भोपाल/विशेष संवाददाता। अबकी बार, किसकी सरकार, मध्यप्रदेश के राजनीतिक गलियारों से लेकर प्रशासन तंत्र के वातानुकूलित कमरों तक और सत्ता के सिंहासन पर बैठे दिग्गजों से लेकर जिंदाबाद-मुर्दाबाद करने वाली भीड़ तक यह सवाल गूंज रहा है। ऐसा शायद हर चुनाव में होता है लेकिन इस बार ऐसा होने का कारण अलहदा हैं। सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ चुनावी रण के आरम्भ में जो नाराजगी दिखाई दे रही थी, उसे दूर करने में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की कामयाबी भाजपा खेमे में उत्साह पैदा करने वाली है। इधर कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस की पकड़ लाख कोशिशों के बाद भी मजबूत होती दिखाई नही पड़ रही। समर्थन कम विरोध के स्वर अधिक सुनाई दे रहे हैं। यही कारण है कि सब कुछ साफ दिखने के बाद भी शोर में संभावित फैसले की आवाज दब रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरी तन्मयता के साथ चुनावी यात्राओं और कार्यक्रमों में अपने आपको झोंके हुए हैं। उनके कार्यक्रमों में भीड़ काफी हो रही है। भीड़ को देखकर मुख्यमंत्री और उनके साथ यात्रा में चल रही उनकी अर्धांगिनी और बाकी लोग बेहद खुश भी हो रहे हैं। भीड़ तंत्र का वोट बैंक हर बार भाजपा के लिए मददगार साबित होता है।
सत्ता में वापसी को बेचैन है कांग्रेस
पंद्रह साल से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस में सत्ता में वापसी की इतनी अकुलाहट है कि वह राजनीति की आदर्श आचार संहिता ही भूल गई है। शिवराज और भाजपा के दंभ को मतदाताओं तक पहुंचाने की बजाय कांग्रेस उनके तथाकथितभ्रष्टाचार को मतदाताओं के सामने परोस रही है। इस तरह के आरोपों से अब जनता को उबकाई आने लगी है। इन्हीं आरोपों के साथ मतदाता 2008 और 2013 में भाजपा को सत्ता में वापस ला चुका है। लेकिन यह बात कांग्रेस के तमामदिग्गजों को पल्ले नहीं पड़ रही है। जनता की नाराजगी को लेकर लड़ाई लडऩे के बजाय कांग्रेस अपनी नाराजगी का असर जनता के सिर पर लादकर उससे वोट की उम्मीद कर रही है। दूसरी एक बात समझ से परे है कि कांग्रेस में चुनावकी कमान संभालने वाले कमलनाथ और सिंधिया समय कम होने के बाद भी दिल्ली का मोह क्यों नहीं छोड़ पाए। अभी भी मध्यप्रदेश की गलियों और कूचों से ज्यादा समय वे दिल्ली दरबार को दे रहे हैं।
कांग्रेस के बड़े नेता पता नहीं क्यों यह समझने का प्रयास ही नहीं कर रहे हैं कि बीते तेरह साल में शिवराज सिंह ने सब कुछ खराब किया हो लेकिन एक काम अच्छा किया कि वोटरों को अपने अनुसार सोचने वाला बना दिया। तमाम मुद्दोंके चलते वोटरों की इस सोच में इस साल थोड़ा बदलाव दिखाई पड़ रहा है ,लेकिन कांग्रेस या तो उस बदलाव को भांप नहीं पा रही है या फिर वह यह मानकर बैठी है कि बिल्ली के भाग्य से छींका इस बार फूटेगा। अगर कांग्रेस ने अभी भीअपनी सोच नहीं बदली, अपनी कार्यशैली और अंदाज नहीं बदला तो इस मिथक के साथ ही उसे आगे की सियासत करनी पड़ेगी कि जिस भी राज्य में कांग्रेस लगातार दो चुनाव हार जाती है, वहां फिर सत्ता में कभी वापस नहीं आती है।बदलाव के मूड में मतदाता है और कांग्रेस को उसका साथ देना होगा। कांग्रेस का साथ मतदाता नहीं देगा क्योंकि मतदाता अब ज्यादा समझदार है। अगर कांग्रेस बहुत जल्द अपनी रणनीति नहीं बदलती है तो चौथी बार भाजपा को सत्तामें आने से कोई नहीं रोक पाएगा।
