राम मंदिर के भव्य निर्माण से सदियों पुराना सपना हुआ पूरा, कार सेवक की दास्तान

कैलाश सिरोठिया

Update: 2025-12-05 14:47 GMT

विजयपुर। भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में भव्य एवं दिव्य मंदिर निर्माण के लिए 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भूमि-पूजन किया गया। इसके पश्चात 22 जनवरी 2024 को देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा संपन्न हुई। 25 नवंबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा राम जन्मभूमि मंदिर के ध्वज एवं शिखर-गुंबद का विधिवत अनावरण किया गया। 

वर्ष 1990 और 1992 की अयोध्या कार सेवा के सहभागी रहे, भाजपा के पूर्व जिला मंत्री कैलाश सिरोठिया बताते हैं कि उस समय राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। विजयपुर तहसील से नवंबर 1990 में लगभग 75 कार सेवक जय श्रीराम के उद्घोष के साथ अयोध्या के लिए रवाना हुए। उस समय उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह थे। विजयपुर एवं संभाग भर के कार सेवकों को झांसी में रोक दिया गया। उन्हें झांसी की व्यायामशाला में ठहराया गया, जहां कार सेवकों ने संकीर्तन यात्रा भी निकाली। यात्रा के दौरान विधर्मी लोगों ने निहत्थे कार सेवकों पर पत्थरबाज़ी शुरू कर दी, जिसमें कई कार सेवक घायल हुए। व्यायामशाला में भी उपद्रवियों ने कार सेवकों पर गोली चलाई। विजयपुर का जत्था सदैव आगे रहता था, क्योंकि उनके साथ एक ढोलक वादक भी था। अंततः सभी कार सेवकों को झांसी से वापस अपने-अपने घर भेज दिया गया।

पुरानी यादों को ताज़ा करते हुए कैलाश सिरोठिया बताते हैं कि 28–29 नवंबर 1992 को विजयपुर से बलिदानी कार सेवकों का जत्था अयोध्या के लिए रवाना हुआ। इस जत्थे में लगभग 27 कार सेवक शामिल थे। 28 नवंबर को मुरैना के सरस्वती शिशु मंदिर में सभी कार सेवकों को एकत्र होने का संदेश मिला। कुछ कार सेवक दो दिन पूर्व ही निकल चुके थे। वे बताते हैं कि हम और कई साथी कार सेवक सरस्वती शिशु मंदिर, मुरैना में रात्रि विश्राम कर सुबह मुरैना नगर में जय श्रीराम की रैली निकालते हुए भारी संख्या में मुरैना रेलवे स्टेशन पहुंचे और वहां से रेलगाड़ी द्वारा जन्मभूमि अयोध्या के लिए रवाना हुए। कार सेवक झांसी, कानपुर, लखनऊ, बाराबंकी और फैज़ाबाद होते हुए अयोध्या धाम पहुँचे, जहाँ आठ दिन तक रुककर अनेक मंदिरों के दर्शन करने का सौभाग्य मिला।

6 दिसंबर 1992 को वह शुभ घड़ी आ पहुंची। सभी कार सेवक कारसेवकपुरम् से तैयार होकर जन्मभूमि की ओर बढ़े। लगभग चार लाख कार सेवक वहां एकत्रित थे। बिना किसी रोक-टोक के कार सेवक जन्मभूमि के निकट पहुंच गए। पास ही विशाल मंच बनाया गया था, जिस पर श्रद्धेय रायमाता, लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, डालमिया जी, साध्वी रीतिंभरा, उमा भारती और विनय कटियार सहित अनेक वरिष्ठ नेता उपस्थित थे। दोपहर लगभग 12 बजे कार सेवक ढांचे पर चढ़ गए और लगभग पांच घंटे में बाबरी ढांचा ध्वस्त कर दिया। मंच से नेता लगातार संयम बरतने की अपील करते रहे, परंतु कार सेवक अपने कार्य में डटे रहे।

शाम 5:30 बजे तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया। सांझ होते-होते कार सेवक ढांचे से निकली ईंटों को लेकर कारसेवकपुरम् लौट आए। 7 दिसंबर 1992 को सभी कार सेवक विभिन्न रेलगाड़ियों से फैज़ाबाद, बाराबंकी, लखनऊ, कानपुर और झांसी होते हुए अपने-अपने घरों की ओर रवाना हुए। कई कार सेवक स्मृति-चिह्न के रूप में कुछ ईंटें भी साथ लेकर आए।  

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