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भारत में उद्योगों को पटरी पर लाने के लिए राज्यों को 6.4 लाख करोड़ की जरूरत

Update: 2020-04-07 05:41 GMT

नई दिल्ली। कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में राज्यों के लिए धन की कमी बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकती है। देशभर में 21 दिन के लॉकडाउन से सभी राज्यों की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हुआ है। इसको संभालने के लिए भारतीय जीडीपी का सिर्फ तीन फीसदी खर्च करना पड़ा तो 6.4 लाख करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी।

विशेषज्ञों के कहना है कि 14 अप्रैल के बाद लॉकडाउन खुलने पर राज्यों को सिर्फ स्वास्थ्य क्षेत्र को बेहतर बनाने के लिए बजट आवंटन ही नहीं बढ़ाना बल्कि जिन क्षेत्रों पर सबसे अधिक असर हुआ है उनको पटरी पर लाने के लिए भी बड़े फंड की जरूरत होगी। मिंट द्वारा किए गए विश्लेषण के मुताबिक, अगर राज्य बजट आवंटन का सिर्फ 15% अधिक खर्च करते हैं तो 6.4 लाख करोड़ की जरूरत होगी।

राज्यों को बढ़ते खर्च को देखते हुए केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक राज्यों को उधारी लेने और एडवांस लेने से छूट दे सकती है। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान, राज्यों को उनकी उधार सीमा पर 0.5 प्रतिशत छूट दी गई थी।

कोरोना संकट के कारण राज्यों को जीएसटी संग्रह और दूसरे कर में भी कमी आएगी। इससे राज्यों की वित्तीय स्थिति और डांवाडोल होने का अनुमान है।गौरतलब है कि कोरोना संकट के कारण अभी तक छह राज्यों ने अपने कर्मचारियों की सैलरी में कमी की है या आगे बढ़ाया है। यह संकट गहराने पर दूसरे बचे राज्यों को भी यह करने पर मजबूर होना होगा।

केंद्र ने लॉकडाउन से सबसे अधिक प्रभावित लोगों के लिए 1.7 लाख करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया था। विशेषज्ञों का कहना है कि यह राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए काफी नहीं है। यह कुल जीडीपी का महज 0.8 फीसदी है जिसे बढ़ाने की जरूरत है। केरल ने ही 20 हजार करोड़ के पैकेज दिया है। 

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