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सिंधिया की अधीरता और गडकरी की शालीनता

सुबोध अग्निहोत्री

Update: 2018-07-30 05:00 GMT

नितिन गडकरी ने माफी मांग ली और महाराज का अपमान पल भर मे सम्मान में बदल गया। जरा सी बात पर गुना से दिल्ली तक हाय-तौबा। लोकसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिस भी दे दिया। एक छोटी सी मामूली घटना को सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इतना तूल देकर गजब ही ढा दिया। लेकिन भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने अपने संस्कारों और गुरुता का परिचय देते हुए बिना संकोच किये सदन में माफी मांग कर ज्योतिरादित्य सिंधिया को निरुत्तर कर पूरे मामले की हवा निकाल दी। ऐसा नहीं है कि यह घटना सिर्फ पहिली बार घटित हुई है। गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में सार्वजनिक निर्माणों के शिलान्यास और लोकार्पण समारोह में ऐसी नौटंकी कई बार हो चुकी है। अशोकनगर में ट्रॉमा सेंटर के लोकार्पण पर भी ऐसा ही तमाशा हो चुका है।

गुना शिवपूरी संसदीय सीट सिंधिया वंश की वंशानुगत सीट है। यहां से कै. श्रीमंत राजमाता जी एवं कै. स्व. माधवराव सिंधिया लोकसभा में चुन कर जाते रहे हैं और अब ज्योतिरादित्य सिंधिया वहां से लगातार सांसद हैं। लेकिन उनका ज्यादातर समय शिलापट्टिका लगाने, लगवाने को लेकर विवादित रहा है। वे ऐसा क्यों करते हैं या हो जाता है जो विवादित बन जाता है। सांसद ज्योतिरादित्य जी यह क्यों भूल जाते हैं कि वे सिंधिया राजवंश के वंशज हैं। शिवपुरी सिंधिया शासकों की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी अत: वहां का अधिकांश पुराना निर्माण उनके पूर्वजों का ही है। लेकिन गुना में कोई ऐसा ऐतिहासिक निर्माण नहीं है जो सिंधिया राजवंश की याद दिलाता हो। वे महादजी सिंधिया और कै. माधव राव सिंधिया द्वितीय एवं कै. श्रीमंत राजमाता जी की महान परंपराओं के संवाहक हैं। 1857 की क्रांति के प्रकरण को दरकिनार कर याद करें तो कै. जयाजीराव सिंधिया का नाम भी एक महान निर्माणकर्ता के रूप मे इतिहास में दर्ज है। जय विलास पैलेस, मोती महल, जैसी इमारतों के निर्माता स्व. जयाजीराव ही थे। इतनी बड़ी हैसियत और शख्सियत के वंशज होने के बाद भी छोटी-छोटी बातों को अपने मान-अपमान से जोड़ देना, सिंधिया वंश की परंपराओं का स्खलन है। स्व. माधवराव द्वितीय के समय में राज्य का समग्र विकास हुआ। उस समय तो जो भी निर्माण कार्य होते थे, राजा महाराजा ही करवाते थे। उनके शिलालेख कहां लगे? शहर की ऐतिहासिक इमारतें आपके परिवार की ही देन हैं। लेकिन तब राज तंत्र था और अब लोकतंत्र है। लोकतंत्र में रचने-बसने का प्रयास करेंगे तो शिला पट्टिका में नाम होने न होने पर भी आपके मान-सम्मान में कोई क मी नहीं आने वाली। आपके पितामह कै. स्व. जयाजी राव सिंधिया ने ही देश की आजादी के समय करोड़ों रुपये नवगठित भारत सरकार को दिये थे। आपका परिवार देश के नामचीन परिवारों मे शुमार है। एक बड़े भू-भाग पर आपका स्वामित्व रहा है और अभी भी है। फिर शिला पट्टिका पर नाम न होने से आपको क्या फर्क पडऩे वाला था।

आपके परिवार की गौरवशाली परंपरा का एक उदाहरण देना चाहता हूं।

''शहर के विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान में महारानी लक्ष्मीबाई कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय) की इमारत का निर्माण सन् 1897 ई. में कै . महाराज माधवराव सिंधिया द्वितीय के समय में हुआ था। इसके शिलान्यास का पत्थर भवन के ऊपर न लगा कर महाराज ने नींव में रखवा दिया था।ÓÓ उन्हीं के समय में हरसी और तिघरा बांध का निर्माण हुआ इतनी महान परंपराओं के बाद यदि शिला पट्टिका में नाम न होने पर विवाद हो तो अच्छी बात नहीं है।


आपका और आपके परिवार का मान सम्मान जनता-जनार्दन में बना हुआ है। किसी ग्रंथ का एक पृष्ठ गंदा हो जाने पर उस ग्रंथ को फेंका नहीं जाता। संभाल कर रखा जाता है। आप भी उसी ग्रंथ का हिस्सा है। बड़ी सोच और बड़ा मन रखने में ही बड़प्पन है। फिर केंन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने जब फोन पर ही गलती मान ली थी तो आपको तभी सहृदयता का परिचय दे देना था। लोकसभा में बोलने से वह कहीं ज्यादा अच्छा होता। आपने जन सेवा का व्रत लिया है। उसे पूरे मनोयोग से आप करते भी हैं लेकिन छोटी बातों को भूल जाना ज्यादा श्रेयस्कर होता है। लोकसभा में आपके विशेषाधिकार हनन पर श्री गडकरी जी कितने सहज थे और कितनी विनम्रता से उन्होंने खेद व्यक्त किया। आप फिर भी नहीं माने। तब केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को कांग्रेस शासन में क्या हुआ। यह याद दिलाना पड़ा। इतना बवाल मचने के बाद कुछ अफसरों पर गाज तो गिर सकती है लेकिन क्या शिला पट्टिका पर नाम का उल्लेख कर दिया गया?


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