कुपोषण पर MP हाई कोर्ट सख्त: शासन को नोटिस, जिला कलेक्टर्स को रिपोर्ट स्टेटस रिपोर्ट बनाने के लिए चार हफ्ते का समय

Update: 2025-07-26 18:45 GMT

जबलपुर। पोषण ट्रैकर 2.0 और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार मध्यप्रदेश कुपोषण के मामले में देश में दूसरे स्थान पर है। वर्ष 2025 में ही इसमें तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने गंभीर रुख अपनाया है।

कोर्ट ने प्रदेश के सभी जिला कलेक्टरों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने जिलों की कुपोषण संबंधी स्टेटस रिपोर्ट चार सप्ताह के भीतर न्यायालय में प्रस्तुत करें। साथ ही राज्य शासन, मुख्य सचिव सहित संबंधित विभागों को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया गया है।

यह आदेश जबलपुर निवासी दिपांकर सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया गया। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ताओं अमित सिंह सेंगर और अतुल जैन ने कोर्ट को अवगत कराया कि प्रदेश में कुपोषण की स्थिति भयावह है।

66 लाख बच्चों में 10 लाख कुपोषित, 1.36 लाख गंभीर रूप से ग्रस्त

प्रदेश में 0 से 6 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 66 लाख बच्चे हैं, जिनमें से 10 लाख से अधिक कुपोषण से पीड़ित हैं। इनमें एक लाख 36 हजार से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। इसके साथ ही 57 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं।

858 करोड़ के पोषण घोटाले का आरोप

याचिकाकर्ता ने कैग रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि वर्ष 2025 में पोषण आहार वितरण में 858 करोड़ रुपये का घोटाला उजागर हुआ है। वितरण और परिवहन में अनियमितता, घटिया गुणवत्ता और भ्रष्टाचार के बावजूद अब तक दोषियों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई है।

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