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असफलता छिपाने का कांग्रेसी अभियान

Update: 2018-11-21 11:46 GMT

राहुल गांधी को लग रहा है कि राफेल डील पर हमले से कांग्रेस की छवि में निखार आ जाएगा। उनका यह अंदाज अब फ्रांस में भी चर्चा का विषय बन गया है। ये बात अलग है कि वहाँ के सभी संबंधित पक्ष राहुल के बयानों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। वहां राफेल कम्पनी ने चुनौती दी है, इधर खरीद प्रक्रिया सार्वजनिक होने से कांग्रेस की ही मुश्किल बढ़ने का अनुमान है। ऐसा इसलिए वर्ष 2013 में यूपीए सरकार ने जो प्रक्रिया तय की थी, उसी के अनुरूप ही राफेल डील को अंतिम रूप दिया गया है। एचएएल और दौसा कम्पनी के बीच तीन वर्ष तक कोई निर्णय नहीं हो सका। समझौता दोनों सरकारों के स्तर पर हुआ। बाकायदा टीम बनाई गई थी। भारतीय टीम की कमान उप वायु सेना प्रमुख के पास थी। कांग्रेस का यह आरोप गलत है कि वायु सेना की सलाह नहीं ली गई।

राफेल डील सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उसने कहा कि सरकार को विमान की कीमत बताने की आवश्यकता नहीं है। बिडंबना देखिए कि कांग्रेस इसे सार्वजनिक करने के पीछे पड़ी है। ऐसे में उसकी नीयत पर प्रश्न उठना स्वभाविक है। कांग्रेस के इस पैंतरे की गूंज फ्रांस तक पहुंच गई है। फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति ने राहुल गांधी से मुलाकात संबन्धी दावे को असत्य बताया। पूर्व राष्ट्रपति ओलांदे का कई वर्ष पहले का एक बयान कांग्रेस ढूंढ लाई। इसकी प्रमाणिकता संदिग्ध थी। ओलांदे ने इसका खंडन किया। वायुसेना प्रमुख, वायुसेना उपप्रमुख ने तथ्यों के आधार पर बताया कि इस सौदे में गड़बड़ी नहीं हुई। सेना को तत्काल इसकी आवश्यकता थी। राहुल गांधी पर वायु सेना के इन शीर्ष अधिकारियों के तर्कों का भी असर नहीं हुआ।

सरकार ने यही बात बहुत पहले कही थी। उसका कहना था कि विमान में अनेक अतिरिक्त रक्षा उपकरण लगे थे। इन्हें वायुसेना की जरूरत के अनुसार तैयार कराया गया था। मूल्य सार्वजनिक करने से शत्रु देशों के विशेषज्ञ उन उपकरणों का अनुमान लगा सकते है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे उचित माना। प्रत्येक संवैधानिक, राजनीतिक या निजी संस्थाओं के लिए देश ही सर्वोच्च होता है, होना भी चाहिए। जिस बात पर सुप्रीम कोर्ट ने अमल किया, कांग्रेस पिछले कुछ समय से उसी की अवहेलना कर रही है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी यूपीए सरकार में चर्चित हुए दाम को लेकर हंगामा कर रहे हैं। यदि इस दाम पर वह एक भी विमान खरीद लेते तो यह माना जाता कि ये दाम सही थे। दस वर्ष में कांग्रेस सरकार ऐसा करने में असफल रही। इसलिए यह प्रमाणित हुआ कि यूपीए सरकार राफेल खरीदने के प्रति गम्भीर नहीं थी।

फ्रांसीसी कंपनी दासौ के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने राहुल गांधी के दावे को असत्य और निराधार बताया है। भारत को इस सौदे में विमान पहले के मुकाबले नौ फीसद सस्ता मिल रहा है। नए सौदे में छतीस विमानों की कीमत पुराने सौदे के अठारह फ्लाईअवे विमानों जितनी ही है। सीधे तौर पर सौदे की राशि दोगुनी हो जानी चाहिए थी, लेकिन सरकार से सरकार के बीच हुए करार के चलते कीमत में नौ फीसद की कटौती की है।

जब एक सौ छब्बीस राफेल विमान की बात चल रही थी, तब एचएएल से करार की ही बात थी। अगर वह सौदा आगे बढ़ता तो एचएएल से करार होता। वह सौदा आगे नहीं बढ़ पाने पर जब छतीस विमान की डील पर चर्चा हुई, तब रिलायंस के साथ बात बढ़ी। आखिरी दिनों में एचएएल ने खुद कहा था कि वह इस ऑफसेट में शामिल होने का इच्छुक नहीं है। इससे रिलायंस के साथ करार का रास्ता पूरी तरह से साफ हो गया। इस दौरान अन्य कंपनियों से करार पर भी विचार हुआ था, जिसमें टाटा ग्रुप भी शामिल है। लेकिन बाद में बात रिलायंस के साथ अंतिम नतीजे तक पहुंची।

दासौ के सीईओ ने बताया कि चालीस प्रतिशत ऑफसेट अरेंजमेंट्स के लिए तीस कंपनियों से करार हुआ है। इसमें से दस प्रतिशत हिस्से पर रिलायंस डिफेंस से समझौता हुआ। इसके लिए रिलायंस के साथ एक ज्वाइंट वेंचर बनाया गया है, जिसमें दासौ की 49 प्रतिशत और रिलायंस की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इस ज्वाइंट वेंचर में कुल 800 करोड़ रुपये का निवेश होगा। यह राशि दोनों कंपनियां आधा-आधा लगाएंगी। अभी दासौ ने जो पैसा लगाया है, वह इसी संयुक्त उद्यम में लगा है। चर्चा तो यह भी है कि विरोध की इस कवायद के पीछे दासौ की प्रतिद्वंदी कम्पनी का हाथ है। भारत को मिलने वाले राफेल विमान ने फ्रांस में पहली उड़ान भरी है। फ्रांस के इस्त्रे-ले-ट्यूब एयरबेस पर भारतीय वायुसेना को मिलने वाले राफेल लड़ाकू विमान के बेड़े में से पहले विमान का परीक्षण किया गया है। विमान को रनवे पर उतारा गया और उसके विभिन्न परीक्षण किए गए।

कांग्रेस इस मुद्दे पर खुद फंसती जा रही है। राहुल गांधी को देश से लेकर विदेश तक फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। वे अब जबरदस्ती अपने तर्क चलाना चाहते है। 

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