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शक्तिशाली राष्ट्र का संकल्प

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

Update: 2018-09-19 22:47 GMT

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की यात्रा में नया पड़ाव जुड़ा। सरसंघचालक मोहन भागवत में समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को तीन दिन तक संबोधित किया। इस समारोह का व्यापक महत्व है। मोहन भागवत के तीन दिवसीय व्याख्यान को तीन खंडों में बांटकर देखा जा सकता है। पहला वह जिसमें उन्होंने संघ के विरुद्ध किये जा रहे मिथ्या प्रचार का समाधान किया। दूसरे में उन्होंने संघ की कार्यपद्धति को बताया। तीसरे खण्ड में उन्होंने भविष्य के प्रति दृष्टिकोण का उल्लेख किया।

यह बिडंबना है कि संघ जैसे राष्ट्रवादी संगठन को सर्वाधिक हमले झेलने पड़े। खासतौर पर कथित सेक्युलर पार्टियों ने तो इसे फैशन बना लिया। उन्हें लगता था कि संघ का विरोध करने से उन्हें धर्मनिरपेक्ष मान लिया जाएगा। जबकि ऐसे लोग स्वयं छद्दम धर्मनिरपेक्षता के रास्ते पर चल रहे थे। संघ पर झूठे आरोप लगा कर प्रतिबंध लगाए गए, नफरत का व्यवहार किया गया। यह नफरत आज तक जारी है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी संघ की शाखाओं पर टिप्पणी करते है। इस आधार पर संघ को महिला विरोधी बताया। संघ भगवा ध्वज को अपना गुरु मानता है। इस आधार पर कहा गया कि राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान नहीं करता।

राहुल को पश्चिमी सभ्यता की भी खूब जानकारी है। वहां पुरुषों की रेसलिंग, हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट, कुश्ती,बॉक्सिंग आदि होती है। क्या राहुल समूचे पश्चिमी जगत को इस आधार पर महिला विरोधी घोषित कर सकते है। मोहन भागवत ने इसका भी जबाब दिया। संघ को साम्प्रदायिक बताया जाता है। जबकि हिंदुत्व के विचार को लेकर चलने वाले कभी साम्प्रदायिक नहीं हो सकते। यह शाश्वत जीवन शैली है। इसमें मानवतावाद, सहिष्णुता, विश्व कल्याण का विचार समाहित है।

संविधान की मंशा और हिन्दुत्व के दर्शन में कोई विरोध नहीं है। संविधान की प्रस्तावना में हीं बंधुत्व की भावना का उल्लेख किया गया। यह शब्द हिंदुत्व की भावना के अनुरूप है। इस दर्शन में किसी सम्प्रदाय से अलगाव को मान्यता नहीं दी गई। अभी को अच्छा माना गया।

हिंदुत्व के विचार को लेकर चलने वाले कभी साम्प्रदायिक नहीं हो सकते। यह शाश्वत जीवन शैली है। इसमें मानवतावाद, सहिष्णुता, विश्व कल्याण का विचार समाहित है। राहुल संघ पर महिलाओं के साथ भेदभाव आरोप लगाते रहे हैं। राहुल पूंछते है कि संघ में कितनी महिलाएं हैं। कभी शाखा में महिलाओं को देखा है शॉर्ट्स में। मैंने तो नहीं देखा। भगवा ध्वज के प्रेम और तिरंगे के तिरस्कार के आरोपों को खारिज करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि संघ देश की आजादी से जुड़े सारे प्रतीकों का सम्मान करता है। तिरंगे के प्रति संघ के सम्मान का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया किस तरह से आजादी के पहले कांग्रेस के अधिवेशन में अस्सी फुट लंबे खंबे पर तिरंगा झंडा आधे में ही अटक गया था। उस अधिवेशन की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे। तब किशन सिंह राजपूत नाम के एक स्वयंसेवक ने खंबे पर चढ़कर तिरंगे का फहराया था। उनके अनुसार भगवा ध्वज को स्वयंसेवक अपना गुरू मानते हैं।

संघ की कार्यप्रणाली लोकतांत्रिक है। संगठन बताया। संघ के सभी फैसले सामूहिक सहमति से लिए जाते हैं। बैठकों में सभी लोग अपनी-अपनी बात खुलकर रखते हैं और फिर एक नतीजे पर पहुंच जाते हैं। एक बार किसी निर्णय पर पहुंच जाने के बाद उस मानना सबकी जिम्मेदारी हो जाती है। उन्होंने बुद्धिजीवियों को आमंत्रित करते हुए कहा कि संघ के लोकतांत्रिक कार्यशैली के लिए समझने लिए उसके कार्यक्रमों में आना चाहिए। स्यवंसेवकों की गुरूदक्षिणा से चलता है और बाहरी व्यक्ति के दान को भी स्वीकार नहीं करता है। इस तरह यह पूरी तरह स्वावलंबी संगठन है और किसी पर निर्भर नहीं है।

संघ संपूर्ण समाज को अपना मानकर काम करता है। भाषा, जाति, धर्म, खान-पान में विविधता है। उनका उत्सव मनाने की आवश्यकता है। कुछ लोग विविधता की आड़ में समाज और देश को बांटने की कोशिश में जुटे रहते हैं। लेकिन संघ विविधता में भी एकत्व ढूंढने का काम करता है। हमारी संस्कृति का आचरण सद्भाव पर आधारित है। यह हिंदुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत में रहने वाले इसाई और मुस्लिम परिवारों के भीतर भी यह भाव साफ देखा जा सकता है। संघ की स्थापना के असली उद्देश्य हिंदू समाज को जोड़ना था। किसी के विरोध में संघ की स्थापना नहीं कि की गई थी।

कार्यक्रम का विषय 'भविष्य का भारत: संघ की दृष्टि' था। समारोह में एक हजार ऐसे लोगों को आमंत्रित किया गया था जिनका संघ से सीधा संबन्ध नहीं रह है। लेकिन ये सभी विभिन्न क्षेत्रों के गण्यमान लोग थे। ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा थी जो संघ के किसी कार्यक्रम में पहले कभी शामिल नहीं हुए थे।

इस में क्षेत्रीय दलों और अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को आमंत्रित किया गया था। उनके प्रतिनिधि भी शामिल हुए।

मोहन भागवत पहले भी कह चुके है कि संघ को उसकी शाखाओं में गए बिना उसे समझना मुश्किल है। इसीलिए बुद्धिजीवियों को खुला आमंत्रण दिया गया था। यह कार्यक्रम अपने में बहुत सफल रहा। संघ के संबन्ध मे प्रचलित सभी भ्रांतियों को दूर किया गया।

संघ मजबूत भारत के निर्माण कार्य में समर्पित भाव से कार्य करता रहेगा।

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