डीप स्टेट लॉबी के निशाने पर है भारत और प्रधानमंत्री मोदी
श्रीलंका और जापान के घटना क्रम और हमारी चिंताएं
नईदिल्ली/वेबडेस्क। जापान के प्रधानमंत्री रहे शिंजो आबे की हत्या,ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का स्तीफा,श्रीलंका में शनिवार को हुआ हिंसक प्रदर्शन इससे पहले ट्रप का जाना और भारत में पिछले कुछ समय से सीएए , किसान आन्दोलन,अग्निवीर पर उवद्र्व। इन सबको एक साथ समझने की आवश्यकता है। भारत के लिए एक बड़ा वैशविक खतरा मुंह फाड़े खड़ा है।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाला आज का भारत एक नए अंतरराष्ट्रीय खतरे से मुकाबिल है। शिंजो आबे की हत्या एक बहुत बड़ा घटनाचक्र है जिसे हर भारतीय को गंभीरतापूर्वक समझना होगा। तथ्य यह है कि आबे की हत्या भारत के लिए एक बहुत बड़ा झटका है,यह विश्व व्यवस्था( वल्र्ड आर्डर) में भारत की उस धमक के विरुद्ध पेशबंदी है जिसे मोदी के नेतृत्व में दुनियां के ताकतवर देश पचा नही पा रहे है। चीन और अमेरिका इस खेल के खिलाड़ी है जो सशक्त भारत की संभावनाओं से भयभीत हैं। राजनीति विज्ञान में एक सिद्धांत है-'डीप स्टेट का।
इसका मतलब है दुनिया के ताकतवर औऱ धनीमानी राष्ट्रों के पूर्व एवं मौजूदा शासकों,नीति निर्धारकों एवं बहुराष्ट्रीय कपनियों का एक दबाब समूह। यह दबाब समूह ही दुनियां के सभी कारोबारी गतिविधियों को रिमोट से परिचालित करता है। इसी डीप स्टेट के निशाने पर हैं भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। आबे की हत्या वल्र्ड आर्डर में डीप स्टेट के प्रभुत्व को स्थापित करती है और खतरा यहीं से भारत के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। इस अंक में हम समझने की कोशिश करते हैं कि भारत के विरुद्ध पेशबंदी यानी षड्यंत्र का विस्तार किस व्यापक फलक पर आकार ले चुका है।
आबे मतलब भारत की बड़ी ताकत -
- शिंजो आबे पहले शख्स थे जिन्होंने डोकलाम बॉर्डर पर चीनी घुसपैठ का स्पष्ट शब्दों में विरोध करते हुए भारत के साथ खड़े होकर दुनियां को चीनी विस्तारवाद के विरुद्ध कड़ा संदेश दिया था।
- शिंजो आबे ने चीन के विरुद्ध 'क्वाड' संगठन खड़ा किया जिसमें भारत को शामिल किया।
- शिंजो आबे ने मालाबार नेवल एक्ससरसाइज में जापान को शामिल कर चीन के विरुद्ध भारत की ताकत को संयुक्त करने का काम किया ताकि चीनी विस्तारवाद पर नकेल कसी जाए।
- प्रधानमंत्री मोदी के साथ शिंजो आबे की निजी मित्रता एक मिसाल मानी जाती थी। दोनों नेता 2006 से ही परम मित्रता के रिश्ते में थे। अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन असल में मोदी-आबे मित्रता का ही नतीजा है जिसकी 80 फीसदी रकम जापान द्वारा वित्तपोषित है।
- आबे ने जापान को परमाणु शक्ति के रूप में बढ़ाने का संकल्प व्यक्त किया और अपने देश के संविधान में बदलाब की बुनियाद रखी।
- चीन को यह कतई स्वीकार नही था कि उसकी सीमाओं से सटा जापान परमाणु शक्ति सपन्न हो और उसका रिश्ता भारत के साथ इस सीमा तक मजबूत रहे कि डोकलाम जैसे मुद्दे पर वह चीन के विरुद्ध सार्वजनिक रूप से खड़ा रहे।
- समुद्री लिहाज से मालाबार नेवल गठबंधन में जापान की अतिशय सक्रियता अंतत: भारत के सामरिक हितों को मजबूत करती है यह प्रकल्प शिंजो आबे औऱ मोदी की दोस्ती से ज्यादा ही प्रभावी होकर चीन को बुरी तरह से परेशान कर रही है।
- शिंजो आबे ने अपनी भारत यात्रा के दौरान संसद को संबोधित करते हुए मुगल बादशाह दाराशिकोह की एक किताब 'मज्म उल बहरेन' का जिक्र किया था इसका अर्थ होता है दो समुद्रों का मिलन। ओबोनिक्स के तहत उन्होंने इसे भारत के लिए हिन्द औऱ प्रशांत महासागर के साथ रेखांकित किया था। यानी चीनी दादागिरी के विरुद्ध भारत से दोस्ती।
निष्कर्ष -
बेशक जापान के पीएम की कुर्सी शिंजो आबे ढाई साल पहले ही छोड़ चुके थे लेकिन विदेश औऱ सैन्य नीतियां अभी भी उन्हीं के प्रभाव से निर्मित हो रही थीं। जापान का सैन्यीकरण अमेरिका से लेकर चीन तक को परेशान कर रहा था। दोनों देश जापान के इस आबेनिस से बहुत परेशान थे। भारत और मोदी इस आबेनिस की महत्वपूर्ण कड़ी है। आसानी से समझ सकते है कि शिंजो आबे का इस तरह से अचानक चले जाना हमारे लिए कितना बड़ा नुकसान है।