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भाजपा को सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं: अखिलेश यादव

उन्होंने कहा कि राजधानी और महानगरों में उसका सारा ध्यान है फिर भी हालत बेकाबू हैं। गांवों के लाखों ग्रामीणों को उनके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया है। चार वर्ष में ही प्रदेश का हाल बदहाल करने वाली भाजपा सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रह गया है।

Update: 2021-05-10 18:24 GMT

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार व मुख्यमंत्री की अदूरदर्शिता और समय पर निर्णय लेने की अक्षमता के चलते यूपी में हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है।

उन्होंने कहा कि राजधानी और महानगरों में उसका सारा ध्यान है फिर भी हालत बेकाबू हैं। गांवों के लाखों ग्रामीणों को उनके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया है। चार वर्ष में ही प्रदेश का हाल बदहाल करने वाली भाजपा सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रह गया है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोमवार को जारी बयान में कहा कि प्रदेश में एक लाख गांव हैं और वहां 70 प्रतिशत आबादी रहती है। आज फिर बड़ी संख्या में लोग गांवों में लौट रहे हैं। समस्या यह है कि गांव में भीड़ तो बढ़ रही है, लेकिन न तो वहां जांच और न इलाज की व्यवस्था है और न ही रोटी-रोजगार की व्यवस्था है। कोरोना संक्रमण के चलते कृषि कार्य भी बंद हैं।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि मुख्यमंत्री की बयानबाजी अपनी जगह पर है किंतु वास्तविकता यह है कि गेहूं खरीद भी बंद है। भाजपा सरकार को सिर्फ चुनाव और सत्ता के खेल खेलना ही आता है। प्रबंधन तथा प्रशासन उसके बस का नहीं है। मुख्यमंत्री को अपनी अकर्मण्यता को स्वीकारते हुए हट जाना चाहिए। इससे रोज संक्रमण में जिंदगी हारते लोगों को राहत तो मिलती। चार वर्ष में ही प्रदेश का हाल बदहाल करने वाली भाजपा सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रह गया है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कोविड-19 संक्रमण के मामलों पर चिंता जताते हुए योगी सरकार पर बड़ा आरोप लगाया है। उन्‍होंने कहा कि कोरोना संक्रमण को लेकर भाजपा सरकार लगातार झूठा आंकड़ा दे रही है।

उन्होंने ट्वीट कर कहा कि 'कोरोना को लेकर भाजपा सरकार द्वारा लगातार 'झूठा आंकड़ा' दिया जा रहा है। क्या भाजपा ये समझती है कि जनता को अपनी आंख से मौतों का सच नहीं दिख रहा। भाजपाई झूठ से त्रस्त समाज को 'आंकड़ा' की जगह नया शब्द 'आंखड़ा' प्रयोग में लाना चाहिए क्योंकि आंख के देखे से सच्चा कोई आंकड़ा नहीं होता।'

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