नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात ने यह संदेश दिया कि भारत-रूस का रिश्ता केवल रणनीतिक साझेदारी का नहीं, बल्कि परंपरागत और भावनात्मक जुड़ाव का भी है। यह मुलाकात ऐसे समय हुई जब विश्व में आर्थिक उथल-पुथल तेज है और अमेरिका, चीन और ब्रिटेन जैसे बड़े खिलाड़ी अपने हित साधने में व्यस्त हैं। ऐसे में भारत और रूस का निकट आना न केवल द्विपक्षीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।
भारत की स्वतंत्र कूटनीति
अमेरिका के दबाव और कूटनीतिक पहल के बावजूद भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह अपनी विदेश नीति को देश, काल और परिस्थिति के अनुसार ही लागू करता है। हाल ही में अमेरिका ने भारत से रूस से तेल आयात कम करने का दबाव बनाया, जिसे भारत ने ठुकरा दिया।रूस की ओर से भी भारत की सराहना की गई। पुतिन ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी दबाव में नहीं आने वाले नेता हैं और भारत ने उनके नेतृत्व में मजबूत रुख दिखाया। उन्होंने भारत की तेजी से बढ़ती आर्थिक ताकत की भी तारीफ की।
परंपरागत और विश्वसनीय साझेदारी
रूस और भारत के संबंध केवल रणनीतिक साझेदारी तक सीमित नहीं हैं। पिछले सात दशकों में रूस ने हमेशा भारत के पक्ष में समर्थन दिया है। भारत भी रूस को केवल रणनीतिक ही नहीं, बल्कि वफादार सहयोगी मानता है।प्रधानमंत्री मोदी ने इस मौके का लाभ उठाने की आवश्यकता जताई और कहा कि भारत को यूक्रेन युद्ध पर अपना संतुलित नजरिया पेश करना होगा। उनका दृष्टिकोण युद्ध को समाप्त करने का है।
क्षेत्रीय संतुलन में भारत की भूमिका
बदले हुए वैश्विक हालात में रूस का झुकाव चीन की ओर प्रतीत होता है। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपने रुख से हिंद महासागर में असंतुलित दबदबे को रोक सके। अमेरिका के दिएगो गार्सिया सैन्य ठिकाने को लेकर चीन और रूस अपनी असहमति जता चुके हैं। ऐसे में भारत का संतुलित रुख रूस को नैतिक बल देता है और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को मजबूत करता है।
साझेदारी के ठोस संकेत
नई दिल्ली में मोदी-पुतिन की मुलाकात के दौरान कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। रूस ने भारत को अतिआधुनिक रक्षा प्रणाली और सुपरसोनिक विमान प्रदान करने की प्रतिबद्धता दोहराई। यह केवल मदद नहीं, बल्कि साझेदारी का संकेत है।दक्षिण एशिया में हालात अस्थिर हैं-नेपाल में राजनीतिक संकट, बांग्लादेश में अशांति और पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली। ऐसे समय में भारत के लिए यह जरूरी है कि वह परंपरागत और विश्वसनीय साझेदारों, विशेषकर रूस, के साथ अपने संबंध मजबूत रखे।
यह मुलाकात दर्शाती है कि भारत-रूस संबंध सिर्फ कूटनीतिक दस्तावेजों तक सीमित नहीं, बल्कि भाषा, धर्म, खान-पान और जीवनशैली तक फैला हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी इसे बार-बार “विश्वसनीय मित्र” के रूप में परिभाषित करते हैं।