6 दिसंबर की तारीख भारतीय इतिहास में एक अविस्मरणीय और परिवर्तनकारी दिन के रूप में दर्ज है। यह वह दिन है जिसने सदियों के संघर्ष, करोड़ों लोगों की अगाध आस्था, लाखों लोगों के बलिदान और भारतीय सभ्यता के एक महत्वपूर्ण अध्याय को एक निर्णायक मोड़ दिया। यह घटना केवल एक विवादित ढाँचे को हटाने तक सीमित नहीं थी। यह भारतीय आत्मसम्मान की पुनर्स्थापना, हिंदू चेतना की मुखर अभिव्यक्ति और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उदय का प्रतीक बन गई। सहनशीलता की पराकाष्ठा और सदियों के संघर्षों का परिणाम थी 6 दिसंबर की घटना। प्रभु श्री राम का जन्म स्थान अयोध्या हिंदू धर्म में सर्वोच्च महत्व रखता है। सैकड़ों वर्षों तक, इस पवित्र स्थल पर एक ऐसा ढाँचा खड़ा रहा, जिसे देश के सबसे बड़े वर्ग ने अपनी राष्ट्रीय और धार्मिक अस्मिता पर एक कलंक माना। यह संघर्ष न्याय, आस्था और ऐतिहासिक सत्य की माँग का संघर्ष था।
दशकों तक, कानूनी लड़ाई लड़ी गई, अनगिनत प्रदर्शन हुए और लाखों कार सेवक दशकों तक शांतिपूर्ण तरीके से अपनी जायज मांगे रखते रहे। उन नेताओं से, जो एक वर्ग को तुष्ट करने की गरज से राम मंदिर आंदोलन की लगातार उपेक्षा करते रहे। उन सरकारों से, जिन्होंने कभी भी हिंदुओं के अधिकारों की परवाह की ही नहीं। भारतीय समाज ने, विशेष रूप से हिंदू समुदाय ने, इस मुद्दे पर जो असाधारण सहनशीलता दिखाई, वह दुनिया के इतिहास में विरले ही देखने को मिलती है। यह इस बात का प्रमाण है कि हिंदू दर्शन में धैर्य और अहिंसा का कितना गहरा स्थान है। वे हर संवैधानिक और कानूनी रास्ते पर चले, पीढ़ी दर पीढ़ी, इस उम्मीद में कि आज नहीं तो कल उनकी आस्था का सम्मान होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो 6 दिसंबर 1992 को भारत के धरती पुत्रों के धैर्य का बाँध टूट गया। परिणाम स्वरूप अस्मिता की अभिव्यक्ति के रूप में सैकड़ो सालों का कलंक कार सेवकों द्वारा पल भर में ढहा दिया गया। 6 दिसंबर 1992 को, वही हुआ जो सदियों की उपेक्षा और निराशा के कारण होना लगभग अवश्यंभावी हो गया था।
यह घटना कार सेवकों की सहनशीलता की पराकाष्ठा थी। वर्षों से, देश के सनातनी वर्ग को यह महसूस कराया जा रहा था कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर, उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं की जानबूझकर अनदेखी की जा रही है। उन्हें लगा कि एक वर्ग विशेष के तुष्टिकरण की राजनीति ने उनके सबसे पवित्र स्थल के न्याय संगत दावे को दबा दिया है। यह गुस्सा केवल एक ढाँचे पर नहीं था। यह वोट बैंक की राजनीति, सांस्कृतिक अपमान, और ऐतिहासिक अन्याय के खिलाफ एक सामूहिक उबाल था। जब संवैधानिक रास्ते लंबे और निष्फल दिखाई दिए, और जब देश के सनातन वर्ग पर गोली चालन जैसी कठोर कार्रवाई हुई, तो धैर्य का बाँध टूट गया। 6 दिसंबर की घटना भारतीय कलंक को मिटाने की एक स्वस्फूर्त, अभिव्यक्ति थी। इस दिन, हिंदू समाज ने दुनिया के सामने यह साबित कर दिया कि बेशक वह बेहद सहनशील है। लेकिन जब बात आत्मसम्मान, भारत की आन, बान, और शान की आती है, तो वह प्राणों की बाजी लगाना भी जानता है। ऐसा ही हुआ, हजारों बलिदानों के बाद भारतीय सनातन वर्ग का खून खौला और भारत माता के भाल से सैकड़ो साल पुराना कलंक पल भर में मिटा दिया गया। फल स्वरुप अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर निर्माण की भूमिका सकारात्मक रूप में प्रकट हुई। भारतीय सम्मान का प्रतीक राम मंदिर का निर्माण केवल एक मंदिर का निर्माण नहीं है। यह उससे कहीं अधिक है।
