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ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद बढ़ा कर राहुल ने साधे एक तीर से दो निशाने

- अतुल तारे

Update: 2019-01-24 07:25 GMT

नई दिल्ली। प्रदेश की राजधानी भोपाल से दो दिन पहले और देश की राजधानी नई दिल्ली से आज दो बड़ी खबरें आईं। दो बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के तार सीधे भले ही न जोड़े जाएं पर राजधानी भोपाल से जो संदेश निकला, 24 अकबर रोड नई दिल्ली ने ठीक उलट संदेश दिया। अब पहेली बुझा ही लेते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सांसद श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से सौजन्य भेंट की और आज ही श्री सिंधिया को न केवल कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया, अपितु पश्चिमी उत्तरप्रदेश का प्रभार भी दे दिया गया। बेशक श्री सिंंधिया की राजनीतिक यात्रा में यह एक बड़ा मुकाम है। कांग्रेस संगठन में राष्ट्रीय स्तर पर अपना स्थान सुनिश्चित करवाकर सिंधिया अब यह संदेश देने में तो सफल हो गए हैं कि उन्हें कमतर करके न आंका जाए पर साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह भी संदेश परोक्ष रूप से दे दिया है कि वह भोपाल में दक्षिण पश्चिम विधानसभा में सक्रियता अभी न दिखाएं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दिखाएं। लिखना खास जरूरी नहीं कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का निवास एवं श्यामला हिल्स भोपाल की इन्हीं विधानसभाओं में स्थित है।

उल्लेखनीय है कि श्री ज्योतिरदित्य सिंधिया को कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान आगे रखा। कांग्रेस सत्ता में भी आई। पर कांग्रेस की गुटीय राजनीति में पिछडऩे से कमलनाथ मुख्यमंत्री बने और श्री दिग्विजय सिंह सुपर मुख्यमंत्री। जाहिर है यह कसक श्री सिंधिया को अंदर तक हिला गई। 27 सफदरगंज रोड नई दिल्ली उनके निवास पर उनके समर्थक विधायकों ने प्रदर्शन भी किया। यह कहना तो मुश्किल है कि सिंधिया का यह इशारा था। पर इससे नुकसान जरूर उन्हीं का हुआ। बंधी मुट्ठी खुल और गई। कारण विधायकों की संख्या दो दर्जन पर सिमट गई। खैर! पर श्री सिंधिया ने पूरा जोर लगाकर अपने सिपहसालारों को ठीक-ठीक मंत्रालय जरूर दिला दिए। उधर कमलनाथ सरकार धीरे-धीरे लय पकडऩे लगी और श्री सिंधिया शपथ ग्रहण के बाद जो दिल्ली गए, भोपाल आए ही नहीं। पर दो दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से उनके निवास पर भेंट की। कौन नहीं जानता दोनों ही इन दिनों अपनों से अधिक दुखी है। पर अलग-अलग ध्रुवों पर खड़े यह राजनेता पहले परस्पर मिलते भी नहीं रहे हैं और मंच पर एक-दूसरे को निशाना भी खूब साधते हैं। ऐसे में यह सौजन्य भेंट भले ही हो पर राजधानी के सर्द मौसम की यह मुलाकात इतनी गरम कर गई कि दावोस जहां बर्फ ही रहती है कमलनाथ ने अपने बंद गले के बटन खोल दिए। सियासी खबरें सरकार गिराने से लेकर गुना संसदीय सीट के संभावित समीकरणों तक चल पड़ी। अंदर मुलाकात हुई यह सबने देखा बात क्या हुई यह कोई नहीं जानता। और थोड़ी देर के लिए मान भी लें कि यह कड़वाहट मिटाने का प्रयास था जैसा कि श्री सिंधिया ने कहा पर (टाइमिंग) यही क्यों इस पर सब हैरान परेशान थे। समझा जाने लगा कि श्री सिंधिया अपने पिता स्व. माधवराव सिंधिया की तरह राजनीति करने के मूड में फिर नहीं है और वे प्रदेश की पिच पर भी बैटिंग करेंगे। जाहिर है यह प्रदेश में तीसरा पॉवर सेंटर होता। कारण श्यामला हिल्स में ही एक वर्तमान मुख्यमंत्री है तो एक अभूतपूर्व भी। सर्वश्री अजय सिंह, सुरेश पचौरी एवं अरुण यादव तो अभी खुद 'पॉलिटिकल चार्जर' की तलाश में है पर श्री सिंधिया तो 'सेल्फ स्टार्ट' हैं।

नि: संदेह इस पर नजर कांगे्रस मुख्यालय की भी होगी। वह लोकसभा चुनाव तक तो कम से कम प्रदेश को राजनीतिक अखाड़ा बनने देना नहीं चाहते होंगे, वहीं यह भी अनुभव कर रहे थे कि श्री सिंधिया के व्यक्तित्व का लाभ भी लेना चाहिए और यह उनके ओहदे को बढ़ाए बिना संभव नहीं था। संभवत: रणनीतिकारों ने इसी को ध्यान में रखकर एक तीर से दो निशाने साधे।

श्री सिंधिया का कद भी बढ़ाया और उनकी दिशा भी उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में कर दी जहां वह श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ लोकसभा की कमान संभालेंगे जो पूर्व का प्रभार घोषित तौर पर स्वीकृत कर सीधे राजनीति में आने का संकेत दे चुकी हैं।

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