगी। हम डीजी जेल के आश्वासन को दर्ज करते हैं कि आदेश का सार देखा जाना चाहिए तथा छोटे-छोटे मुद्दों पर क्रियान्वयन से बचना नहीं चाहिए। डीजी जेल ने जांच शुरू कर दी है। हमें लगता है कि उनके द्वारा जांच किए जाने के बजाय सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश द्वारा जांच की जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट (आदेश संशोधित) - हम इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध करते हैं कि वे गाजियाबाद के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को नियुक्त करें जो मामले की जांच करेंगे और इस अदालत को रिपोर्ट सौंपेंगे। जांच इस पहलू पर केंद्रित होगी कि क्या आवेदक/याचिकाकर्ता को पेश करने में कोई देरी हुई और उसे 27 मई, 2025 से आगे क्यों हिरासत में रखा गया। जिला न्यायाधीश को यह देखना होगा कि क्या इस मामले में देरी के लिए लापरवाही या घोर लापरवाही थी और इसके लिए जिम्मेदारी तय करनी होगी।

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