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लोहिया अस्पताल का कारनामा : 70 मिनट एंबुलेंस में तड़पता रहा मरीज, गिड़गिड़ाती रही मां, डॉक्टर बोले- केजीएमयू लेकर जाएं

एक मां अपने बेटे की जिंदगी बचाने के लिए राम लोहिया अस्पताल के डाक्टरों व स्टाफ के आगे गिड़गिड़ाती रही, लेकिन डाक्टरों ने अयोध्या से आए इस मरीज को भर्ती करना तो दूर स्ट्रेचर तक मुहैया नहीं कराई। यह हाल राम मनोहर लोहिया अस्पताल का है।

Update: 2021-05-07 15:22 GMT

लखनऊ: कहने को यूपी के अस्पतालों में किसी चीज की कमी नहीं है। आक्सीजन भी है और पर्याप्त बेड भी, लेकिन मौके पर स्थितियां कुछ और ही हैं। अगर आपको भी हकीकत जाननी हो तो राजधानी के किसी भी सरकारी अस्पताल में तीस मिनट तक इमरजेंसी गेट के बाहर खड़े होकर व्यवस्थाओं को देख सकते हैं।

एक मां अपने बेटे की जिंदगी बचाने के लिए राम लोहिया अस्पताल के डाक्टरों व स्टाफ के आगे गिड़गिड़ाती रही, लेकिन डाक्टरों ने अयोध्या से आए इस मरीज को भर्ती करना तो दूर स्ट्रेचर तक मुहैया नहीं कराई। यह हाल राम मनोहर लोहिया अस्पताल का है।

दरअसल, गुरुवार सुबह 11:30 बजे अयोध्या के थाना अहिरौली  निवासी सोनू सड़क दुर्घटना में घायल हो गया था, उसकी मां रामरानी व भाई पिंटू एंबुलेंस से लेकर लखनऊ के राम लोहिया अस्पताल पहुंचे थे। पहले पर्चा बनाया गया और फिर शुरू हुई स्ट्रेचर की खोज, लेकिन 35 मिनट तक नहीं मिली।

भाई ने इमरजेंसी में मौजूद स्टाफ व डाक्टरों से कहा कि वह अपने भाई को गोद में उठाकर इमरजेंसी बेड तक ला सकता है, लेकिन इस पर स्टाफ नहीं माना। ऐसे करते-करते सत्तर मिनट बीत गए और काबिल डाक्टरों ने केजीएमयू रेफर कर दिया। वहां भी पहुंचकर पीड़ित घंटों इलाज के लिए डाक्टरों के आगे पीछे घूमता रहा, फिर कही जाकर भर्ती हो सका। 

इमरजेंसी केस को डाक्टर व स्टाफ संवेदनशील नहीं : लोहिया अस्पताल में इमरजेंसी केस को लेकर बहुत ज्यादा डाक्टर व स्टाफ संवेदनशील नहीं है। अभी अयोध्या से गई एंबुलेंस को गए पांच मिनट हुआ था कि रायबरेली रोड स्थित बरौली गांव निवासी योगेंद्र नाथ तिवारी भी गंभीर हालत में लोहिया की इमरजेंसी पहुंच गए। इनके साथ स्थानीय लोग व परिजन भी थे। इनके साथ भी डाक्टरों का रवैया उसी तरह रहा। स्कोर्पियों में योगेंद्र नाथ तिवारी गंभीर हालत में लेटे रहे। जब भीड़ एकत्रित देखी तो एक डाक्टर व स्टाफ कार तक आया और सिर पर खून के धब्बे देख, केजीएमयू रेफर करने लगे। लेकिन तभी किसी का फोन इमरजेंसी में आता है और मरीज की गाड़ी को इमरजेंसी गेट पर लगाकर उतारने का प्रयास किया जाता है।

इस बार भी स्ट्रेचर नहीं मिली तो परिजन गोद में उठाकर तिवारी को इमरजेंसी में भर्ती कराते हैं। कुल मिलाकर सोनू को भी इमरजेंसी में भर्ती किया जा सकता था, क्योंकि दोनों दुर्घटना से जुड़े मामले थे, लेकिन डाक्टरों ने यहां बेड होते हुए भी सोनू को केजीएमयू रिफर कर दिया।

सूत्रों की माने तो वार्ड के भीतर स्ट्रेचर भी थे और स्ट्रेचर देकर मरीज का प्रारंभिक इलाज उस पर भी किया जा सकता था, लेकिन रेफर करने की आदत से डाक्टर मजबूर हैं।

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