राजनीति भिंड की...: या तो कोई जमानत पर रिहा है, या फिर है कोई फरार
अतुल तारे
भोपाल। भिंड के विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह से आप क्या अपेक्षा रखते हैं? अपनी अब तक की राजनीति में कुशवाह ने जो भी पद यश (इसे अपयश भी पढ़ सकते हैं) या साम्राज्य स्थापित किया है, वह अपने बाहुबल से ही किया है। तो अगर वह जिलाधीश को मुक्का मारते दिख रहे हैं तो हंगामा क्यों बरपा। यह भिंड की राजनीति का नंगा सच है। इसमें राजनीतिक नेतृत्व भी दोषी है और वह जनता भी जो बार-बार कपड़े की तरह बदलने वाले नेताओं को अपना प्रतिनिधि चुनती है। जैसी प्रजा होगी, राजा भी वैसा ही होगा। इसलिए संभावनाओं से भरे इस क्षेत्र की आज जो दुर्दशा है, उसमें सभी भागीदार हैं।
दुष्यंत याद आ रहे हैं इस सिरे से उस सिरे तक, सब शरीके जुर्म हैं या तो कोई जमानत पर रिहा है, या फिर है कोई फ़रार। ताजा प्रसंग में सब जानते हैं कि संकट खाद का नहीं था। पेट में दर्द था और दोनों तरफ़ था। जिलाधीश संजीव श्रीवास्तव भी जिलाधीश की गरिमा से कोसों दूर दिखाई दे रहे थे। कुछ मिनटों के वीडियो में दोनों तरफ से जो संवाद हुआ है, वह शर्मनाक है। और
नेतृत्व की कड़ी समझाइश कम लग रही है। कारण श्री कुशवाह ने भिंड आकर थाने में जिलाधीश के खिलाफ़ आवेदन दे दिया है। जिलाधीश भी नेतागिरी के मूड में हैं और एक आवेदन उनका भी है थाने में। अब थानेदार किसकी जांच करे, वह अपने कप्तान का इंतजार कर रहा है। कप्तान पुलिस मुख्यालय की ओर ताक रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारी संघ मुख्यमंत्री को ज्ञापन दे रहा है। वह भी अपने अधिकारी को कुछ समझाने की आवश्यकता नहीं समझता।
आवश्यकता एक कठोर राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छा शक्ति की है। समय रहते एक सख्त संदेश नहीं दिया गया तो तय मानिए अभी सिर्फ मुक्का ताना गया है। यह किसी पर भी चल सकता है और चल भी रहा है। भिंड में रेत सहित कई अवैध धंधे एक उद्योग की भांति चलते हैं। इसलिए अनुकूलता के बावजूद यहां यूं उद्योग नहीं है। नेता, प्रशासन और वह सभी जो दबाव बनाना जानते हैं, इसके हिस्सेदार हैं। झगड़ा यही रहता है कि कौन अधिक बटोरे ? पक्ष, विपक्ष भी इस खेल में एक हैं। जनता जिसे प्रतिनिधि चुनना है, वह जाति देखती है, अपना हित देखती है। परिणाम सामने है।
विचार अब भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व को करना है। उसे यह समझना ही होगा कि उनका दल एक कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक दल है। प्रदेश, भाजपा की एक अद्भुत प्रयोगशाला है। मध्य प्रदेश में भिंड एक ऐसा क्षेत्र है, जहां संगठन की जड़ें बेहद गहरी हैं। भाजपा जिस विचार से प्रेरणा लेती है, उसके
तपोनिष्ठ प्रचारकों की एक लंबी श्रृंखला है, जिसने क्षेत्र को अपने पसीने से सींचा है। यह वही क्षेत्र हैं, जहां से मामा माणिकचंद वाजपेयी जैसे संगठन शिल्पी निकले, जिन्होंने संघ के निर्देश पर जनसंघ की जड़ें जमाईं। और संगठन के ही आदेश पर राजमाता सिंधिया के खिलाफ़ चुनाव भी लड़ा और बाद में वही राजमाता जनसंघ और भाजपा के विचार से जुड़ीं। जाहिर है, क्षेत्र में कार्यकर्ताओं के स्तर पर यह भूमि उर्वरा है, पर नेतृत्व में शून्य। नेतृत्व ने तात्कालिक आवश्यकता को देख कर जिन-जिनको विधायक, सांसद या मंत्री बनाया वह सुविधा के अनुसार दल एक बार नहीं बार बार कपड़ों की तरह बदलते रहे। यही नहीं कतिपय ऐसे भी हैं जिन्होंने दल तो नहीं बदला पर अपने मूल्य बदल लिए। अपने लाभ के लिए विरोधी नेताओं की भरपूर सहायता की और अपना साम्राज्य बनाया। और इस कृत्य पर वरिष्ठ नेताओं ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए न केवल आंखें मूंद लीं बल्कि अपना समर्थन भी दिया। और इसके चलते वह उपेक्षित ही रहे, जिनका एकमात्र कसूर (?) यह था कि वह पार्टी के प्रति निष्ठावान रहे। परिणाम सामने है।