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जनादेश का रसायन शास्त्र

अतुल तारे

Update: 2019-10-25 02:15 GMT

जनादेश की व्याख्या सामान्यत: अंक गणित के प्रकाश में ही की जाती है और करनी भी चाहिए कारण लोकतंत्र अंकों का खेल है, यह एक सच है। पर जनादेश सिर्फ अंक गणित नहीं है, यह रसायन शास्त्र के विद्यार्थी की तरह भी समझना चाहिए। दीपावली से ठीक पहले देश के दो महत्वपूर्ण राज्यों के जनादेश की व्या या सिर्फ अंक गणित से करेंगे तो यह तस्वीर अगले कुछ घंटों में और साफ होगी, साथ ही यह पंक्तियां जब आप पढ़ रहे होंगे तो सरकार किस प्रकार आकार ले रही है, यह भी सामने होगा। पर आंकड़ों के परे भी जो व्या या है, उसे ठहर कर समझना होगा। यह सही है कि देशवासी इस समय राष्ट्र के मूलभूत प्रश्नों को लेकर बेहद संवेदनशील हैं और वह यह दृढ़ता से चाहते हैं कि देश का नेतृत्व श्री नरेन्द्र मोदी ही करे। जून 2019 का जनादेश इसकी उद्घोषणा है। देशवासी यह ाी समझ रहे हैं कि देश में वर्तमान हालातों में राज्य में भी भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगी उसकी पहली वरीयता है। वह यह जानता है कि राज्यों में भी अगर भाजपा को अवसर इस समय नहीं दिया गया तो संभव है, देश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को अवसर में बदलने की जो जिजीविशा भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व में है, वह प्रभावित होगी। लेकिन वह यह भी संदेश देने में परहेज नहीं करेगा कि राज्य के चुनाव राज्य की कसौटी पर ही लड़े जाएंगे, हां केन्द्र का बोनस इसमें शामिल किया जा सकता है। महाराष्ट्र और खासकर हरियाणा के चुनाव नतीजे भाजपा के लिए स त अंदाज में सबक भी है। बेशक मनोहरलाल खट्टर की सरकार पारदर्शिता के मुद्दे पर जनविश्वास जीतने में सफल रही थी। लेकिन हरियाणा भले ही छोटा प्रदेश हो, पर राजनीतिक लिहाज से बेहद संवेदनशील प्रदेश है। भाजपा ने 2014 में प्रदेश के पर परागत प्रभावी जातिगत समीकरण को एक तरफ कर एक साहसिक प्रयोग किया, यह अच्छी बात है। पर इस समाज के आमजन का अविश्वास जीतने के लिए जो जमीनी प्रयास होने चाहिए वह करना नेतृत्व की वरीयता में नहीं रहा। दशकों से चल रही एक व्यवस्था जिसने समाज के चंद परिवारों को दबंग बनाया, उसे तोडऩा एक अच्छी पहल है, पर समाज में समरस होना एक बड़ी चुनौती है। परिणाम यह हुआ कि इस कमजोर नस को विपक्ष ने पकड़ा और विधर्मी शक्तियों का मेल भी भाजपा के लिए परेशानी का कारण बना। यही नहीं श्री खट्टर को छोड़ दें तो मात्र एक मंत्री जीतना यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं अहंकार था, कार्यकर्ताओं से संवाद टूटा था, जनता से दूरी थी। यह विपक्ष की जीत नहीं है भले ही अंक उनके पक्ष में हों हां पर यह भाजपा के लिए सबक अवश्य है। विपक्ष के बिखराव के बावजूद यह परिणाम न केवल हरियाणा बल्कि महाराष्ट्र में भी यह बतलाता है कि मतदाता राज्य सरकारों से भी अपेक्षा करता है कि वह सुशासन के नारे को जमीन पर ाी उतार कर दिखाएं। यद्यपि भाजपा यह तर्क दे सकती है कि हरियाणा में 2014 में वह बहुमत से मात्र दो ही सीट ज्यादा थी और उस बार वोट प्रतिशत बढ़ा है। साथ ही महाराष्ट्र में पांच साल में एक ही मुख्यमंत्री देकर प्रदेश को भाजपा ने पहली बार स्थायित्व दिया है। पर यह तर्क बचाव है। यह भी एक तर्क है। भाजपा से आज बेहतर और सिर्फ बेहतर की अपेक्षा है।

जनादेश ने कांग्रेस को जो लगभग मरणासन्न थी, एक संजीवनी दी है और एक संकेत भी दिया है भविष्य का कि कांग्रेस केन्द्र में कमजोर रहेगी और प्रदेश में नए क्षत्रप खड़े होंगे। 2020 में भाजपा को दिल्ली में जंग लडऩी है जो बिलकुल आसान नहीं है, उसके बाद एक बड़ा राज्य प. बंगाल है, जहां उसका सामना मामता बनर्जी से है। भाजपा को चाहिए कि वह वर्तमान जनादेश के प्रकाश में इन राज्यों में अपनी जमीनी ताकत का अंदाजा ले। बेशक यहां सत्ता विरोधी लहर नहीं है। पर दिल्ली जो लंबे समय तक भाजपा की एक बड़ी शक्ति थी, केन्द्र में सरकार आने के बाद यह शक्ति बीते कल तक 11 अशोका रोड और दीनदयाल मार्ग स्थित केन्द्रीय कार्यालय की गणेश परिक्रमा में ही खर्च हो रही है। पश्चिम बंगाल में संगठन खड़ा हुआ है, पर यहां भी सामना एक जमीनी विपक्ष से है जो साम, दाम, दंड भेद में कुशल है। झारखण्ड भी भाजपा के लिए वॉक ओवर नहीं है। यह सच है कि केन्द्र के ऐतिहासिक निर्णय न हों तो भाजपा के लिए चुनौती और दुष्कर होगी, पर यह केन्द्रीय एवं राज्य के नेतृत्व को समझना होगा कि हर बार मोदी का नाम ही पर्याप्त नहीं है और वह पार्टी हित में श्रेयस्कर भी नहीं। श्री नरेन्द्र मोदी के रूप में देश को एक यशस्वी नेतृत्व मिला है, पर उनका अति उपयोग उन पर अति निर्भरता, पार्टी के लिए देश के लिए अच्छी नहीं। साथ ही आर्थिक मोर्चे पर भी केन्द्र सरकार को सुलगते प्रश्नों का समुचित उत्तर समय पर देना होगा।

जनादेश वाकई ऐसी विषम परिस्थिति में अभिनंदनीय है। जनता भाजपा को चाहती है, यह वह कर रही है पर उसके कान भी उमेठना चाहती है ताकि बड़ी लड़ाई के लिए वह सतर्क रहे, सजग रहे साथ ही विपक्ष इस जनादेश से मजबूत हुआ है, यह संदेश तो है ही पर वह अंकों के साथ-साथ मानसिक रूप से भी परिपक्व हो, यह शुभकामना। 

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