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तूणीर : चलो मन आम चुनाव की ओर...

- नवल गर्ग, पूर्व जिला न्यायाधीश एवं वरिष्ठ स्तंभकार

Update: 2019-01-19 15:21 GMT

तब तो बाल बबुआ जी को बांकेबिहारी जी से सहज औसत बुद्धि और विवेक का वरदान प्राप्त करने के लिए वृंदावन की ओर कूच करना चाहिए यह गाते हुए -- "" चलो मन वृंदावन की ओर.. .""। शायद बांकेबिहारी कुछ सुनवाई कर लें। आपका क्या ख्याल है ?

इतने बड़े बड़े, सुनहरे सपने हैं किसके भरोसे, यह भी समझ में नहीं आ रहा। चाहे उत्तर प्रदेश हो या बिहार - यहाँ तो उन्हें गठबंधनों में एंट्री भी नहीं दे रहा कोई। फिर यह भी देखने लायक तमाशा है कि उत्तरप्रदेश में महामाई, बिहार में तेज भाई, तेलंगाना में आय डू और बंगाल में दिदिया जू - खुद राजसिंहासन पर बैठने की उतावली मचाए हैं, एकाध कहीं और भी दबे छिपे बैठे हों तो खबर नहीं। ऐसे में बबुआ जी इस जलेबी दौड़ प्रतियोगिता में सत्ता रस में सराबोर जलेबी की एक लटक भी लपक पाएंगे - यह असंभव - सा लगता है।

भाई जी! आपको यह उलझा हुआ गणित समझ में आ गया हो तो आपको मुबारक़वाद। सच पूछिए, अपनी छोटी सी, मोटी सी बुद्धि में तो यह गोरखधंधा समझ में आने से रहा, आएगा भी नहीं।

यह भी मजेदार बात है कि दस साल तक देश के एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री को रिमोट कंट्रोल से चलाने वाली, देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अब आमजन को बरगला कर सत्तानशीन होने का सपना देख रही है। यह माना कि सपना देखने का अधिकार सबको है । खूब देखो , दिन रात स्वप्न देखो - लेकिन एक पुरानी राजनीतिक पार्टी के एक्सीडेंटल प्रेसीडेन्ट बाल बबुआ जी! कम से कम यह भी तो देख लो कि तुम्हारे असमंजस भरे सत्ता लोलुप राग का इरा सिरा तो किसी को भी समझ में आ नहीं रहा। ढ़ुलमुल ढ़ुलमुल बातों से हम क्या समझें। चाहे जी एस टी हो या अबलजनों को दस प्रतिशत आरक्षण -- संसद में वोट बैंक के प्रताप से नानुकुर करते हुए भी बेबस समर्थन और बाहर ताल ठोक मैदान में नमो जी को ललकारना। सबरीमाला का मामला हो या तीन तलाक निषेध बिल - सब पर ढुलमुल ढ़ुलमुल। कहीं कोई स्पष्टता नहीं कोई स्थिरता नहीं है।

यह भी एक मजेदार बात है कि एक ओर बाल बबुआ जी, बिनकी मैया जी और कुछ सिपहसालार एक अखबार से जुड़ी संपत्ति के वारे न्यारे कर लेने के मामले में जमानत पर छूटे हुए हैं, बौखलाए हुए हैं -- दूसरी तरफ तरह तरह के, बेसिर पैर के झूठ फैला कर बेदाग, ईमानदार, उज्जवल छवि वाले, विश्वस्तरीय नेता नमो को अपना प्रतिद्वंद्वी मानकर रात दिन कोसने में लगे हैं। उनका तो यह भी मानना है कि इस वर्ष तो उनकी इन बच्चों जैसी हरकतों के झांसे में आकर आमजन या प्रबुद्ध समाज उन्हें हाथों- हाथ उठाकर अपने कंधे पर चढ़ाकर देश के विकास रथ की बागडोर उनके हाथों में सौंप ही देगा।

राज्यों में एक दो जगह जनता ने बहकावे में आकर थोड़ी कृपा करके भीख कुछ ज्यादा दे दी तो कहीं खुद किसी की वैसाखी बन गए और कहीं कुछ वैसाखियों के सहारे सिंहासन पर चढ़ गए। कहते तो हैं कि हमारा वैसाखियों से फेवीकोल का जोड़ है जिसकी एक्सपायरी पांच साल बाद की है। पर ऐसा है नहीं। जहाँ वेे जिनकी वैसाखी बनें हैं वहां इनके ही कुछ पेच ढ़ीले हो रहे हैं। इसका भय भी सता रहा है इन्हें और जहाँ कई वैसाखी इन्हें संभालने में लगी हैं वहां जब तब वे वैसाखी धमकाने में लगी हैं कि हमें सिर पे बिठाओ नहीं तो हम जे चले और वो चले। इस पर तुर्रा यह है कि बबुआ जी ऐसे ललकार रहे हैं जैसे महाभारत के रण में उनकी जीत होने ही वाली हो। कुल जमा यह योग्यता और अनुभव है इन्हें सत्तासीन होने का। इस अधकचरी योग्यता को ही वे सत्ता के गलियारों में डिक्टिंक्शन का पर्याय मानकर खुश हो रहे हैं। बलिहारी है इन बबुअन की।

यही कारण है कि वे नमो जी की हर मामले में नकल करने में लगे हैं। यू ए ई का दौरा और वहाँ भीड़ जुटाने की जद्दोजहद, अब कुंभ मेले में जाने की बचैनी, फिर मंदिर , मस्जिद, गुरूद्वारों के चक्कर लगाने की अकुलाहट, चाहे जब राफेल का राग अलापने लगना --- यही जाहिर करता है कि भले ही अभी तक बबुआ जी को अपने अंग वस्त्र संभालना भी ठीक से नहीं आ पाया हो पर देश संभालने के लिए वह बुरी तरह बेचैन हैं।

हमारे बाल बबुआ की कल्पना में अब चौबीसों घंटे लोकसभा के आने वाले चुनाव, उसमें कांग्रेस की अच्छी स्थिति के सब्जबाग और स्वयं के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के सपने इस कदर हावी हो गए हैं कि बेचारे रात दिन नमो मंत्र का जाप करते रहते हैं। उसी का ध्यान , भजन , स्वाध्याय करते रहते हैं।

- नवल गर्ग, पूर्व जिला न्यायाधीश एवं वरिष्ठ स्तंभकार


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