संसद में सकारात्मक चर्चा की अपेक्षा...

Update: 2025-12-02 03:00 GMT

Parliament Security Breach

देश की सर्वोच्च पंचायत अर्थात संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका है। संसद ही वह स्थान है.. जहां पर देशभर के चुने हुए जनप्रतिनिधि देश की प्रत्येक समस्या, ज्वलंत विषयों और आवश्यकताओं पर न केवल तार्किक बहस कर सकते हैं. बल्कि नीति निर्माण के द्वारा संसद के आलोक में आई प्रत्येक समस्या का समाधान भी किया जा सकता है। ऐसा ही हो. इसके लिए जरूरी है कि संसद में सकारात्मक भाव के साथ पक्ष-विपक्ष प्रत्येक विषय पर न केवल तार्किक मंथन करें, बल्कि जनापेक्षाओं पर खरा उतरने की जो जवाबदेही माननीय सांसदों के कंधे पर वोट के द्वारा जनता जनार्दन ने जो सीधी है। उसका भी प्रत्येक संसदीय सत्र की शुरुआत एवं सत्रावसान के बाद सिंहावलोकन भी जरूरी है, बहस हो, हंगामा नहीं। यही वह बिंदु है, जो पक्ष विपक्ष के बीच एक महीन सी सीमा रेखा का निर्धारण करता है.. सत्तापक्ष के लिए बहस उतनी ही महत्वपूर्ण है। जितना कि किसी संस्था-संगठन या व्यक्ति के लिए प्रत्येक पहलू से किसी विषय पर अंतिम निर्णय लेने से पहले का मंचन महत्व रखता है, लेकिन जब विपक्ष हंगामे को ही बहस का विकल्प मानकर जि‌द्दी बच्चे की भांति हठ पर उतर आए, तब बहस से निकलने वाले समाधान की गौण होने की आशंका बढ़ जाती है।

संसद के शीतकालीन सत्र से पहले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक में जो सार निकलकर आया, वह तो यही था कि संसद में सकारात्मक चर्चा की जो अपेक्षाएं देशवासियों ने पक्ष विपक्ष से लगाई हुई है. उसमें हमारे माननीय इस बार खरे उतरेंगे.. लेकिन पहले दिन ही जिस हंगामे के दर्शन संसद में हुए हैं, उससे आने वाले समय में और 19 दिसंबर तक चलने वाले शीतकालीन सत्र में क्या हासिल होगा..? इस पर फिलहाल संशय के बादल है.. क्योंकि बैठक में पक्ष-विपक्ष के दोनों ही प्रमुख नेताओं ने इस बात का संकेत किया था कि यह सत्र अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। सरकार किसी भी मसले पर चर्चा से पीछे नहीं हट रही है.. लेकिन विपक्ष भी किसी एक मुद्दे को ही अपनी प्रतिष्ठा का यक्षप्रश्न बनाकर पूरी कार्यवाही को बाधित कैसे कर सकता है..?

संसद का मानसून सत्र अगर ऑपरेशन सिंदूर के नाम था, तो इसमें सरकार ने अपनी ओर से ऑपरेशन सिंदूर की आवश्यकता और उसके परिणाम व उपयोगिता को संसद के मान से देश के सामने रखकर उस मंच का सार्थक उपयोग करते हुए सकारात्मक संदेश दिया था... विपक्ष उस समय भी अपने तर्कहीन आरोपों और देश की सुरक्षा, सामरिक रणनीति पर सवाल उठाकर स्वयं संदेह के घेरे में आ खड़ा हुआ था। ऐसे में इस बार शीतकालीन सत्र क्या एसआईआर की भेंट चढ़ जाएगा..? सरकार और विपक्ष दोनों ही सदन के महत्वपूर्ण अंग हैं और दोनों ही सदनों में समझदारी, संयम और सहयोग की अपेक्षा पक्ष-विपक्ष से रहती है, क्योंकि करीब एक पखवाड़े तक चलने वाली संसद की इस कार्यवाही में देश में स्वास्थ्यगत ढांचा और सुरक्षा तैयारियों को लेकर शेष बिल समेत ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे है, जिसमें शिक्षा, सड़क, कॉर्पोरेट लॉ आदि को बिल के रूप में पटल पर रखा जाएगा।

सरकार की मंशा स्पष्ट है.. लेकिन विपक्ष का सहयोग भी उतना ही महत्वपूर्ण है. मानसून सत्र में लोकसभा की कार्यवाही उत्पादकता 31 प्रतिशत थी... जबकि राज्यसभा में यह प्रतिशत 39 रहा... कहने का तात्पर्य यह है कि विपक्ष के भारी हंगामे, शोर-शराबे के कारण कई महत्वपूर्ण घंटे सदन के बर्बाद हुए... सदन को बलाने की जिम्मेदारी जितनी सरकार की है, उतनी ही विपक्ष की भी है.. सरकार को घेरना, सवाल उठाना विपक्ष का कर्तव्य है. लेकिन सदन की मर्यादा और कार्यवाही के महत्व को ध्यान में रखकर ही पक्ष-विपक्ष को आगे बढ़ना होगा... जनापेक्षाएं तो यही है कि संसद का शीतकालीन सत्र मानसून सत्र से बेहतर परिणामूलक हो।

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