राष्ट्रीय गौरव की पुनर्स्थापना
श्री राम भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुषोत्तम हैं। उनका जीवन मर्यादा, न्याय, और धर्म का प्रतीक है। राम मंदिर का निर्माण भारत के उस मौलिक विचार की पुनर्स्थापना है, जिसे औपनिवेशिक शक्तियों और विदेशी आक्रमणकारियों ने नष्ट करने का प्रयास किया था। यह हमारी हजारों साल पुरानी सभ्यता के प्रति अटूट विश्वास का प्रमाण है। यह घोषणा है कि भारत अपने इतिहास, अपने नायकों, और अपनी आस्था के स्थलों को गर्व और सम्मान के साथ पुनः स्थापित करेगा।
हिंदू चेतना का सकारात्मक एकीकरण
राम मंदिर आंदोलन ने पूरे देश के हिंदू समाज को एक साझा लक्ष्य के लिए एकजुट किया। यह विभिन्न जातियों, क्षेत्रों और भाषाओं के लोगों को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बाँधने वाला सबसे बड़ा आंदोलन था। इस आंदोलन ने एक शक्तिशाली हिंदू चेतना को जन्म दिया, जो अब केवल धार्मिक पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय विकास, सामाजिक समरसता, और विश्व कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है। यह चेतना आक्रामकता नहीं, बल्कि आत्म-जागरूकता की है। यह भय नहीं, बल्कि गर्व की है। यह चेतना समाज को यह संदेश देती है कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों पर गर्व करना और उन्हें संरक्षित करना किसी भी मायने में "प्रतिगामी" नहीं, बल्कि प्रगतिशील और अंततः विकसित राष्ट्र निर्माण का आधार है।
न्याय और सत्य की विजय
राम मंदिर निर्माण की राह में अंतिम निर्णय भारतीय न्यायपालिका द्वारा एक लंबी और गहन प्रक्रिया के बाद दिया गया। यह निर्णय, जिसने विवादित भूमि को रामलला को सौंप दिया। यह कानून के शासन में आस्था रखने वाले सभी लोगों के लिए सत्य और न्याय की विजय थी। हिंदुओंका यह लंबा संघर्ष दिखाता है कि भारत में, आस्था और इतिहास को अंततः न्याय के तराजू पर तौला जाता है, और जनता की सामूहिक भावना को अनदेखा नहीं किया जाता।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की नींव
राम मंदिर का निर्माण और 6 दिसंबर की घटना का ऐतिहासिक संदर्भ भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की नींव को मजबूत करता है। यह भारत की उस पहचान को स्थापित करता है जहाँ राष्ट्र और संस्कृति एक दूसरे के पूरक हैं। यह उस विचार को चुनौती देता है जो केवल भौतिक विकास पर केंद्रित है और सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों की उपेक्षा करता है।
6 दिसंबर 1992 की घटना, भले ही विवादित रही हो, लेकिन यह लाखों लोगों के लिए दमनकारी इतिहास से मुक्ति का प्रतीक थी। आज, जब भव्य राम मंदिर आकार ले चुका है, यह भारत के पुनर्जागरण और विश्व गुरु के रूप में उसके उभरने की कहानी कहता है। राम मंदिर का निर्माण हमें सिखाता है कि सहनशीलता कमजोरी नहीं है, लेकिन आत्मसम्मान की रक्षा के लिए जागृत होना प्रत्येक राष्ट्र और उस राष्ट्र के नागरिक का परम धर्म है। यह हिंदू चेतना अब देश के विकास और गौरव को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह भव्य मंदिर भारतीय सम्मान और सनातन धर्म की अमरता का साक्षात प्रमाण है।
लेखक : डॉ. राघवेंद्र शर्मा, पूर्व अध्यक्ष मप्र बाल संरक्षण आयोग मप्र