एसआईआर का डर

Update: 2025-12-03 04:36 GMT

पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एसआईआर की वजह से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक अपने देश लौट रहे हैं। भारत-बांग्लादेश की सीमा पर जमे बांग्लादेशियों में बड़ी संख्या ऐसे लोग हैं, जो 10-15 साल पहले दलालों की मदद से भारत में घुस आए थे या जिन्हें तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले नेताओं का समर्थन प्राप्त था। यही वजह है कि उन्होंने अपने रहने के लिए अस्थायी झुग्गियां बना लीं।

फिर दलालों की मदद से आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र भी बनवा लिए। इसके बाद कई घुसपैठिये स्थायी आवास बनाकर रहने लगे। अब जब दो दशक बाद भारत में एसआईआर शुरू हुआ, तो बांग्लादेशी नागरिक यहां से पलायन करना शुरू कर दिया। इस रिवर्स माइग्रेशन ने बंगाल में घुसपैठ के विमर्श को तेज कर दिया। शुरू में इसे बहुत अधिक तवज्जो नहीं दी गई थी, लेकिन अब यह राजनीतिक विमर्श बन गया है, जिसने सीमा चौकी को 'वैचारिक युद्धक्षेत्र' में बदल दिया है।

एसआईआर के चलते लगभग 150-200 लोग हर दिन बांग्लादेश लौट रहे हैं। कई बार यह संख्या दोगुनी भी हो जाती है। अभी तक लगभग आठ-दस हजार लोग सीमा पार कर चुके हैं। बंगाल और बांग्लादेश की सीमा दशकों से संवेदनशील रही है। अवैध आव्रजन कोई नया संकट नहीं है, बल्कि यह समस्या धीरे-धीरे जनसंख्या संतुलन, रोजगार, स्थानीय राजनीति और कानून-व्यवस्था को प्रभावित करती रही है। अब एसआईआर के नाम पर छिड़ी राष्ट्रीय बहस ने ऐसा मनोवैज्ञानिक दबाव पैदा कर दिया है कि सीमावर्ती इलाकों में हलचल साफ देखी जा सकती है। कई अवैध प्रवासी अपने ठिकानों से गायब हो रहे हैं, और कुछ समूह बांग्लादेश की ओर लौटने में लगातार लगे हुए हैं। एसआईआर के बाद जीरो लाइन की ओर बढ़ते लोगों की बड़ी संख्या को देखते हुए कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठ के आरोप गलत नहीं हैं।

तुष्टिकरण की नीति के चलते सबसे ज्यादा बेचैनी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राजनीतिक खेमे में देखी जा रही है। ममता बनर्जी की सरकार लंबे समय से विशिष्ट समुदायों के समर्थन पर टिकी रही है, और तृणमूल कांग्रेस ने 'तुष्टिकरण' की नीति को शासन का स्थायी सूत्र बना दिया। यही कारण है कि जैसे ही घुसपैठ का सवाल राष्ट्रीय विमर्श में उभरा, तृणमूल कांग्रेस के भीतर असहजता बढ़ गई।

ममता बनर्जी का एसआईआर के खिलाफ तीखा रुख इस बात का संकेत है कि यह मुद्दा उनके पारंपरिक वोट बैंक को अस्थिर कर सकता है। पड़ोसी राज्य बिहार में भाजपा-एनडीए की प्रचंड जीत ने इस बहस में नई परत जोड़ दी है। वहां के चुनाव परिणामों ने साफ कर दिया कि नागरिकता, सीमा सुरक्षा और जनसांख्यिकीय संतुलन जैसे मुद्दे अब केवल भाषणों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सीधे मतदान को प्रभावित कर रहे हैं।

भाजपा की सफलता और एसआईआर के प्रति सकारात्मक रुझान ने बंगाल में भाजपा को नई ऊर्जा दी है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार की हवा ने बंगाल में भी राजनीतिक समीकरण बदलने शुरू कर दिए हैं। भाजपा अब घुसपैठ और एसआईआर को केंद्रीय मुद्दे के रूप में पेश कर रही है, और तृणमूल कांग्रेस इस सच्चाई को रोक पाने में फिलहाल कमजोर दिख रही है।

दरअसल, ममता बनर्जी की सरकार पहले ही कई स्तरों पर दबाव झेल रही है। सत्ता-विरोधी भावनाएं स्वाभाविक रूप से बढ़ रही थीं। ऊपर से भ्रष्टाचार के आरोप, कट-मनी संस्कृति, शिक्षक भर्ती घोटाले और प्रशासनिक विफलताएं लगातार तृणमूल कांग्रेस की छवि को चोट पहुंचा रही हैं, और अब एसआईआर तथा घुसपैठ का मुद्दा इस दबाव को और तीखा कर रहा है।

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