भारतीय लोकतंत्र में असहमति और आलोचना स्वाभाविक ही नहीं, बल्कि आवश्यक भी है। लेकिन जब राजनीति का स्तर विचारों और नीतियों से नीचे उतरकर छल, भ्रामकता और तकनीकी हथकंडों तक सीमित होने लगे, तो यह न केवल चिंताजनक होता है बल्कि लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक सिद्ध होता है। हाल ही में कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाकर जारी किए गए एआई जनरेटेड वीडियो इसी गिरावट का प्रतीक हैं।
कांग्रेस द्वारा जारी ये वीडियो-चाहे ‘चाय बेचते हुए प्रधानमंत्री’ का कृत्रिम दृश्य हो, ‘सर तन से जुदा’ जैसी तस्वीर, ‘मां के साथ संवाद’ जैसा बनावटी प्रसंग हो, या ‘ट्रम्प-मोदी बातचीत’ का मनगढ़ंत वीडियो-सभी एक ही प्रवृत्ति की ओर संकेत करते हैं। यह प्रवृत्ति बताती है कि जब राजनीतिक तर्क कमजोर पड़ जाएं और जनमत प्रभावित न हो पाए, तब मसखरी और फर्जीवाड़े का सहारा लिया जाता है। ऐसी कोशिशें न केवल सत्ता–विरोध की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं, बल्कि इस तथ्य को भी उजागर करती हैं कि देश का सबसे बड़ा विपक्षी दल वास्तविक मुद्दों पर संघर्ष करने में असफल हो रहा है।
देश के प्रधानमंत्री पर राजनीतिक प्रहार करना विपक्ष का अधिकार है, लेकिन आलोचना तथ्यों और नीतियों पर आधारित होनी चाहिए। जब प्रहार एआई तकनीक से गढ़ी गई झूठी कथाओं पर आधारित हो जाते हैं, तो वे केवल ओछी राजनीति बनकर रह जाते हैं। किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रधानमंत्री मात्र व्यक्ति नहीं, बल्कि संस्था का प्रतीक होता है। इस संस्था को निशाना बनाकर कोई भी दल अपने ही स्तर को कम करता है। कांग्रेस को गंभीरता से सोचना चाहिए कि क्या वह वास्तव में मानती है कि ऐसे एआई वीडियो से मोदी की छवि को क्षति पहुंचाई जा सकती है?
पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता केवल चुनावी अभियानों या प्रचार से नहीं बनी है; यह उनकी निरंतर सक्रियता, जनसंपर्क, संगठनात्मक शक्ति और जनता के बीच बनी विश्वसनीयता का परिणाम है। सोशल मीडिया पर प्रसारित कुछ बनावटी वीडियो उनकी छवि को प्रभावित कर पाएंगे, यह मान लेना राजनीतिक अपरिपक्वता ही कहा जाएगा। इसके उलट, ऐसे वीडियो कांग्रेस की ही विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाते हैं। जब कोई राष्ट्रीय दल सार्वजनिक संवाद में फर्जी एआई सामग्री का उपयोग करता है, तो वह अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार कर लेता है कि उसके पास सरकार की नीतियों का ठोस विकल्प नहीं है। इससे यह भी संदेश जाता है कि उसकी आलोचना तथ्य आधारित नहीं, बल्कि भावनात्मक और हास्यास्पद प्रहारों पर आधारित है-जो किसी जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका नहीं होती।
आज जब दुनियाभर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को लेकर नैतिक बहस चल रही है-फेक न्यूज, डीपफेक और जनमत को प्रभावित करने के खतरों पर गंभीर चर्चा हो रही है-तब भारतीय राजनीतिक दलों से अपेक्षा की जाती है कि वे तकनीक का जिम्मेदारी से उपयोग करें। यदि विपक्ष ही इन खतरों को बढ़ावा देगा, तो वह उसी लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करेगा, जिसकी सुरक्षा का दावा वह स्वयं करता है।
राजनीति में विश्वसनीयता सबसे बड़ी पूंजी होती है। जनता आलोचना सुनने को तैयार रहती है, बशर्ते वह तथ्यपरक, ईमानदार और नीति आधारित हो। एआई से बने मनगढ़ंत और व्यंग्यात्मक वीडियो न तो वैकल्पिक राजनीति का निर्माण कर सकते हैं और न ही संगठन के अंदर ऊर्जा भर सकते हैं। वे केवल कांग्रेस को जनता की नजर में ऐसे दल के रूप में स्थापित करेंगे जो गंभीर राजनीति के बजाय डिजिटल मज़ाक तक सिमट गया है।
यदि कांग्रेस सचमुच भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देना चाहती है, तो उसे एआई की शरारतों से नहीं, बल्कि ठोस मुद्दों-आर्थिक नीतियों, सामाजिक न्याय, शिक्षा, रोजगार, महंगाई और शासन की पारदर्शिता-से मुकाबला करना होगा। लोकतंत्र में परिवर्तन फर्जी वीडियो से नहीं, बल्कि सशक्त विचारों और विश्वसनीय नेतृत्व से आता है। यदि कांग्रेस यह समझने में असफल रहती है, तो एआई वीडियो बनाते-बनाते वह स्वयं अपने राजनीतिक भविष्य को धुंधला कर लेगी।