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है तो युद्ध, आप किधर खड़े हैं ?

अतुल तारे

Update: 2019-05-12 03:00 GMT

पानीपत के तीसरे युद्ध का ऐतिहासिक संदेश हम सब जानते हैं। एक जरा सी चूक देश को कितनी महंगी पड़ती है, यह देश ने देखा भी है, भोगा भी है। देश के भाग्य का निर्णय होने जा रहा था, पर सारा देश उसमें शामिल नहीं था। रणक्षेत्र से बाहर रह कर वह परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा था। आज सम्पूर्ण देश पानीपत है। सच यह है, मैदान में न कांग्रेस है, न भारतीय जनता पार्टी। ये सिर्फ सामने एक प्रतीक की तरह हैं, बैनर हैं। लोकतंत्र में सरकारें आती हैं, जाती हैं। यह देश नरेन्द्र मोदी भी नहीं है। देश सर्वोपरि है। पर आज जो परिदृश्य उपस्थित किया जा रहा है, मोदी हटाओ यह एक खतरनाक संकेत है, षड्यंत्र है। इसी षड्यंत्र का उत्तर भी फिर इस रूप में लाया जा रहा है कि मोदी को नहीं हटने देंगे। स्वाधीनता के पश्चात से आज तक जितने भी निर्वाचन हुए उसमें व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण कभी नहीं रहा। पर आज अगर है तो वह व्यक्ति पूजा के कारण नहीं लेकिन यह जो विरोध के स्वर हैं वह मोदी की अपरिहार्यता की कहानी लिख रहे हैं। थोड़ा पीछे चलते हैं। 1967 में पहली बार सिद्ध हुआ कि कांग्रेस अपराजेय नहीं है। 77 ने सिद्ध किया कि तानाशाही इस देश की मिट्टी में नहीं है। सामूहिक विमर्श हमारा संस्कार है, लोकतंत्र हमारे चिंतन में है। 1989 से 2000 तक का काल देश में गठबंधन का काल था और देश ने एक निर्बल सरकारों के परिणाम भुगते। 2000 से 2004 तक देश ने पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार को देखा, यह प्रयोग आशाएं जगाने में सफल तो रहा, पर अति आत्मविश्वास के चलते दीर्घजीवी नहीं रहा। लेकिन इस प्रयोग के असफल होते ही 2004 से 2014 तक का काल खंड एक महत्वपूर्ण काल है। मुस्लिम एवं ईसाई तुष्टिकरण देश ने आजादी के बाद से लगातार देखा है पर देश का बहुसंख्यक समाज षड्यंत्र का शिकार कभी नहीं हुआ। देश की मुख्यधारा की पार्टी कांग्रेस ने यहां से अपना चोला बदला और शायद आत्मा भी। इस्लामिक एवं ईसाई कट्टरपंथ की ताकतों ने देश को नियंत्रित करने का दुष्चक्र शुरु किया जो हिन्दू आतंकवाद के भ्रमजाल के रूप में सामने आया। परिणाम 2014 में राष्ट्रीय भाव का जागरण हुुआ और श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने। नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण के तुरंत बाद संडे गार्जियन अपनी संपादकीय में लिखता है कि 1947 को देश आजाद हुआ पर सच में अंग्रेज देश से आज विदा हुए। संडे गार्जियन कोई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख पत्र नहीं है, यह लिखने की आवश्यकता नहीं। तात्पर्य भारत में भारत की खोज का एक आंदोलन देश में प्रारंभ हो चुका है। कहने का आशय यह कदापि नहीं कि जो मोदी या भाजपा के खिलाफ है वह देशद्रोही हैं। पर यह भी एक कठोर सच्चाई है कि आज यह समझना ही होगा कि मोदी का विरोध आखिर है क्यों और विरोध करने वाले चेहरों के पीछे चेहरे कौन-कौन से हैं? यह चुनाव सत्ता परिवर्तन का चुनाव नहीं है। यह चुनाव ताकतों का चुनाव है और यह जैसे-जैसे चुनावों के चरण आगे बढ़ रहे हैं, सामने आ भी रहा है। यह पहली बार है कि तमाम अंतरविरोध के बावजूद ऐसी-ऐसी ताकतें एक झंडे के तले, एक गठबंधन के तले आ रही हैं, जिनका एक मात्र उद्देश्य मोदी का किसी भी सीमा तक जाकर विरोध है। मर्यादाओं की सीमा रेखा एक तरफ बेशर्मी से लांघी जा रही है और ठीक उसी समय मर्यादाओं के पाठ भी पढ़ाए जा रहे हैं। देश में चल रहे क्रमबद्ध चरण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण चरण आज प्रदेश में भी है। देश का लोकतंत्र हर कठिन परीक्षा में और परिपक्व होकर निकला है। युद्ध का बिगुल ही नहीं बजा है, युद्ध जारी है। हमारा निर्णय यह तय करने वाला है कि राष्ट्र निर्माण के इस यज्ञ में पहले, हम अपनी आहुति वोट के रूप में देने का संकल्प लें। यह समय वाकई न्याय का है और यह तय करने का है कि न्याय युद्ध में हम अपना पक्ष तय करें। तटस्थ रहना सर्वाधिक अक्षम्य अपराध है। अत: घर से निकलिए पड़ौसी को भी जगाइए और मतदान कीजिए यह आपका अधिकार भी है और कर्तव्य भी। शुभकामनाएं।

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