शिवराज का जादू बरकरार
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनना तय मानने संबंधी जन आकलन की बड़ी वजह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का चेहरा है। प्रेक्षकों के तमाम तर्कों के बीच जन अभिमत है कि सत्तारूढ़ दल और विरोधी दलों में जितने भी चेहरे चुनाव के मैदान में हैं, उनमें शिवराजसबसे ज्यादा जाना-पहचाना और लोगों के बीच निरंतर पहुंचते रहने वाला चेहरा है। पिछले पन्द्रह सालों में 13 सालों के लगभग के समय से शिवराज सीएम हैं। उन्होंने जो योजनाएं राज्य में दी हैं, उनका असर अभी लोगों में मुकम्मल तौर पर है। लोग मान रहे हैं सरकार नेकाम किए हैं। मंत्री और विधायकों के प्रति नाराजगी लोगों में है। इस बात से मुख्यमंत्री और पार्टी भिज्ञ है। बड़ी तादाद में टिकटों में बदलाव इसका प्रमाण है।
सबसे बड़ा तुरुप का पत्ता
प्रदेश में सबसे बड़ा तुरूप का पत्ता किसान है। कुछ हिस्से हैं, जहां किसानों ने सरकार के प्रति नाराजगी दिखाई है। मगर अनेक हिस्से ऐसे भी हैं, जहां किसान सरकार के कामकाज के प्रति संतुष्ट नजर आया है। कई हिस्से ऐसे भी हैं, जहां किसान अभी अपने पत्ते नहींखोल रहा है। बावूजद इसके 60 प्रतिशत किसान तबका एक बार फिर कमल के संग जाने को तैयार नजर आ रहा है। यदि 60 प्रतिशत किसानों ने कमल का साथ दिया तो भाजपा की सीटों का आंकड़ा 150 पार पहुंचना तय हो जाएगा। यदि 10-12 प्रतिशत वोट किसान काकम होता है तो भी भाजपा 130 सीटों के करीब आसानी से पहुंच जाएगी, यह जनता के बीच तय नजर आ रहा है।
मुख्यमंत्री पद के पांच दावेदार
कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के पांच दावेदार हैं। पहले दावेदार कमलनाथ हैं। दूसरे दावेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया। दोनों केन्द्र की राजनीति के महारथी हैं। सरकार बनाने योग्य आंकड़ा मिल जाने की स्थिति में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम के बाद अजयसिंह भी मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब पाले बैठे हुए हैं। उधर, आदिवासी वर्ग होने की वजह से दिग्विजय सिंह के अत्याधिक कृपापात्रों में से एक कांतिलाल भूरिया भी इस पद के एक दावेदार हैं। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव के मन में भी मुख्यमंत्री बनने कीभरपूर अभिलाषा है। वे और उनके समर्थक मानते हैं कि कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर मिला और मुख्यमंत्री पद के लिए मारामारी हुई तो वे समझौता वाले उम्मीदवार के तौर पर मुख्यमंत्री बनने के लिए बाजी मारने की हैसियत रखते हैं। केन्द्र में अपने संबंधों की वजह से सुरेश पचौरी को भी मुख्यमंत्री पद का एक दावेदार प्रेक्षक मानते हैं। मुख्यमंत्री पद की कुर्सी के लिए मारामारी वाले हालात तब ही बन पाएंगे, जब कांग्रेस 116 सीटें हासिल करेगी।