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ममता की मनमानी से तृणमूल में उभरा असंतोष

Update: 2019-03-16 18:28 GMT

नई दिल्ली/विशेष प्रतिनिधि। तृणमूल कांग्रेस में भी असंतोष फूट पड़ा है। पहली सूची में कई सांसदों के टिकट काट दिए गए है। लिहाजा, टिकट से वंचित नेताओं ने बगावत का झंडा उठा लिया हैं। इतना ही नहीं टिकट बंटवारे से संगठन में भी नाराजगी बढ़ी है। पार्टी के जिला और प्रदेश पदाधिकारी ममता बनर्जी के चहेतों को टिकट देने के फैसले से खफा हैं। मतलब, साफ है कि भाजपा के बढ़ते कदम और पनपती आंतरिक कलह तृणमूल की राह में मुश्किल पैदा कर सकती है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और दिल्ली में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल की नीति एक जैसी है। दोनों नेता यह मान बैठे हैं कि चुनाव में जीत सिर्फ उनकी वजह से मिलती है। इसीलिए पिछले चुनाव में ममता बनर्जी द्वारा जातिगत और धार्मिक समीकरण को ध्यान में रख नए चेहरों को लोस चुनाव में उतारा गया। इसका परिणाम अच्छा आया और पांच साल बाद ममता बनर्जी फिर उसी फार्मूले पर उतर आई हैं। परन्तु इस बार मामला थोड़ा बिगड़ता दिख रहा है। सूत्र बताते हैं कि पार्टी द्वारा 42 प्रत्याशियों की जो सूची जारी की गई है, उसमें सभी सांसदों के टिकट काट दिए गए हंै। इसके अलावा कुछ सीटों पर ऐसे लोगों को उम्मीदवार बनाया गया है, जिसके खिलाफ संगठन खड़ा हो गया है। पता चला है कि लोस उम्मीदवार का नाम ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिजीत तय कर रहे हैं। यह दोनों लोग किसी ऐसे नेताओं को दोबारा टिकट देने से इसलिए बच रहे हैं, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि दोबारा जीत हासिल करने के बाद वह उनके हाथ से निकल सकते हैं। इसलिए ममता बनर्जी इस बार थोक के भाव टिकट काटने पर उतारू हैं। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस और वामदल से तृणमूल में शामिल हुए नेताओं को तव्वजो देने के कारण पार्टी के कद्दावर नेता तृणमूल कांग्रेस छोडक़र भाजपा के पाले में आ रहे हैं। अभी तक आधा दर्जन नेता आ चुके हैं और कुछ नेताओं के और आने की संभावना है। बंगाल में जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उससे लग रहा है कि इस बार के चुनाव में ममता बनर्जी को अपनों से ही जूझना पड़ेगा। एक तरफ पार्टी के अंदर असंतोष तेजी से पनप रहा है, दूसरी तरफ तृणमूल छोड़कर गए नेताओं को यदि भाजपा से टिकट मिल गया तो मुकाबला रोचक हो जाएगा। पार्टी के एक नेता का कहना है कि तृणमूल के सुलझे हुए नेताओं की जगह पर नौसिखियों को टिकट देने का नुकसान उठाना पड़ सकता है। पार्टी के नेताओं का मानना है कि जिन लोगों को उपेक्षित किया गया है, वह पिछले पांच साल से क्षेत्र में ममता बनर्जी के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे में उनके पार्टी छोडक़र जाने का व्यापक असर पड़ेगा। तृणमूल के दक्षिण दिनाजपुर जिला प्रमुख बिप्लव मित्रा तो खुलकर विरोध में आ गए हैं। उन्होंने दो टूक कहा कि बेलुरघाट लोकसभा सीट से अर्पिता घोष को दोबारा टिकट दिया जाना ठीक नहीं है, क्योंकि लोग उनसे नाराज हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी नेतृत्व को बताने के बाद अर्पिता को टिकट देने से हम जीत की गारंटी नहीं ले सकते। दरअसल, अर्पिता रंगमंच की कलाकार हैं और ममता जानती हैं कि वह बड़ा चेहरा नहीं बन सकती। पश्चिम बंगाल में अपनी जीत का दंभ भरने वाली ममता बनर्जी की पार्टी में जिस तरह का विद्रोह भडक़ा है, उससे साफ लग रहा है कि इस बार के चुनाव में भाजपा बंगाल में कई सीटों पर कमल खिला सकती है। 

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